सुख

विक्षनरी से
सुख में सिपाही

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सुख ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. मन की वह उत्तम तथा प्रिय अनुभूति जिसके द्वारा अनुभव करनेवाले का विशेष समाधान और संतोष होता है और जिसके बराबर बने रहने की वह कामना करता है । वह अनुकूल और प्रिय बेदना जिसकी सबको अभिलाषा रहती है । दुःख का उलटा । आराम । जैसे,—(क) वे अपने बाल बच्चों में बड़े सुख से रहते हैं । (ख) जहाँ तक हो सके सबको सुख पहुँचाने का प्रयत्न करना चाहिए । विशेष—कुछ लोग सुख को हर्ष का पर्यायवाची समझते हैं, पर दोनों में अंतर है । कोई उत्तम समाचार सुनने अथवा कोई उत्तम पदार्थ प्राप्त करने पर मन में सहसा जो वृत्ति उत्पन्न होती है, वह हर्ष है । परंतु सुख इस प्रकार आकस्मिक नहीं

सुख ^२ वि॰ [सं॰]

१. स्वाभाविक । सहज । उ॰—जाके सुख मुखबास ते वासित होत दिगंत ।—केशव (शब्द॰) ।

२. सुख देनेवाला । सुखद ।

३. प्रसन्न । खुश (को॰) ।

४. रुचिकर । मधुर (को॰) ।

५. सद्गुणी । पुण्यात्मा (को॰) ।

६. योग्य । उपयुक्त (को॰) ।

सुख ^३ क्रि॰ वि॰

१. स्वाभाविक रीति से । साधारण रीति से । उ॰— कहुँ द्विज गण मिलि सुख श्रुति पढ़ही ।—केशव (शब्द॰) ।

२. शांतिपूर्वक । यथेच्छ्या । सुखपूर्वक । आराम से ।

३. प्रसन्नता या हर्ष के साथ (को॰) ।

४. सरलता से । आसानी से (को॰) ।

सुख पर्श वि॰ [सं॰]

१. छूने में सुखकर ।

२. तृप्तिकर [को॰] ।