सुध

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सुध ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शुद्ध (बुद्धि) मा सु+धी]

१. स्मृति । स्मरण । याद । चेत । क्रि॰ प्र॰—करना । रखना । होना । मुहा॰—सुध दिलाना=याद दिलाना । स्मरण करना । सुध न रहना=विस्मृत हो जाना । भूल जाना । याद न रहना । जैसे,—तुम्हारी तो किसी को सुध ही नहीं रह गई थी । सुध बिसरना=विस्मृत होना भूल जाना । सुध्र बिसराना या बिसारना=किसी को भूल जाना । किसी को स्मरण न रखना । उ॰—तुम्हें कौन अनरीत सिखाई, सजन सुध बिसराई ।—गीत (शब्द॰) । सुध भूलना= दे॰ 'सुध बिसरना' । सुध भुलाना= दे॰ 'सुध बिसराना' ।

२. चेतना । होश । यौ॰—सुध बुध=होश हवास । मुहा॰—सुध बिसरना=अचेत होना । होश में न रहना । सुध बिसराना=अचेत करना । होश में न रहने देना । सुध न रहना =होश न रहना । अचेत हो जाना । उ॰—सुध न रही देखतु रहै काल न लखै बिनु तोहिं । देखै अनदेखै तुहे कठिन दुहूँ विधि मोहिं ।—रतनहजारा (शब्द॰) । सुध सँभालना=होश सँभालना । होश में आना ।

३. खबर । पता । मुहा॰—सुध लेना=पता लेना । हालचाल जानना । सुध रखना=चौकसी रखना । उ॰—(क) जब प्रसमन कौ बिलँब भयौ तब सत्राजित सुध लीन्हीं ।—सूर (शब्द॰) । (ख) दरदहिं दै जानत लला सुध लै जानत नाहि । कहो बिचारे नेहिया तव घाले किन जाहिं ।—रतनहजारा (शब्द॰) ।

सुध ^२ वि [सं॰ शुद्ध] दे॰ 'शुद्ध' । उ॰—सुकृत नीर में नहाय ले भ्रम भार टरे सुध होय देह ।—कबीर (शब्द॰) ।

सुध ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सुधा] दे॰ 'सुधा' । उ॰—जाके रस को इंद्रहु तरसत सुधहु न पावत दाँज ।—देव स्वामी (शब्द॰) ।

सुध बुध संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सु+धी+बुद्धि] होश हवास । चेत । ज्ञान । दे॰ 'सुध' । मुहा॰—सुध बुध जाती रहना=होश हवास जाता रहना । सुध बुध ठिकाने न होना=बुद्धि ठिकाने न होना । होश हवास दुरुस्त न होना । सुध बुध न रहना, सुध बुध मारी जाना= बुद्धि का लोप हो जाना । होश हवास न रहना । सुध बुध बिसराना=अचेत करना । होश में न रहने देना । उ॰—कान्हा ने कैसी बाँसुरी बजाई, मेरी सुध बुध बिसराई ।—गीत । (शब्द॰) ।