सुपारी

विक्षनरी से
सुपारी का पेड़

हिन्दी[सम्पादन]

उच्चारण[सम्पादन]

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प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सुपारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सुप्रिय] नारियल की जाति का एक पेड़ । कसैली । छालिया । डली । पुंगीफल । विशेष—यह वृक्ष ४० ते १०० फुट तक ऊँचा होता है । इसके पत्ते नारियल के समान ही झाड़दार और एक से दो फुट तक लंबे होते हैं । सींका ४-६ फुट लंबा होता है । इसमें छोटे छोटे फूल लगते हैं । फल १ । ।-२ इंच के घेरे में गोलाकार या अंडाकार होते हैं और उनपर नारियल के समान ही छिलके होते हैं । इसके पेड़ बंगाल, आसाम, मैसूर, कनाड़ा, मालाबार तथा दक्षिण भारत के अन्य स्थानों में होते हैं । सुपारी (फल) टुकड़े करके पान के साथ खाई जाती है । यों भी लोग खाते है । यह औषध के काम में भी आती है । वैद्यक के अनुसार यह भारी, शीतल, रुखी, कसैली, कफ-पित्त-नाशक, मोहकारक, रुचिकारक दुर्गंध तथा मुँह की निरसता दूर करनेवाली है । पर्या॰—घोंटा पूग । क्रमुक । गुवाक । खपुर । सुरंजन । पूग वृक्ष । दीर्घपादप । वल्कतरु । दृढ़वल्क । चिक्वण । पूणी । गोपदल । राजताल । छटाफल । क्रमु । कुमुकी । अकोट । तंतुसार । यौ॰—चिकनी सुपारी = एक प्रकार की बनाई हुई सुपारी । विशेष दे॰ 'चिकनी सुपारी' । मुहा॰—सुपारी लगना = सुपारी का कलेजे में अटकना । सुपारी खाते समय, कभी कभी पेट में उतरते समय अटक जाती है । इसी को सुपारी लगना कहते हैं । उ॰—राधिका झाँकि झरो- खन ह्वै कवि केशव रीझि गिरे सुबिहारी । सोर भयो सकुचे समुझे हरवाहि कह्मो हरि लागि सुपारी ।—केशव (शब्द॰) ।

२. लिंग का अग्र भाग जो प्रायः सुपारी (फल) के आकार का होता है । (बाजारू) ।

सुपारी का फूल संज्ञा पुं॰ [हिं॰ सुपारी + फूल] मोचरस या सेमर का गोंद ।

सुपारी पाक संज्ञा पुं॰ [हिं॰ सुपारी + सं॰ पाक] एक पौष्टिक औषध । विशेष—इसके बनाने की विधि इस प्रकार है—पहले आठ टके भर चिकनी सुपारी का चूर्ण आठ टके भर गौ के घी में मिलाकर तीन बार गाय के दूध में डालकर धीमी आँच में खोवा बनाते हैं । फिर बंग, नागकेसर नागरमोथा, चंदन, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, आँवला, कोयल के बीज, जायफल, धनिया, चिरौंजी, तज, पत्रज, इलायची, सिंघाड़ा, वंशलोचन, दोनों जीरे (प्रत्येक पाँच पाँच टंक) इन सब का महीन कपड़छान चूर्ण उक्त खोवे में मिलाकर ५० टंक भर मिस्त्री की चाशनी में डालकर एक टके भर की गोलियाँ बना ली जाती हैं । एक गोली सबेरे और एक गोली संध्या को खाई जाती है । इसके सेवन से शुक्रदोष, प्रमेह, प्रदर, जोर्ण ज्वर, अम्लपित्त, मंदाग्नि और अर्श का निवारण होकर शरीर पुष्ट होता है ।