सुरंग
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सुरंग ^१ वि॰ [सं॰ सुरङ्ग]
१. जिसका रंग सुंदर हो । सुंदर रंग का ।
२. सुंदर । सुडौल । उ ।— (क) सब पुर देखि धनुषपुर देख्यो देखे महल सुरंग । — सूर (शब्द॰) । (ख) अलकवलि मुक्तावालि गूँथी डोर सुरंग बिराजै । सूर (शब्द॰) । (ग) गति हेरि कुरंग कुरंग फिरै चतुरंग तुरंग सुरंग बने । — गि॰ दास (शब्द॰) ।
३. रसपूर्ण । उ॰— रसनिधि सुंदर मीत के रंग चुचौहें नैन । मन पट कौं कर देत हैं तुरत सुरंग ये नैन । — रस- निधि (शब्द॰) ।
४. लाल रंग का । रक्तवर्ण । उ ।— पहिरे बसन सुरंग पावकयुत स्वाहा मनो । — केशव (शब्द॰) ।
५. निर्मल । स्वच्छ । साफ । उ॰— अति बदन शोभ सरसी सुरंग । तहै कमल नयन नासा तरंग । — केशब (शब्द॰) ।
सुरंग ^२ संज्ञा पुं॰
१. शिंगरफ । हिंगुल ।
२. पतंग । बक्कम ।
३. नारंगी । नागरंग ।
४. रंग के अनुसार घोड़ों का एक भेद ।
सुरंग ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सुरङ्ग]
१. जमीन या पहाड़ के नीचे खोदकर या बारुद से उड़ाकर बनाया हुआ रास्ता जो लोगों के आने जाने के काम में आता है । जैसे, — इस पहाड़ में रेल कई सुरंगें पार करके जाती हैं ।
२. किले या दीवार आदि के नीचे जमीन के अंदर खोदकर बनाया हुआ वह तंग रास्ता जिसमें बारुद आदि भरकर उसमें आग लगाकर किला या दीवार उड़ते हैं । उ॰— भरि बारुद सुरंग लगावै । पुरी सहित जदु भटन उड़वै ।—गोपाल (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰ —उड़ाना । लगाना ।
३. एक प्रकार का यंत्र जिसमें बारुद से भरा हुआ एक पीपा होता हैं और जिसके उपर एक तार निकला हुआ होता हैं । विशेष— यह यंत्र समुद्र में डुबा दिया जाता है और इसका तारा उपर की ओर उठा रहता हैं । जब किसी जहाज का पैदा इस तार से छु जाता है, तो अपनी भीतरी विद्युत् शक्ति की सहायता से बारुद में आग लग जाती है जिसके फूटने से ऊपर का जाहाज फटकर डूब जाता है । इसका व्यवहार प्रायः शत्रुओं के जहाजों को नष्ट करने में होता है ।
४. वह सुराख जो चोर लोग दीवार में बनाते हैं । सेंघ । क्रि॰ प्र॰ —लगाना । मुहा॰—सुरंग मारना = सेंध लगाकर चोरी करना ।