सुरति

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सुरति ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सु+रति] विहार । भोगविलास । कामकेलि । संभोग । उ॰— विरची सुरति रघुनाथ कुंजधाम बीच, काम बस नाम करे ऐसे भाव थपनो । जघनि सो मसकै सिकोरै नाक, ससकै मरोरै भौह हंस कै सरीर डारै कपनो ।— काव्यकलाधर (शब्द॰) ।

सुरति ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ स्मृति] स्मरण । सुधि । चेत । उ॰— छिनछिन सुरति करत यदुपति की परत न मन समुझायो । गोकुलनाथ हमारे हित लगि लिखिहू क्यों न पठायो । — सूर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰ —करना ।—दिलाना ।—लगना ।—होना ।

सुरति ^३ संज्ञा स्त्री॰ [फ़ा॰ सूरत] दे॰ 'सूरत' । उ॰— सोवत जागत सपनबस रस रिस चैन कुचैन । सुरति श्यामवन की सुरति बिसरेहू बिसरै न । — बिहारी (शब्द॰) ।