सूझना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सूझना क्रि॰ अ॰ [सं॰ संज्ञान]

१. दिखाई देना । देख पड़ना । प्रत्यक्ष होना । नजर आना । जैसे,—हमें कुछ नहीं सूझ पड़ता । उ॰— आँखि न जो सूझत न कानन तैं सुनियत केसोराइ जैसे तुम लोकन में गाये हो ।—केशव (शब्द॰) ।

२. ध्यान में आना । खयाल में आना । जैसे,—(क) इतने में उसे एक ऐसी बात सूझी जो मेरे लिये असंभव थी । (ख) उसे कोई बात ही नहीं सूझती । उ॰—असमंजस मन को मिटै सो उपाइ न सूझै ।— तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—दिना ।—पड़ना ।

३. छुट्टी पाना । मुक्त होना । उ॰—राजा लियो चोर सों गोला । गोला देत चोर अस बोला । जो महि जनम कियों मैं चोरी । दहै दहन तौ मोरि गदोरी । अस कहि सो गोला दै सूझ्यौ । साहु सिपाही सों द्रुत बूझ्यौ ।—रघुराज (शब्द॰) ।