सूत

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सूत ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सूत्र, प्रा॰ सुत्त, हिं॰ सूत]

१. रूई, रेशम आदि का महीन तार जिससे कपड़ा बुना जाता है । तंतु । सूत्त । क्रि॰ प्र॰—कातना । मुहा॰—सूत सूत=जरा जरा । तनिक तनिक । सूत बराबर= बहुत सूक्ष्म । बहुत महीन ।

२. रूई का बटा हुआ तार जिससे कपड़ा आदि सीते हैं । तागा । धागा । डोरा । सूत्र ।

३. बच्चों के गले में पहनने का गंडा ।

४. करधनी । उ॰—कुंजगृह मंजु मधु मधुप अमंद राजै तामै काल्हि स्यामैं विपरीत रति राची री । द्विडदेव कीर कीलकंठ की धूनि जैसी तैसियै अभूत भाई सूत धुनि माची री ।—रसकुसु- माकरक (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—पहनना ।

५. नापने का एक मान । इमारती गज । विशेष—चार सूत की एक पइन, चार पइन का एक तसू, और चौबीस तसू का एक इमारती गज होता है ।

६. पत्थर पर निशान डालने की डोरी । विशेष—संगतराश लोग इसे कोयला मिले हुए तेल में डुबाकर इससे पत्थर पर निशान कर उसकी सीध में पत्थर काटते हैं ।

७. लकड़ी चीरने के लिये उस पर निशान डालने की डोरी । मुहा॰—सूत धरना=निशान करना । रेखा खींचना । बढ़ई लोग जब किसी लकड़ी को चीरने लगते हैं, तब सीधी चिराई के लिये सूत को किसी रंग में डुबाकर उससे उस लकड़ी पर रेखा करते हैं । इसी को सूत धरना कहते हैं । उ॰—मनहूँ भानु मंडलहि सवारत, धरचो सूत विधिसुत विचित्र मति ।—तुलसी (शब्द॰) ।

सूत ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ सूती]

१. एक वर्णसंकर जाति, मनु के अनुसार जिसकी उत्पत्ति क्षत्तिय के औरस और ब्राह्मणी के गर्भ से है और जिसकी जीविका रथ हाँकना था ।

२. रथ हाँकनेवाला । सारथि । उ॰—कर लगाम लै सूत धूत मजबूत बिराजत । देखि बृहदरथपूत सुरथ सूरज रथ लाजत ।—गि॰ दास (शब्द॰) ।

३. बंदी जिनका काम प्राचीन काल में राजाओं का यशोगान करना था । भाट । चारण । उ॰—(क) मागध सूत और बंदीजन ठौर ठौर यश गायो ।—सूर (शब्द॰) । (ख) बहु सूत मागध बंदिजन नृप बचन गुनि हरषित चले ।—रामाश्व- मेध (शब्द॰) ।

४. पुराणवक्ता । पौराणिक । उ॰—बाँचन लागे सूत पुराण । मागध वंशावली बखाना ।—रघुराज (शब्द॰) । विशेष—सबसे अधिक प्रसिद्ध सूत लोमहर्षण हुए हैं, जो वेदव्यास के शिष्य थे और जिन्होंने नैमिषारण्य में ऋषियों को सब पुराण सुनाए थे ।

५. विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम ।

६. बढ़ई । सूत्र कार ।

७. सूर्य ।

८. पारा । पारद ।

९. संजय का एक नाम (को॰) ।

१०. क्षत्रिया स्त्री में उत्पन्न वैश्य का पुत्र (को॰) ।

सूत ^३ वि॰

१. प्रसूत । उत्पन्न । उ॰—राम नहीं, कम के सूत कहलाए ।—अपरा, पृ॰ २०२ ।

२. प्रेरण किया हुआ । प्रेरित ।

सूत ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सूत्र] थोड़े अक्षरों या शब्दों में ऐसा पद या वचन जो बहुत अर्थ प्रकाशित करता हो । उ॰—केहि विधि करिय प्रबोध सकल दरसन अरुझाने । सूत सूत मँह सहस सूत किय फल न सुझाने ।—सुधाकर (शब्द॰) ।

सूत † ^५ वि॰ [सं॰ सूत्र (=सूत)] भला । अच्छा । उ॰—करमहीन बाना भगवान । सूत कुसूत लियो पहिचान ।—कबीर (शब्द॰) ।

सूत पुं ^६ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सुत] दे॰ 'सुत' । उ॰—(क) कभुवक मेरा मित्र है कभुवक मेरा सूत ।—सहजो॰ बानी, पृ॰ २३ । (ख) उठ्यो सोच कै मनहि मैं लग्यो आइ धौं भूत । यहै बिचारत हूँ तदपि नृप न लहेहु सुख सूत ।—पद्माकर (शब्द॰) ।