सून

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सून ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. प्रसव । जनन ।

२. कली । कलिका ।

३. फूल । पुष्प । प्रसून । उ॰—चुनते वे सुनि हेतु सून थे ।— साकेत, पृ॰ ३४४ ।

४. फल ।

५. पुत्र । उ॰—(क) नंद सून पद लालन लोभै । रमा रसिकिनी पावति छोभै ।—घनानंद, पृ॰ २६४ । (ख) श्री बसुदेव सून है नंद कुमार कहावत ।— प्रेमघन॰, भा॰ १, पृ॰ ६१ ।

सून ^२ वि॰

१. खिला हुआ । विकसित (पुष्प) ।

२. उत्पन्न । जात ।

३. रिक्त । खाली । शून या शून्य (को॰) ।

सून पु ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शून्य, प्रा॰ सुण्ण (सून)]दे॰ 'शून्य' । उ॰— (क) तुलसी निज मन कामना चहत सून कहँ सेइ । बचन गाय सबके विविध कहहु पयस केहि देइ ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) नाम राम को अंक है सब साधन है सून । अंक गए कछु हाथ नहिं अंक रहे दस गून ।—तुलसी (शब्द॰) ।

सून ^४ वि॰

१. निर्जन । जनशून्य । सूना । सुनसान । खाली । उ॰— (क) इहाँ देखि घर सुन चोर मुसन मन लायो । हीरा हेरि निकारि भवन बाहर धरि आयो ।—विश्राम (शब्द॰) । (ख) हनकु सक्र हमको एहि काला । अब मोहि लगत जगत जंजाला । नहिं कल बिना शेषपद देखे । बिन प्रभु जगत सून मम लेखे ।—रघुराज (शब्द॰) । (ग) मँदिर सून पिउ अनतै बसा । सेज नागिनी फिर फिर डसा ।—जायसी (शब्द॰) ।

२. रहित । हीन । उ॰— निरखि रावण भयावन अपावन महा जानकी हरण करि चलो शठ जात है । भन्यो अति कोप करि हनन की चोप करि लोप करि धर्म अब क्यों न ठहरात हैं । जानि थल सून नृप सूत रमणी हरी करी करणी कठिन अब न बचि जात है ।—रघुराज (शब्द॰) ।

सून ^५ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का बहुत बड़ा सदाबहार पेड़ जो शिमले के आसपास के पहाड़ों पर बहुत है । इसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है और इमारतों में लगती है । इसे 'चिन' भी कहते हैं ।