सूप
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सूप ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. मूँग, मसूर, अरहर आदि की पकी हुई दाल ।
२. दाल का जूस । रसा ।
३. रसे की तरकारी आदि मसालेदार व्यंजन ।
४. बरतन । भांड । भाँड़ा ।
५. रसोइया । पाचक ।
६. वाण । तीर ।
७. मसाला ।
सूप ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शूर्प] अनाज फटकने का बना हुआ पात्र । सरई या सींक का छाज । उ॰—(क) देखो अदभुत अविगति की गति कैसे रूप धरयो है हो । तीन लोक जाके उदरभवन सो सूप के कोन परयो है हो ।—सूर (शब्द॰) । (ख) राजन दीन्हे हाथी रानिन्ह हार हो । भरिगे रतन पदारथ सूप हजार हो ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—फटकना । मुहा॰—सूपभर = बहुत सा । बहुत अधिक । सूप क्या कहे छलनी को जिसमें नौ सौ छेद = जिसमें खुद ऐब हो वह दूसरे के ऐब एवं बुराई को दूर भगानेवाले से क्या कह सकता है । उ॰—सूप क्या कहे छलनी को जिसमें नौ सौ छेद । तुम और हमको ललकारो ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ ४७१ ।
सूप ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰]
१. कपड़े या सन का झाडू जिससे जहाज के डेक आदि साफ किए जाते हैं । (लश॰) ।
२. एक प्रकार का काला कपड़ा ।