सूर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सूर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ सूरी]
१. सूर्य । उ॰—सूर उदय आए रही दृगन साँझ सी फूलि ।—बिहारी (शब्द॰) ।
२. अर्कवृक्ष । आक । मदार ।
३. पंडित । आचार्य ।
४. सोम (को॰) ।
५. जैन धर्म में वर्तमान अवसर्पिणी के सत्रहवें अर्हत् कुंथु के पिता का नाम ।
६. मसूर ।
७. राजा । नायक (को॰) ।
सूर ^२ संज्ञा पुं॰ [देशश्त]
१. भक्त कवि सूरदास । उ॰—कछु संछेप सूर बरनत अब लघु मति दुर्बल बाल ।—सूर (शब्द॰) ।
२. नेत्र- विहीन व्यक्ति । दृष्टिरहित व्यक्ति । अंधा । विशेष—सूरदास अंधे थे, इससे 'अंधा' के अर्थ में यह शब्द प्रचलित हो गया है ।
३. छप्पय छंद के ७१ भेदों में से ५५वें भेद का नाम जिसमें १६ गुरु, १२० लघु, कुल १३६ वर्ण और १५२ मात्राएँ होती हैं ।
सूर पु ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शूर, प्रा॰ सूर, अथवा सं॰ सूर (= नायक)] शूरवीर । बहादुर । उ॰—सूर समर करनी करहिं कहिं न जनावहिं आप ।—तुलसी (शब्द॰) ।
सूर पु ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शुकर, प्रा॰ सूअर]
१. सूअर ।
२. भूरे रंग का घोड़ा ।
सूर पु ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शूल, प्रा॰ सूल (= सूर)] दे॰ 'शूल' । उ॰—(क) कर बरछी विष भरी सूरसुत सूर फिरावत ।— गोपाल (शब्द॰) । (ख) दादू सिख स्त्रवनन सुना सुमिरत लागा सूर ।—दादू॰ (शब्द॰) ।
सूर ^६ संज्ञा पुं॰ [देश॰] पठानों की एक जाति । जैसे—शेरशाह सूर । उ॰—जाति सूर औ खाँड़ै सूरा ।—जायसी (शब्द॰) ।
सूर ^७ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सूर (= सूर्य)] हठयोग साधना में चंद्रमा में स्रवित होनेवाले अमृत का शोषण करनेवाला द्वादश कला- युक्त सूर्य । पिंगला नाड़ी का दूसरा नाम । उ॰—उलटिवा सूर गगन भेदन किया, नवग्रह डंक छेदन किया, पोबिया चंद जहाँ कला सारी ।—रामानंद॰, पृ॰ ४ ।
सूर ^८ संज्ञा पुं॰ [अ॰] नरसिंहा नामक बाजा । उ॰—कब्र में सोए हैं महशर का नहीं खटका 'रसा' । चौंकनेवाले हैं कब हम सूर की आवाज से । विशेष—मुसलमानों के अनुसार हजरत असाफील प्रलय या कया- मत के दिन मुरदों को जिलाने के लिये इसे फूँककर बजाते हैं ।
सूर ^९ संज्ञा पुं॰ [फ़ा॰]
१. लाल वर्ण । लाल रंग ।
२. प्रसन्नता । मोद । हर्ष ।
३. अफगानिस्तान का एक नगर और एक जाति [को॰] ।