सूरन

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सूरन संज्ञा पुं॰ [सं॰ सूरण] एक प्रकार का कंद जो सब शाकों में श्रेष्ठ माना गया है । जमींकंद । ओल । शूरण । सूरन । विशेष—सूरन भारतवर्ष में प्रायः सर्वत्र होता है पर बंगाल में अधिक होता हा । इसके पौधे २ से ४ हाथ तक के होते हैं । पत्तों में बहुत से कटाव होते हैं । इसके दो भेद हैं । सूरन जंगली भी होता है जो खाने योग्य नहीं होता और बेतरह कटैला होता है । खेत के सूरन की तरकारी, अचार आदि बनते हैं जिन्हें लोग बड़े चाव से खाते हैं । वैद्यक में यह अग्निदीपक, रूखा, कसैला, खुजली उत्पन्न करनेवाला, चरपरा, विष्टंभकारक, विशद, रुचिकारक, लघु, प्लीहा तथा गुल्म नाशक और अर्श (बवासीर) रोग के लिये विशेष उपकारी माना गया है । दाद , खाज, रक्तविकार और कोढ़वालों के लिये इसका खाना निषिद्ध है । पर्या॰—शूरण । सूरकंद । कंदल । अर्शोघ्नि, आदि ।