सेतु
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सेतु ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. बंधन । बँधाव ।
२. मिट्टी का ऊँचा पटाव जो कुछ दूर तक चला गया हो । बाँध । धुस्स ।
३. मेंड़ । डाँड़ ।
४. किसी नदी, जलाशय, गड्ढे, खाईं आदि के आर पार जाने का रास्ता जो लकड़ी, बाँस, लोहे आदि बिछाकर या पक्की जोड़ाई करके बना हो । पुल । उ॰—आवत जानि भानुकुल केतु । सरितन्ह जनक बँधाए सेतू ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—बनाना ।—बाँधना ।उ॰—सेतु बाँधि कपि सेन जिमि उतरी सागर पारा ।—मानस, ७ ।६७ ।
५. सीमा । हदबंदी ।
६. मर्यादा । नियम या व्यवस्था । प्रतिबंध । उ॰—असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुतिसेतु । जग विस्तारहिं विशद जस, रामजनम कर हेतु ।—तुलसी (शब्द॰) ।
७. प्रणव । ओंकार ।
८. टीका या व्याख्या ।
९. वरुण वृक्ष । बरना ।
१०. एक प्राचीन स्थान ।
११. दुह्यु के एक पुत्र और बभ्रु के भाई का नाम ।
१२. संकीर्ण पर्वतीय मार्ग । सँकरा पहाड़ी रास्ता (को॰) ।
१३. वह मकान जिसमें धरनें छत के साथ लोहे की कीलों से जड़ी हो ।
१४. दे॰ 'सेतुबंध'—४ ।
सेतु पु ^२ वि॰ [सं॰ श्वेत, प्रा॰ सेअ, अप॰ सेत्त]दे॰ 'श्वेत' ।