सेतुबन्ध

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

सेतुबंध संज्ञा पुं॰ [सं॰ सेतुबन्ध]

१. पुल की बँधाई ।

२. वह पुल जो लंका पर चढ़ाई के समय रामचंद्र जी ने समुद्र पर बँधवाया था । उ॰—सेतुबंध भइ भीर अति कपि नभ पंथ उड़ाहिँ ।— मानस, ६ ।४ । विशेष—नल नील ने बंदरों की सहायता से शिलाएँ पाटकर यह पुल बनाया था । वाल्मीकि ने यहाँ शिव की स्थापना का कोई उल्लेख नहीं किया है । केवल लंका से लौटते समय रामचंद्र ने सीता से कहा है—'यहाँ पर सेतु बाँधने के पहले शिव ने मेरे ऊपर अनुग्रह किया था (युद्धकांड, १२५ वाँ अध्याय) । पर अध्यात्म आदि पिछली रामायणों में शिव की स्थापना का वर्णन है । इस स्थान पर रामेश्वर महादेव का दर्शन करने के लिये लाखों यात्री जाया करते हैं । 'सेतुबंध रामेश्वर' हिंदुओ के चार मुख्य धामों में से एक है । आजकल कन्याकुमारी और सिंहल के बीच के छिछले समुद्र में स्थान स्थान पर जो चट्टानें निकली हैं, वे ही उस प्राचीन सेतु के चिह्व बतलाई जाती हैं ।

३. बाँध या पुल (को॰) ।

४. नहर । विशेष—कौटिल्य में नहरें दो प्रकार की कही हैं—आहार्योदक और सहोदक । आहार्योदक वह है जिसमें पानी नदी, ताल आदि से खींचकर लाया जाता है । सहोदक में झरने से पानी आता रहता है । इनमें से दूसरे प्रकार की नहर अच्छी कही गई है ।

सेतुबंध रामेश्वर संज्ञा पुं॰ [सं॰ सेतुबन्धरामेश्व] दे॰

१. 'सेतुबंध' और

२. 'रामेश्वर' ।