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सेना

विक्षनरी से

फ़ौज़

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

सेना ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. युद्ध की शिक्षा पाए हुए और अस्त्र- शस्त्र से सजे मनुष्यों का बड़ा समूह । सिपाहियों का गरोह । फौज । पलटन । विशेष—भारतीय युद्धकला में सेना के चार अंग माने जाते थे— पदाति, अश्व, गज और रथ । इन अंगों से पूर्ण समूह सेना कहलाता था । सैनिकों या सिपाहियों को समय पर वेतन देने की व्यवस्था आजकल के समान ही थी । यह वेतन कुछ तो भत्ते या अनाज के रूप में दिया जाता था और कुछ नकज । महाभारत के सभापर्व में नारद ने युधिष्ठिर को उपदेश दिया है कि 'कच्चिद्बल्स्य भक्तं च वेतनं च यथोचितम् । सम्प्रा- प्तकाले दतव्यं ददासि न विकर्षसि' । चतुरंग दल के अतिरिक्त सेना के और विभाग होते थे—विष्टि, नौका, चर और देशिक । सब प्रकार के सामान लादने और पहुँचाने का प्रबंध 'विष्टि' कहलाता था । 'नौका' का भी लड़ाई में काम पड़ता था । 'चरों' के द्वारा प्रतिपक्ष के समाचार मिलते थे । 'देशिक' स्थानीय सहायक हुआ करते थे जो अपने स्थान पर पहुँचने पर सहायता पहुँचाया करते थे । सेना के छोटे छोटे दलों को 'गुल्म' कहते थे । पर्या॰—चतुरंग । बल । ध्वजिनी । वाहिनी । पृतना । चमू । अनीकिनी । सैन्य । वरुथिनी । अनीक । चक्र । वाहना । गुल्मिनी । वरचक्षु ।

२. भाला । बरछी । शक्ति । साँग ।

३. इंद्र का वज्र ।

४. इंद्राणी ।

५. वर्तमान अवसर्पिणी के तीसरे अर्हत् शंभव की माता का नाम (जन) ।

६. एक उपाधि जो पहले अधिकतर वेश्याओं के नामों में लगी रहती थी । जैसे,—वसंतसेना ।

७. सेना की छोटी टुकड़ी जिसमें ३ हाथी, ३ रथ, ९ अश्व और । १५ पदाति रहते हैं (को॰) ।

सेना ^२ क्रि॰ स॰ [सं॰ सेवन]

१. सेवा करना । खिदमत करना । किसी को आराम देना या उसका काम करना । नौकरी बजाना । टहल करना । उ॰—सेइय ऐसे स्वामि को जो राखै निज मान ।—कबीर (शब्द॰) । मुहा॰—चरण सेना = तुच्छ चाकरी बजाना ।

२. आराधना करना । पूजना । उपासना करना । उ॰—(क) तातें सेइय श्री जदुराई । (ख) सेवत सुलभ उदार कल्पतरु पारबतीपति परम सुजान ।—तुलसी (शब्द॰) ।

३. नियम- पूर्वक व्यवहार करना । काम में लाना । इस्तेमाल करना । नियम के साथ खाना पीना या लगाना । उ॰—(क) आसव सेइ सिखाए सखीन के सुंदरि मंदिर में सुख सोवै ।—देव (शब्द॰) । (ख) निपट लजीली नवल तिय बहँकि बारुनी सेइ । त्योंत्यों अति मीठी लगै ज्यों ज्यों ढीठो देइ ।—बिहारी (शब्द॰) ।

४. किसी स्थान को लगातार न छोड़ना । पड़ा रहना । निरंतर वास करना । जैसे,—चारपाई सेना, कोठरी सेना, तीर्थ सेना । उ॰—(क) सोइय सहित सनेह देह भरि कामधेनु कलि कासी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) उत्तम थल सेवैं सुजन, नीच नीच के बंस । सेवत गीध मसान की, मानरोवर हंस ।—दीनदयाल (शब्द॰) ।

५. लिए बैठे रहना । दूर न करना । जैसे,—फोड़ा सेना ।

६. मादा चिड़िया का गरमी पहुँचाने के लिये अपने अंड़ों पर बैठना ।