सेहरा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सेहरा संज्ञा पुं॰ [सं॰ शीर्षहार, हिं॰ सिरहार, सिरहरा]
१. फूल की या तार और गोटों की बनी मालाओं की पंक्ति या जाल जो दूल्हे के मौर के नीचे लटकता रहता हैं । उ॰—तीन गुनन के सेहरा दुलह पहिरावहि हो ।—धरम॰ श॰, पृ॰ ४८ ।
२. विवाह का मुकुट । मौर । उ॰—(क) लटकत सिर सेहरो मनो शिखी शिखंड सुभाव ।—सूर (शब्द॰) । (ख) मानिक सुपन्ना पदिक मोतिन जाल सोहत सेहरा ।—रघुराज (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—पहिराना ।—बँधना ।—बाँधना । मुहा॰—किसी के सिर सेहरा बँधना = किसी का कृतकार्य होना । औरों से अधिक यश या कीर्ति होना । श्रेय मिलना । सेहरा बँधाई = वह नेग जो दूल्हे को सेहरा बाँधने पर दिया जाता है । सेहरे के फूल खिलना = विवाह की अवस्था को प्राप्त होना । विवाह योग्य होना । सेहरे जलवे की = जो विधिपूर्वक ब्याह कर आई हो । (मुसल॰) ।
३. वे मांगलिक गीत जो विवाह के अवसर पर वर के यहाँ गाए जाते हैं ।