सै
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सै † ^१ वि॰ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शत, प्रा॰ सय, सइ] सौ । उ॰—संवत सौरह सै इकतीसा । करउँ कथा हरिपद धरि सीसा ।—तुलसी (शब्द॰) । विशेष—इसका प्रयोग अधिकतर किसी संख्या के आगे होता है ।
सै ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शत्व, प्रा॰ सत्त]
१. तत्व । सार । माद्दा ।
२. वीर्य । शक्ति । ओज । उ॰—बिनती सों परसन्न सद ती सों प्रसन्न मन । विनसै देखत सत्रु अहै यह सै जाके तन ।—गोपाल (शब्द॰) ।
३. बढ़ती । बरकत । लाभ ।
सै पु ‡ ^३ वि॰ [सं॰ सदृश, प्रा॰ सदिस, सइस] समान । तुल्य । उ॰— लखण बतीसे मारुवी निधि चंद्रमा निलाट । काया कूँ कूँ जेहवी कटि केहरि सै घाट ।—ढोला॰, दू॰ ४६९ ।