सो
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सो ^१ सर्व॰ [सं॰ सः] वह । उ॰—(क) ब्याही सों सुजान शील रूप वसुदेव जू कौं बिदित जहान जाकी अतिहि बड़ाई है ।—गोपाल (शब्द॰) । (ख) सो मो सन कहि जात न कैसे । साक बनिक मनि गन गुन जैसे ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) अरे दया मैं जो मजा सो जुलमन मैं नाह ।—रसलीन (शब्द॰) ।
सो ^२ वि॰ [हिं॰] दे॰ 'सा' । उ॰—(क) विधि हरि हर मय वेद प्रान सो । अगुन अनुपम गुन निधान सो ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) नासिका सरोज गंधवाह सें सुगंधवाह, दारयों से दर्शन कैसे बीजुरी सो हास है ।—केशव (शब्द॰) ।
सो ^३ अव्य॰ अतः । इसलिये । निदान । जैसे,—पराधीनता सब दुःखों का कारण है; सो, भाइयो, इससे मुक्त होने के ऊद्योग में लगे रहिए । उ॰—सो जब हम तुम सों मिले जुद्ध । नव अंग लहहु खै समर सुद्ध ।—गोपाल (शब्द॰) ।
सो ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] पार्वती का एक नाम ।
सो पु † ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शत, प्रा॰ सय, सउ] दे॰ 'सौ' । उ॰— सो बरस अट्ठ तप राज कीन । आनंद मेव सिर धत्र दीन ।— पृ॰ रा॰, १ । पृ॰ १२ ।