सामग्री पर जाएँ

सोहाग

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

[सम्पादन]

शब्दसागर

[सम्पादन]

सोहाग † ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सौभाग्य, प्रा॰ सोहग्ग]

१. दे॰ 'सुहाग' । उ॰—(क) धाइ सो पूछति बातै बिनै की सखीनि सीं सीखै सोहाग की रीतहिं ।—देव (शब्द॰) । (ख) लागि लागि पग सबनि सिय भेंटति अति अनुराग । हृदय असीसहिं प्रेमबस रहिहहु भरी सोहाग ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—देना ।—लेना ।उ॰—तुम तो ऐसा धमकाते हो जैसे हम राजा साहब के हाथों बिक गए हों । रानी रूठेंगी, अपना सोहाग लेंगी । अपनी नौकरी ही न लेंगे, ले जायँ ।—काया॰, पृ॰ २२२ ।

२. एक प्रकार का मांगलिक गीत । उ॰—गातव सबै सोहाग छबीली मिलि सब बृज की बाम ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ४४४ ।

सोहाग ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ सुहागा] दे॰ 'सुहागा' ।

सोहाग ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰, तुल॰ सं॰ सौभाग्य] मझोले आकार का एक प्रकार का सदाबहार वृक्ष । विशेष—इस वृक्ष के पत्ते बहुत लंबे लंबे होते हैं । यह आसाम, बंगाल, दक्षिणी भारत और लंका में पाया जाता हैं । इसके बीजों से एक प्रकार का तेल निकलता है जो जलाया और ओषधि के रूप में काम में लाया जाता है । इसे हीरन हर्रा भी कहते हैं ।

२. एक प्रकार का नमकीन पक्वान्न । दे॰ 'सुहाल' ।