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सौँफ

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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सौँफ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शतपुष्पा]

१. औषध और मसाले आदि में प्रयुक्त होनेवाला पाँच छह फूट ऊँचा एक पौधा और उसके फल जिसकी खेती भारत में सर्वत्र होती है । विशेष—इस पौधे की पत्तियाँ सोए की पत्तियों के समान ही बहुत बारीक और फूल सोए के समान ही कुछ पीले होते है । फूल लंबे सींकों में गुच्छों के रुप में लगते हैं । फल जीरे के समान पर कुछ बड़े और पीले रंग के होते हैं । कार्तिक महीने में इसके बीज बो दिए जाते हैं और पाँच सात दिन में ही अंकुरित हो जाते हैं । माघ में फूल और फागुन में फल लग जाते हैं । फागुन के अंत या चैत के पहले पखवाड़े तक, फलों के पकने पर मंजरी काटकर धूप में सुखा और पीटकर बीज अलग कर लेते हैं । यही बीज सौँफ कहलाने हैं । सौँफ स्वाद में तेजी लिए मीठी होती है । औषध के अतिरिक्त मसाले में भी इसका व्यवहार करते हैं । इसका अर्क और तेल भी निकाला जाता है जो औषध और सुगंधि के काम में आता है । वैद्यक में यह चरपरी, कडुवी, मधुर, गर्भदायक, विरेचक, वीर्यजनक, अग्निदीपक, तथा वात, ज्वर, दाह, तृष्णा, व्रण, अतिसार, आम तथा नेत्ररोग को दूर करनेवाली मानी गई है । इसका अर्क शीतल, रुचिकर, चरपरा, अग्निदीपक, पाचक, मधुर तथा तृषा, वमन, पित और दाह का शमन करनेवाला कहा गया है । पर्या॰—शतपुष्पा । मधुरिका । माधुरी । सिता । मिश्रेया । मधुरा । सुगंधा । तृषाहरी । शतपत्रिका । वनपुष्पा । माधवी । छत्रा । भूरिपुष्पा । तापसप्रिया । घोषबती । शीतशिवा । तालपर्णी । मंगल्या । संघातपत्रिका । अवाक् पुष्पी ।

२. सौँफ की तरह का एक प्रकार का जंगली पौधा जो कश्मीर में अधिकता से पाया जाता है । विशेष—इस पौधे की पत्तियाँ और फूल सौँफ के समान ही होते है । फल झुमकों में चौथाई से तीन चौथाई इंच तक के घेरे में होते हैं । बीज गोल और कुछ चिपटे से होते हैं । हकीम लोग इसका व्यवहार करते हैं । इसे बड़ी सौँफ, मौरी, मेउड़ी या मौड़ी भी कहते हैं ।