सौभाग्य
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]सौभाग्य संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. अच्छा भाग्य । अच्छा प्रारब्ध । अच्छी किस्मत । खुशकिस्मती । खुशनसीबी ।
२. सुख । आनंद ।
३. कल्याण । कुशलक्षेम ।
४. स्त्री के सधवा रहने की अवस्था । पति के जीवित रहने की अवस्था । सुहाग । अहिवात ।
५. अनुराग ।
६. ऐश्वर्य । वैभव ।
७. सुंदरता । सौंदर्य । खूबसूरती ।
८. मनोहरता ।
९. शुभकामना । मंगलकामना ।
१०. सफलता साफल्य । कामयाबी ।
११. ज्योतिष में विष्कंभ आदि सत्ताइस योगों में से चौथा यौग जो बहुत शुभ माना जाता है ।
१२. सिंदूर ।
१३. सुहागा । टंकण ।
१४. एक प्रकार का पौधा ।
१५. एक प्रकार का व्रत । यौ॰—सौभाग्यचिह्न = (१) सधवा होने का चिह्न । सुहाग का बोध करानेवाली वस्तुएँ । (२) भाग्यवान होने का प्रतीक । सौभाग्यतंतु = विवाह के समय वह द्वारा कन्या के गले में पहनाई जानेवाली सिकड़ी या डोरा । मंगलसूत्र । सौभाग्यफल = आनंदप्रदायक फल या परिणामों से युक्त । सौभाग्यमंजरी = एक देवांगना । सौभाग्यशयन व्रत = एत व्रत जो फाल्गुन शुक्ल पक्ष की तृतीया को होता है । विशेष दे॰ 'सौभाग्य व्रत' ।
सौभाग्य चिंतामणि संज्ञा पुं॰ [सं॰ सौभाग्यचिन्तामणि] संनिपात जव्र की एक औषध । विशेष—इसके बनाने की विधि इस प्रकार है । सुहागे का लावा, विष, जीर, मिर्च, हड़, बहेड़ा, आँवला, सेंधा, कर्कच, विट , सोँचर और सांभर नमक, अभ्रक और गंधक ये सब चीजें बराबर लेकर खरल करते हैं फिर सँभालू (निर्गुंडी), शेफालिका, भँगरा (भृंगराज), अड़ूसा (वासक) और लटजीरा (अपामार्ग) के पत्तों के रस में अच्छी तरह भावना देने के उपरांत एक एक रत्ती की गोली बनाते हैं । सनिपातिक ज्वर की यह उत्तम औषध मानी गई है ।
सौभाग्य तृतीया संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] भाद्र शुक्ल पक्ष की तृतीया जो बहुत पवित्र मानी गई है । हरितालिका । तीज ।
सौभाग्य व्रत संज्ञा पुं॰ [सं॰ सौभाग्यव्रत] एक व्रत जिसके फागुन शुक्ल तृतीया को करने का विधान है । विशेष—वाराह पुराण में इसका बड़ा माहात्म्य वर्णित है । यह व्रत स्त्री पुरुष दोनों के लिये सौभाग्यदायक बताया गया है ।
सौभाग्य मंडन संज्ञा पुं॰ [सौभाग्यमण्डन] हरताल ।
सौभाग्य मद संज्ञा पुं॰ [सं॰] सौभाग्य, समृद्धि, कल्याण आदि के कारण उत्पन्न उल्लास या गौरव ।
सौभाग्य शुंठी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सौभाग्यशुण्ठी] आयुर्वेद में एक प्रसिद्ध पाक जो सूतिका रोग के लिये बहुत उपकारी माना गया है । विशेष—इसके बनाने की विधि इस प्रकार है—घी ८ तोले, दूध १२८ तोले, चीनी २०० तोले, इनको एक में मिला ३२ तोले सोंठ का चूर्ण डाल गुड़पाक की विधि से पाक करते हैं । फिर इसमें धनिया १२ तोले, सौँफ २० तोले, तेजपत्ता, वायबिडंग, सफेद जीरा, काला जीरा, सोँठ, मिर्च, पीपल, नागरमोथा, नाग- केसर, दालचीनी और छोटी इलायची ४-४ तोले डालकर पाक करते हैं । 'भावप्रकाश' के अनुसार इसका सेवन करने से सूतिका रोग, तृषा, वमन, ज्वर, दाह, शोष, श्वास, खाँसी, प्लीहा आदि का नाश होता है और अग्नि प्रदीप्त होती है । इसके निर्माण की दूसरी विधि यह है—कसेरू, सिँघाड़ा, कमलगट्टा, नागरमोथा, नागकेसर, सफेद जीरा, कालाजीरा, जायफल, जावित्री, लौंग, भूरि छरीला (शैलज), तेजपत्ता, दालचीनी, धौ के फूल, इलायची, सोया, धनियाँ, सतावर, अभ्रक और लोहा आठ आठ तोले, सोंठ का चूर्ण एक सेर, मिश्री तीस पल, घी एक सेर और गाय का दूध आठ सेर इन सबको मिलाकर पाक विधि के अनुसार पाक करते हैं । मात्रा एक तोला हैं ।