स्कन्द

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

स्कंद संज्ञा सं॰ [सं॰ स्कन्द]

१. उछलनेवाली वस्तु ।

२. निकलना । बहना । गिरना ।

३. विनाश । ध्वंस ।

४. पारा । पारद ।

५. कार्तिकेय का एक नाम । देवसेनापति । विशेष—कार्तिकेय शिव के पुत्र, देवताओं के सेनापति और युद्ध के देवता माने जाते हैं । पुराणों में इनके जन्म के संबंध में अनेक कथाएँ दी हैं । ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है कि शिव जी एक बार पार्वती के साथ क्रीड़ा कर रहे थे । उस समय उनका वीर्य पृथ्वी पर गिर पड़ा । पर पृथ्वी उसे सहन न कर सकी और उसने अग्नि को दे दिया जिससे इनकी उत्पत्ति हुई । एक और पुराण में लिखा है कि शिव और पार्वती के विहार के समय अग्नि देवता ब्राह्मण का वेष धारण करके भिक्षा माँगने आए थे । शिव जी ने क्रोध में आकर अपना वीर्य उन्हें दे दिया । अग्नि देवता वह वीर्य पी गए, पर सहन न कर सके; अतः उन्होंने उसे गंगा जी में वमन कर दिया । गंगा में वह वीर्य छह भागों में पड़ा था; पर पीछे से वे छह भाग मिलकर एक शरीर हो गए जिसमें छह् मुख हुए । वहाँ से उन्हें छह् कृत्तिकाएँ उठा लाईं और ये छह मृहों से उन छह कृत्तिकाओं के स्तनपान करने लगे । इसी लिये ये षडानन और कार्तिकेय कहलाए । इसी प्रकार और भी कई कथाएँ हैं । स्कंद बहुत सुंदर कहे गए हैं और इनका वाहन मोर माना जाता है । इनके अस्त्र का नाम शक्ति है और इनकी कांति तपाए हुए सोने के समान कही गई है । यह भी कथा है कि पार्वती जी ने एक बार कहा था कि जो कोई सबसे पहले पृथ्वी की प्रदक्षिणा करके आवेगा, उसके साथ ऋद्धि सिद्धि का विवाह होगा । तदनुसार स्कंद मोर पर चढ़कर पृथ्वीप्रदक्षिणा करने निकले । गणेश जी ने सोचा कि माता ही पृथ्वी का रूप है; अतः उन्होंने पार्वती जी की प्रदक्षिणा करके उन्हें प्रणाम किया । पार्वती ने उनके साथ ऋद्धि सिद्धि का विवाह कर दिया । जब स्कंद लौटकर आए तब उन्होंने देखा कि गणेश का विवाह हो गया है; अतः उन्होंने सदा कुँवारे रहने का प्रण किया । पर तंत्रों में इनके विवाहित होने का भी उल्लेख मिलता है और इनकी पत्नी 'देवसेना' कही गई हैं जो षष्ठी देवी के नाम से पूजी जाती हैं । इन देवसेना के अस्त्र और वाहन आदि भी कार्तिकेय के अस्तों और वाहन के समान ही कहे गए हैं । स्कंद ने तारक और क्रौंच आदि अनेक राक्षसों का वध किया था । पर्या॰—महासेन । षडानन । सेनानी । अग्निभू । विशाख । शिखिवाहन । षाण्मातुर । शक्तिधर । कुमार । आग्नेय । मयूर- केतु । भूतेश । कामजित् । कांत । शिशु । शुभानन । अमोघ । रौद्र । प्रिय । चंद्रानन । षष्ठीप्रिय । रेवतीसुत । प्रभु । नेता । सुव्रत । ललित । गांग । स्वामी । द्वादशलोचन । महाबाहु । युद्धरंग । रुद्रसूनु । गौरीपुत्र । गुह ।

६. शिव जी का एक नाम ।

७. पंडित । विद्वान् । चतुर व्यक्ति ।

८. राजा ।

९. शरीर । देह ।

१०. बालकों के नौ प्राणघातक ग्रहों या रोगों में से एक । विशेष—इस रोग में बालक कभी घबराकर और कभी डरकर रोता, नाखूनों और दाँतों से अपना शरीर नोचता, जमीन खोदता, दाँत पीसता, होंठ चबाता और चिल्लाता है । इसकी दोनों भौहें फड़का करतीं और एक आँख बहा करती है, मुँह टेढ़ा हो जाता है, दूध से अरुचि हो जाती है, शरीर दुर्बल और शिथिल हो जाता है, चेतना शक्ति नहीं रहती, नींद नहीं आती, दस्त हुआ करते हैं और शरीर से मछली तथा रक्त की दुर्गंध आती है । दे॰ 'बालग्रह' और उसका 'विशेष' ।

११. उछलना । कूदना ।

१२. नदी का किनारा ।