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स्कन्ध

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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स्कंध संज्ञा पुं॰ [सं॰ स्कन्ध]

१. कंधा । मोढ़ा । उ॰—घट वहन से स्कन्ध नत थे और करतल लाल ।—शकुं॰, पृ॰ ७ ।

२. वृक्ष की पेड़ी या तने का वह भाग जहाँ से ऊपर चलकर डालियाँ निकलती हैं । कांड । प्रकांड । दंड ।

३. डाल । शाखा ।

४. समूह । गरोह । झुंड ।

५. सेना का अंग । व्यूह ।

६. ग्रंथ का विभाग जिसमें कोई पूरा प्रसंग हो । खंड । जैसे,—भागवत का दशम स्कंध ।

७. मार्ग । पथ ।

८. शरीर । देह ।

९. राजा ।

१०. वह वस्तु जिसका राज्याभिषेक में उपयोग हो । जैसे,— जल, छत्र आदि ।

११. मुनि । आचार्य ।

१२. युद्ध । संग्राम ।

१३. संधि । राजीनामा ।

१४. कंक पक्षी । सफेद चील ।

१५. महाभारत के अनुसार एक नाग का नाम ।

१६. आर्या छंद का एक भेद ।

१७. बौद्धों के अनुसार रूप, वेदना, वेज्ञान, संज्ञा और संस्कार ये पाँचों पदार्थ । बौद्ध लोग इन पाँचों स्कंधों के अतिरिक्त पृथक् आत्मा श्वीकार नहीं करते ।

१८. दर्शनशास्त्र के अनुसार शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध ये पाँच विषय ।

१९. किसी बड़ी डाल से निकली हुई शाखा (को॰) ।

२०. अंश । विभाग । खंड (को॰) ।

२१. जैनों के अनुसार पिंड (को॰) ।

२२. मानवीय ज्ञान की कोई शाखा या विभाग (को॰) । बोझा ढोनेवाले बैलों के ककुद की ऊँचाई की समता (को॰) ।