स्तम्भ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]स्तंभ संज्ञा पुं॰ [सं॰ स्तम्भ]
१. खंभा । थंभा । थूनी ।
२. पेड़ का तना । तरुस्कंध ।
३. साहित्यदर्पण के अनुसार एक प्रकार का सात्विक भाव । किसी कारणविशेष से संपूर्ण अंगों की गति का अवरोध । जड़ता । अचलता । उ॰—देखा देखी भई, छूट तब तैं सँकुच गई, मिटी कुलकानि, कैसो घूघुट को करिबो । लागी टकटकी, उर उठी धकधकी, गति थकी, मति छकी, ऐसो नेह को उघरिबो । चित्र कैसे लिखे दोऊ ठाढ़े रहे 'कासीराम' नाहीं परवाह लाख लाख करो लरिबो । बंसी को बजैबी नट- नागर बिसरि गयो, नागरि बिसरि गई गागरि को भरिबो ।— रसकुसुमाकर (शब्द॰) ।
४. प्रतिबंध । रुकावट ।
५. एक प्रकार का तांत्रिक प्रयोग जिससे किसी की चेष्टा या शक्ति को रोकते हैं ।
६. काव्य के सात्विक भावों में से एक ।
७. विष्णपुराण के अनुसार एक ऋषि का नाम ।
८. अभिमान । गर्व । घमंड । दंभ ।
९. रोग आदि के कारण होनेवाली बेहोशी ।
१०. स्थिरता । कड़ापन (को॰) ।
११. नियंत्रित करना । दमन (को॰) ।
१२. भरना (को॰) ।
१३. सहारा । आश्रय । टेक (को॰) ।