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स्नायु

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

स्नायु ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] शरीर के अंदर की वे वायुवाहिनी नाड़ियाँ या नसें जिनसे स्पर्श का ज्ञान होता अथवा वेदना का ज्ञान एक स्थान से दूसरे स्थान या मस्तिष्क आदि तक पहुँचता है । विशेष—ये नाड़ियाँ सफेद, चिकनी, कड़ी और सन के गुच्छों के समान होती हैं और शरीर की मांसपेशियों में फैली रहती हैं । हमारे यहाँ वैद्यक में कहा गया है कि शरीर में से पसीना निकलने और लेप आदि को रोमछिद्र में से भीतर खींचने का व्यापार इन्हीं से होता है और इनकी संख्या ९०० बतलाई गई है । इन्हें वातरज्जु, नाड़ी या कंडरा भी कहते हैं ।

२. धनुष की डोरी । प्रत्यंचा (को॰) ।

३. मांसपेशी । पेशी (को॰) ।

स्नायु ^२ संज्ञा पुं॰ अंगों के अग्र भाग (जैसे, उँगलियाँ आदि) पर होनेवाली एक प्रकार की पिटिका या स्फोट । स्नायुक । नहरुआ [को॰] ।