स्पर्श
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]स्पर्श संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. दो वस्तुओं का आपस में इतना पास पहुँचना कि उनके तलों का कुछ कुछ अंश आपस में सट या लग जाय । छूना ।
२. त्वगिंद्रिय का वह गुण जिसके कारण ऊपर पड़नेवाले दबाव या किसी चीज के सटने का ज्ञान होता है । नैयायिकों के अनुसार यह २४ प्रकार के गुणों में से एक है ।
३. त्वगिंद्रिय का विषय ।
४. पीड़ा । रोग । कष्ट । व्याधि ।
५. दान । भेंट ।
६. वायु ।
७. एक प्रकार का रतिबंध या आसन ।
८. व्याकरण में उच्चारण के आभ्यंतर प्रयत्न के चार भेदों में से 'स्पृष्ट' नामक भेद के अनुसार 'क' से लेकर 'म' तक के २५ व्यंजन जिनके उच्चारण में वागिंद्रिय का द्वार बंद रहता है ।
९. आकाश । व्योम (को॰) ।
१०. गुप्तचर । गूढ़ गुप्तचर । प्रच्छन्न जासूस । छिपा हुआ भेदिया (को॰) ।
११. ग्रहण या उपराग में सूर्य अथवा चंद्रमा पर छाया पड़ने का आरंभ ।