स्यन्दन
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]स्यंदन ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ स्पन्दन]
१. चूना । टपकना । रसना । क्षरण । स्त्राव ।
२. गलना । पानी हो जाना ।
३. रथ । गाड़ी ।
४. जाना । चलना । गमन ।
५. तेजी से जाना या बहना ।
६. युद्ध रथ । विशेषतः युद्ध में काम आनेवाला रथ । उ॰—चढ़ि स्यंदन चंदन सीस दै बंदन करि द्विजवर पदहिं । नंदनँदनपुर तकतो भयो सुभट सुसर्मा धरि मदहि । —गोपाल (शब्द॰) ।
७. वायु । हवा ।
८. गत उत्सार्पिणी के २३ वें अर्हत् का नाम । (जैन) ।
९. तिनिश वृक्ष । तिनसुना ।
१०. जल ।
११. चित्र । तसवीर ।
१२. घोड़ा । तुरंग ।
१३. एक प्रकार का मंत्र जिससे अस्त्र अभिमंत्रित किए जाते थे ।
१४. तेंदू । तिंदुक वृक्ष ।
स्यंदन ^२ वि॰
१. जल्दी से जानेवाला । तीव्रगामी । द्रुतगामी ।
२. चुस्त । फुर्तीला ।
३. प्रवाहित होने या बहनेवाला । गलनेवाला ।
४. क्षरणशील । रसनेवाला [को॰] ।
स्यंदन तैल संज्ञा पुं॰ [सं॰ स्यदन्न तैल] वैद्यक में एक प्रकार की तैलौषध जो भगंदर के लिये उपकारी मानी जाती है । विशेष—इसके बनाने की विधि इस प्रकार है —चीता, आक, किसौत, पाढ़, कठूमर, सफेद कनेर, थूहर, हरताल, कलिहारी, बच, सज्जी, और मालकँगनी, इन सबका कल्क, जो कुल मिलाकर एक सेर हो, ४ सेर तिल के तेल में पकाया जाता है । इसके लगाने से भगंदर सूख जाता है । इसे निस्यंदन तैल भी कहते हैं ।