स्वधर्म
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]स्वधर्म संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. अपना धर्म । अपना कर्मव्य । कर्म ।
२. अपनी निजता या विशेषता । यौ॰—स्वधर्मच्युत = अपने धर्म, कर्तव्य या विशेषता से रहित । स्वधर्म से गिरा हुआ । स्वधर्मत्याग = अपने कर्म का परित्याग करना । स्वधर्मत्यागी = स्वधर्म का परित्याग कर अन्य धर्म स्वीकार करनेवाला । स्वधर्मवर्ती = अपने कर्तव्य या कर्म में लगा रहनेवाला । स्वधर्मस्खलन = कर्तव्य कर्म की उपेक्षा करना । स्वधर्मस्थ = अपने कर्म में लगा हुआ ।