हंढना पुं क्रि॰ अ॰ [हिं॰ हंडना]दे॰ 'हंडना' । उ॰—कबीर सब जग हंढिया मंदिल कंधि चढाइ । हरि बिन अपनाँ को नहीं, देखे ठोकि बजाइ । —कबीर ग्र॰ पृ॰ ६१ ।