हठयोग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

हठयोग संज्ञा पुं॰ [सं॰] वह योग जिसमें चित्तवृत्ति हठात् बाह्म विषयों से हटाकर अंतर्मुख की जाती है और जिसमें शरीर को साधने के लिये बड़ी कठिन कठिन मुद्राओं और आसनों आदि का विधान है । विशेष—नेती, धौती आदि क्रियाएँ इसी योग के अंतर्गत हैं । कायव्यूह का भी इसमें विशेष विस्तार किया गया है और शरीर के भीतर कुंडलिनी, अनेक प्रकार के चक्र तथा मणिपूर आदि स्थान माने गए हैं । स्वात्माराम की 'हठप्रदीपिका' इसका प्रधान ग्रंथ माना जाता है । मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ इस योग के मुख्य आचार्य हो गए है । गोरखनाथ ने एक पंथ भी चलाया है जिसके अनुयायी कनफटे कहलाते हैं । पतंजलि के योग के दार्शनिक अंश को छोड़कर उसकी साधना के अंश को लेकर जो विस्तार किया गया है, वही हठयोग है ।