हरताल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

हरताल संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ हरिताल] एक खनिज पदार्थ जिसमें सौ में ६१ भाग संखिया और ३९ भाग गंधक का रहता है । विशेष—यह खनिज पदार्थ एक उपधातु है जो खानों में रोड़ों के रूप में स्वाभाविक मिलता है और बनाया भी जा सकता है । यह पीले रंग का और चमकीला होता है । इसमें गंधक और संखिया दोनों के सम्मिलित गुण होते हैं । वैद्य लोग इसको शोध कर गलित कुष्ट, वातरक्त आदि रोगों में देते हैं जिससे घाव भर जाते हैं । आयुर्वेद में हरताल की गणना उपधातुओं में है । इसमें स्याही या रंग उड़ाने का गुण होता है, इससे पुराने समय में पोथी लिखनेवाले किसी शब्द या अक्षर को उड़ाने के स्थान पर उसपर घुली हुई हरताल लगा देते थे जिससे कुछ दिनों में अक्षर उड़ जाते थे । रँगाई में भी इसका व्यवहार होता है और छींट छापनेवाले भी अपनी प्रक्रिया में इसका व्यवहार करते हैं । पर्या॰—पिंजर । ताल । गोदंत । विड़ालक । चित्रगंध । मुहा॰—(किसी बात पर) हरताल लगाना या फेरना=नष्ट करना । किया न किया बराबर करना । रद्द करना । जैसे,— तुमने तो मेरे सब कामों पर हरताल फेर दी ।