हरि

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हिन्दी[सम्पादन]

संज्ञा[सम्पादन]

[पुल्लिंग]; भगवान, ईश्वर, परमपुरुष |

अर्थ[सम्पादन]

हिन्दुओं के एक प्रमुख भगवान जो सृष्टि का पालन करने वाले माने जाते हैं।

उदाहरण[सम्पादन]

१. कबिरा ते नर अंध है, गुरु को समझे और।
हरि रूठे गुरु शरण हैं, गुरु रूठे नहीं ठौर।।
२. कबीर हरि की भगति बिन, ध्रिग जीवन संसार।
धूँवाँ केरा धौलहर, जातन लागै बार।

पर्यायवाची[सम्पादन]

अंबरीष, अक्षर, अच्युत, अनीश, अन्नाद, अब्धिशय, अब्धिशयन, अमरप्रभु, अमृतवपु, अम्बरीष, अरविंद नयन, अरविन्द नयन, अरुण-ज्योति, अरुणज्योति, असुरारि, इंदिरा रमण, कमलनयन, कमलनाभ, कमलनाभि, कमलापति, कमलेश, कमलेश्वर, कुंडली, कुण्डली, केशव, कैटभारि, खगासन, खरारि, खरारी, गजाधर, गरुड़गामी, गरुड़ध्वज, चक्रधर, चक्रपाणि, चक्रेश्वर, चिरंजीव, जगदीश, जगदीश्वर, जगद्योनि, जगन्, जनार्दन, जनेश्वर, डाकोर, त्रिलोकीनाथ, त्रिलोकेश, त्रिविक्रम, दम, दामोदर, देवाधिदेव, देवेश्वर, धंवी, धन्वी, धातृ, धाम, नारायण, पद्म-नाभ, पद्मनाभ, पुंडरीकाक्ष, फणितल्पग, बाणारि, बैकुंठनाथ, मधुसूदन, महाक्ष, महागर्भ, महानारायण, महाभाग, महेंद्र, महेन्द्र, माधव, माल, रत्ननाभ, रमाकांत, रमाकान्त, रमाधव, रमानाथ, रमानिवास, रमापति, रमारमण, रमेश, लक्ष्मीकांत, लक्ष्मीकान्त, लक्ष्मीपति, वंश, वर्द्धमान, वर्धमान, वसुधाधर, वारुणीश, वासु, विधु, विभु, विश्वंभर, विश्वकाय, विश्वगर्भ, विश्वधर, विश्वनाभ, विश्वप्रबोध, विश्वबाहु, विश्वम्भर, विष्णु, वीरबाहु, वैकुंठनाथ, व्यंकटेश्वर, शतानंद, शतानन्द, शारंगपाणि, शारंगपानि, शिखंडी, शिखण्डी, शुद्धोदनि, शून्य, शेषशायी, श्रीकांत, श्रीकान्त, श्रीनाथ, श्रीनिवास, श्रीपति, श्रीरमण, श्रीश, सत्य-नारायण, सत्यनारायण, सर्व, सर्वेश्वर, सहस्रचरण, सहस्रचित्त, सहस्रजित्, सारंगपाणि, सुप्रसाद, सुरेश, स्वर्णबिंदु, स्वर्णबिन्दु, हिरण्यकेश, हिरण्यगर्भ, हृषिकेश, हृषीकेश

अर्थ[सम्पादन]

यदुवंशी वसुदेव के पुत्र जो विष्णु के मुख्य अवतारों में से एक हैं।

उदाहरण[सम्पादन]

सूरदास कृष्ण के परम भक्त थे।

पर्यायवाची[सम्पादन]

अच्युत, अनंत-जित्, अनंतजित्, अनन्त-जित्, अनन्तजित्, अरिकेशी, अहिजित, कंसारि, कन्हैया, कमलनयन, कान्हा, कामपाल, कालियमर्दन, किशन, कुंजबिहारी, कृष्ण, कृष्णचंद्र, केशव, खरारि, खरारी, गरुड़गामी, गिरधर, गिरधारी, गिरिधर, गिरिधारी, गुपाल, गोपाल, गोपीश, गोपेश, गोविंद, गोविंदा, गोविन्द, गोविन्दा, घनश्याम, तुंगीश, दामोदर, द्वारकाधीश, द्वारकानाथ, द्वारकेश, द्वारिकाधीश, द्वारिकानाथ, नंदकिशोर, नंदकुँवर, नंदकुमार, नंदनंदन, नंदलाल, नटराज, नन्दकिशोर, नन्दकुँवर, नन्दकुमार, नन्दनन्दन, नन्दलाल, नरनारायण, नवलकिशोर, पीतवास, पूतनारि, पूतनासूदन, बकवैरी, बनवारी, बलबीर, ब्रजबिहारी, मंजुकेशी, मधुसूदन, मनमोहन, माधव, मुकुंद, मुकुन्द, मुरली मोहन, मुरलीधर, मुरलीवाला, मुरारी, मोहन, यवनारि, यादवेंद्र, यादवेन्द्र, योगीश, योगीश्वर, योगेश, योगेश्वर, राधारमण, रासबिहारी, वंशीधर, वंशीधारी, वनमाली, वासुदेव, विट्ठलदेव, विपिन विहारी, विश्वपति, वृषदर्भ, वृषनाशन, वृष्णि, वृष्णिक-गर्भ, वेदबाहु, वेदाध्यक्ष, शकटहा, शकटारि, शतानंद, शतानन्द, शवकृत, शिखंडी, शिखण्डी, श्याम, श्रीकृष्ण, सोमेश, सोमेश्वर, हृषीकेश

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

हरि जू इते दिन कहाँ लगाए । तबाहिँ अवधि मैं कहत न समुझी गनत अचानक आए ।—सूर॰ ,१० ।४२८८ । (ख) नाचि अचानक हीँ उठे बिनु पावस बन मोर ।—बिहारी र॰, दो॰ ४६९ ।

हरि ^१ वि॰ [सं॰]

१. पिंगल (वर्ण) । भूरा या बादामी ।

२. पीला ।

३. हरे रंग का । हरा । हरित् ।

४. हरीतिमायुक्त पीला ।

५. वहन करनेवाला । ढोने या ले जानेवाला (को॰) ।

हरि ^२ संज्ञा पुं॰

१. विष्णु । भगवान् ।

२. इंद्र ।

३. घोड़ा ।

४. बंदर या बनमानुस ।

५. सिंह ।

६. सिंह राशि ।

७. सूर्य ।

८. किरण ।

९. चंद्रमा ।

१०. गीदड़ ।

११. शुक । सूआ । तोता ।

१२. मोर । मयूर ।

१३. कोकिल । कोयल ।

१४. हंस ।

१५. मेढक । मंडूक ।

१६. सर्प । साँप ।

१७. अग्नि । आग ।

१८. वायु ।

१९. विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ।

२०. श्रीराम । उ॰—हरि हित हरहु चाप गरुआई ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२१. शिव ।

२२. यम ।

२३. शुक्र ।

२४. गरुड के एक पुत्र का नाम ।

२५. एक पर्वत का नाम ।

२६. एक वर्ष या भूभाग का नाम ।

२७. अठारह वर्णों का एक छंद या वृत्त । उ॰—बानर गन बानन सन केशव जबहीं मुरयौ । रावन दुखदावन जगपावन समुहें जुरयो (शब्द॰) ।

२८. बौद्धशास्त्रों में एक बड़ी संख्या का नाम ।

२९. ब्रह्मा का नाम (को॰) ।

३०. मनुष्या मनुज । मानव (को॰) ।

३१. भर्तृहरि कवि ।

३२. उच्चैश्रवा । इंद्र का अश्व (को॰) ।

३३. पीत वर्ण या हरापन लिए पीला रंग [को॰] ।

३४. एक लोक का नाम (को॰) ।

३४. तामस मन्वंतर के एक देववर्ग का नाम (को॰) ।

हरि पु ^३ वि॰ [फा॰ हर] प्रत्येक । उ॰—कहेसि ओहि सँवरौं हरि फेरा ।—जायसी ग्रं॰, पृ॰ १११ ।

हरि पु ^४ अव्य॰ [हिं॰ हरुए] धीरे । आहिस्ते । उ॰—सूखा हिया हार भा भारी । हरि हरि प्रान तजहिं सब नारी—जायसी (शब्द॰) । यौ॰—हरि हरि=धोरे धीरे । शनैः शनैः ।