हरिन

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हरिन

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

हरिन संज्ञा पुं॰ [सं॰ हरिण] [स्त्री॰ हरिणी] खुर और सींगवाला एक चौपाया जो प्रायः सुनसान मैदानों, जंगलों और पहाड़ों में रहता है । मृग । विशेष—हरिन की बहुत जातियाँ होती हैं, जैसे—कृष्णसार, एण, कस्तूरी मृग, बारहसिंगा, साँभर इत्यादि । यह जंतु अपनी तेज चाल, कुदान और चंचलता के लिये प्रसिद्ध है । यह झुंड बाँधकर रहता है और स्वभावतः डरपोक होता है । मादा हरिन के सींग नहीं बढ़ते, अंकुर मात्र रह जाते हैं, इसी से पालनेवाले अधि कतर मादा हरिन पालते हैं । इसकी आँखें बहुत बड़ ी बड़ी और काली होती हैं; इसी से कवि लोग बहुत दिनों से स्त्रियों के सुंदर नेत्रों की उपमा इसकी आँखों से देते आए हैं । शिकार भी जितना इस जंतु का संसार में हुआ और होता है, उतना शायद ही और किसी पशु का होता हो । 'मृगया' जिस प्रकार यहाँ राजाओं का एक साधारण व्यसन रहा है, उसी प्रकार और देशों में भी । हिंदुओं के यहाँ इसका चमड़ा बहुत पवित्र माना जाता है, यहाँ तक कि उपनयन संस्कार में भी इसका व्यवहार होता है । प्राचीन ऋषिमुनि भी मृगचर्म धारण करते थे और आजकल के साधु संन्यासी भी ।