हाँक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]हाँक संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ हुङ्कार]
१. किसी को बुलाने के लिये जोर से निकाला हुआ शब्द । जोर की पुकार । उच्च स्वर से किया हुआ संबोधन । यौ॰—हाँक पुकार । मुहा॰—हाँक देना या हाँक लगाना = जोर से पुकारना । हाँक मारना = दे॰ 'हाँक देना' या 'हाँक लगाना' । हाँक पुकारकर कहना = डंके की चोट कहना । सबके सामने निर्भय और निस्सं- कोच कहना । सबको सुनाकर कहना ।
२. लड़ाई में धावा या आक्रमण करते समय गर्वसूचक चिल्लाहट । डाँट । दपट । ललकार । हुंकार । गर्जन । उ॰—रजनिचर घरनि घर गर्भ अर्भक स्रवत सुनत हनुमान की हाँक बाँकी ।—तुलसी (शब्द॰) ।
३. बढ़ावे का शब्द । उत्साह दिलाने का शब्द । बढ़ावा । उ॰—तुलसी उत हाँक दसानन देत, अचेत भै बीर को धीर धरै ।—तुलसी (शब्द॰) ।
४. सहायता के लिये की हुई पुकार । दुहाई । उ॰—बसत श्री सहित बैकुंठ के बीच गजराज की हाँक पै दौरि आए ।—सूर (शब्द॰) ।