हाँकना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

हाँकना क्रि॰ स॰ [हिं॰ हाँक + ना (प्रत्य॰)]

१. जोर से पुकारना । चिल्लाकर बुलाना ।

२. ललकारना । लड़ाई में धावे के समय गर्व से चिल्लाना । हुकार करना । उ॰—भूमि परे भट घूमि कराहत, हाँकि हने हनुमान हठीले ।—तुलसी (शब्द॰) ।

३. बढ़ बढ़कर बोलना । लंबी चौड़ी बातें कहना । सीटना । जैसे—(क) हमारे सामने वह इतना नहीं हाँकता । (ख) शेखी हाँकना । डींग हाँकना । (ग) वह दुकानदार बहुत दाम हाँकता है ।

४. मुँह से बोलकर या चाबुक आदि मारकर जानवरों (घोड़े, बैल आदि) को आगे बढ़ाना । जानवरों को चलाना । जैसे,—बैल हाँकना । उ॰—हाँकि हाँकि दलनि दनाइ दहपट्टी हते, बाजी औ वितुंड झुंड झूमत खरे जे हैं ।— हम्मीर॰, पृ॰ ५७ ।

५. खींचनेवाले जानवर को चलाकर गाड़ी, रथ आदि चलाना । गाड़ी चलाना । उ॰—खोज मारि रथ हाँकहु ताता ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. मारकर या बोलकर चौपायों को भगाना । चौपायों को किसी स्थान से हटाना । जैसे,—खेत में गाएँ खड़ी हैं, हाँक दो । संयो॰ क्रि॰—देना ।

७. पंखा हिलाना । बीजन डुलाना । झलना ।

८. पंखे से हवा पहुँचाना । हवा करना । जैसे,—मुझे मत हाँको, उन लोगों को हाँको ।