हाड़ी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

हाड़ी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ हाडिका]

१. जमीन में पत्थर गाड़कर बनाया हुआ गड्ढा जिसमें अनाज रखकर साफ करने के लिये मूसल से कूटते हैं ।

२. वह गड्ढेदार पत्थर जिसपर रखकर पीटने से पीतल आदि की चद्दर कटोरेनुमा बन जाती है ।

हाड़ी ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ आडि]

१. एक प्रकार का बगला ।

२. काक । काग । कौआ ।

हाड़ी ^४ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰?] निम्न श्रेणी की एक जाति । उ॰— इन पेशेवाली जातियों से भी नीचे हाड़ी, डोम, चांडाल और विधातू थे ।—अकबरी॰, पृ॰ ६ ।

[[जाति: हिन्दी-प्रकाशितकोशों से अर्थ हाडी ( HARI / HADI / HADDI )एक अति प्राचिन भातीय मूलनिवासी जाति है जिनका जिक्र विदेशीयो इतिहासकारो द्वारा भारतीय इतिहास के स्रोत मे मिलता है । हाडी वह उपेक्षित भारतीय समुदाय है जिन्हे हिन्दु वर्ण व्यवस्था तक मे स्थान प्राप्त नही था । इस समुदाय को वर्ण व्यवस्था से बाहर रखा गया था । इनको व्यपार , कृषि , विद्या ,अच्छी भोजन यहा तक की धन रखने का अधिकार तक नही था । ये लोग गाँव , नगर , कस्बो के बाहर झुग्गी झोपडा बना कर जिवन यापन करते थे उनके घरो मे विशेष चिन्ह हुआ करते थे ताकि अन्य समुदाय के लोगो को यह मालुम चल सके की ये घरें हाडी जातियों का है ओर अन्य लोग वहा से दुर रहें

गाँव , शहरो के सडको पर उनलोगो को अनुमति नही थी सिर्फ दोपहर के समय वे लोग सडको पर आते थे व भी उनलोगो को आते समय जोर जोर से आवाज निकालनी होती थी , ताकि अन्य लोग उसको न देख सके ।

उनलोगो को कही कही कमर मे झाडु व गले मे मटका ( मिट्टी की हांडी /मिट्टी का छोटा घडा )बाधकर रखना होता था ताकि उनके पद चिन्ह सडको पर न रहे, कमर की झाडु से पद चिन्ह मिट जाए ओर थुकने के लिए गले मे हांडी ताकि वह कही थुक न सके ।

हाडी जाति के लोग गाँव , नगर व कस्बे के सडक को साफ सफाई , मरे हुए पशु मवेशियो को हटाने का कार्य आदि घृणित कार्य कर अपने ओर अपने परिवार का लालन पालन किया करते थे शब्दसागर]]