हाय
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]हाय ^१ प्रत्य॰ [सं॰ हा]
१. शोक और दुःख सूचित करनेवाला एक शब्द । घोर दुःख या शोक में मुँह से निकलनेवाला एक शब्द । आह ।
२. कष्ट और पीड़ा सूचित करनेवाला शब्द । शारीरिक व्यथा के समय मुँह से निकलनेवाला शब्द । क्रि॰ प्र॰—करना । यौ॰—हाय तोबा=हाय हाय करना । चिल्ल पों मचाना । उ॰— बड़ी हायतोबा के बाद वह टाँगे पर बैठी । —पिंजड़े॰, पृ॰ ५९ । मुहा॰—हाय करके या हाय मारकर रह जाना=निरुपाय होकर कष्ट सहन करना । हाय मारना=(१) शोक से हाय हाय करना । कराहना । (२) दहल जाना । स्तंभित हो जाना ।
हाय ^२ संज्ञा स्त्री॰
१. कष्ट । पीड़ा । दुःख । जैसे,—गरीब की हाय का फल तुम्हारे लिये अच्छा नहीं । उ॰—तुलसी हाय गरीब की हरि सों सही न जाय । (चलित) (शब्द॰) । मुहा॰—(किसी की) हाय पड़ना=पहुँचाए हुए दुःख या कष्ट का बुरा फल मिलना । जैसे,—इतने गरीबों की हाय पड़ रही है, उसका कभी भला न होगा ।
२. जलन । ईर्ष्या । डाह । मुहा॰—हाय करना, हाय होना=किसी की उन्नति, धन संपत्ति, संमान आदि देखकर ईर्ष्या करना ।
हाय भाय पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ हाव+भाव] भावभंगिमा । मुद्रा । हावभाव । उ॰—अद्रभुत अकह अनुप अनंत हायभायनि की, लुरति लरी की लरी भरी अति चितचायनि की । —रत्नाकर, भा॰ १, पृ॰ १५ ।
हाय हाय ^१ अव्य॰ [सं॰ हा हा] शोक, दुःख या शारीरिक कष्ट- सूचक शब्द ।दे॰ 'हाय' । उ॰—सुनि कटु बचन कुठार सुधारा । हाय हाय सभा पुकारा । —मानस, १ । २७६ ।
हाय हाय ^२ संज्ञा स्त्री॰
१. कष्ट । दुःख । पीड़ा । शोक ।
२. व्याकुलता । घबराहट । आकुलता । परेशानी । झंझट । जैसे,—(क) तुम्हें तो रुपए के लिये सदा हाय हाय रहती है । (ख) जिंदगी भर यह हाय हाय न मिटेगी ।