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हिंदू

विक्षनरी से

संज्ञा

पु./ स्त्री.

  1. धर्म, हिंदुत्व

अनुवाद

विशेषण

पु./ स्त्री.

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

हिंदू संज्ञा पुं॰ [सं॰ फ़ा॰] भारतवर्ष में बसनेवाली आर्य जाति के वंशज जो भारत में प्रवर्तित या पल्लवित आर्य धर्म, संस्कार और समाजव्यवस्था को मानते चले आ रहे हों । वेद, स्मृति, पुराण आदि अथवा इनमें से किसी एक के अनुसार चलनेवाला । भारतीय आर्य धर्म का अनुयायी । विशेष—यह नाम प्राचीन पारसियों का दिया हुआ है जो उनके द्बारा संसार में सर्वत्र प्रचलित हुआ । प्राचीन भारतीय आर्य अपनी धर्मव्यवस्था को 'वर्णाश्रम धर्म' के नाम से पुकारते थे । प्राचीन अनार्य द्रविड़ जातियों को उन्होंने अपने समाज में मिलाया, पर उन्हें अपनी वर्णव्यवस्था के भीतर करके अर्थात् सिद्धांत रूप में किसी आर्य ऋषि, राजा इत्यादि की संतति मानकर । पीछे शक, हूण और यवन आदि भी जो मिले, वे या तो वसिष्ठ ऋषि द्बारा उत्पन्न (गाय से सही) वीरों के वंशज माने जाकर अथवा ब्राह्मणों के अदर्शन से पतित क्षत्रिय माने जाकर । सारांश यह कि भारतीय आर्य अपनी धर्मव्यवस्था को मजहब की तरह फैलाते नहीं थे, आसपास की या आई हुई जातियाँ उसे सभ्यता के संस्कार के रूप में आपसे आप ग्रहण करती थीं । प्राचीन काल में आर्य सभ्यता के दो केंद्र थे-भारत और पारस । इन दोनों में भेद बहुत कम (दे॰ 'हिंद') था । हूणों ने पहले पारसी सभ्यता ग्रहण की, फिर भारत में आकर वे भारतीय आर्यों से मिले । शक जाति तो आर्य जाति की ही एक शाखा थी । पीछे जब पारस के निवासी मुसलमान हो गए तब उन्होंने 'हिंदू' शब्द के साथ 'काफिर', 'काला', लुटेरा आदि कुत्सित अर्थों की योजना की । जब तक वे आर्य धर्म के अनुयायी रहे, तब तक 'हिंदू' शब्द का प्रयोग आदर के साथ 'हिंद के निवासी' के अर्थ में ही करते थे । यह शब्द इसलाम के प्रचार के बहुत पहले का है (दे॰ 'हिंद') । अतः पीछे से मुसलमानों के बुरे अर्थ की योजना करने से यह शब्द बुरा नहीं हो सकता । भविष्य पुराण 'हप्तहिंदु' शब्द का उल्लेख करता है । कालिका पुराण, राम कोश, हेमंत कवि कोश, अद् भुतरूप कोश, मेरुतंत्र (आठवीं शताब्दी आदि), कृछ आधुनिक ग्रंथों में इस शब्द को संस्कृत सिद्ध करने का जो प्रयत्न किया गया है, उसे कल्पना मात्र ही समझना चाहिए ।

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