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हिया

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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हिया संज्ञा पुं॰ [सं॰ हृदय, प्रा॰ हिअअ]

१. हृदय । मन । उ॰— (क) अब धौं बिनु प्रानप्रिया रहिहैं कहि कौन हितु अवलंब हिये ।—केशव (शब्द॰) । (ख) साथ सखी के नई दुलही को भयो हरि कौ हियो बेरि हिमंचल । आय गए मतिराम तहाँ घरु जानि इकंत अनंद ते चंचल ।—मति॰ ग्रं॰, पृ॰ २७७ ।

२. छाती । वक्षस्थल । उ॰—(क) बनमाल हिये अरु विप्रलात ।—केशव (शब्द॰) । (ख) हिया थार, कुच कंचन लाडु ।— जायसी । (शब्द॰) । मुहा॰—हिये का अंधा=अज्ञान । मूर्ख । हिये की फुटना=ज्ञान न रहना । अज्ञान रहना । बुद्धि न होना । हिया शीतल या ठंढा होना=मन में सुख शांति होना । मन तृप्त और आनंदित होना । हिया जलना=अत्यंत क्रोध में होना । उ॰—क्रुर कुठार निहारि तजै फल ताकि यहै जो हियो जरई ।—केशव (शब्द॰) । हिये लगना=गले से लगना । छाती से लगना । आलिंगन करना । उ॰—क्यों हठि मान गहै सजनी उठि बेगि गोपाल हिये किन लागै?—शंकर (शब्द॰) । हिये में लोन सा लगना=बहुत बुरा लगना । अत्यंत अरुचिकर होना । उ॰—सुनत रुखि भई रानी, हिये लोन अस लाग ।—जायसी (शब्द॰) । हिये पर पत्थर धरना=दे॰ 'कलेजे पर पत्थर धरना' । हिया फटना= कलेजा फटना । अत्यंत शोक या दुःख होना । हिया भर आना= कलेजा भर आना । शोक या दुःख का हृदय में अत्यंत वेग होना । हिया भर लेना=दुःख से लंबी साँस लेना । विशेष दे॰ मुहा॰ 'जी' और 'कलेजा' ।