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हेत

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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हेत पु ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ हेतु] कारण । प्रयोजन । दे॰ 'हेतु' । उ॰— कामिनि मुद्रा काम की सकल अर्थ कौ हेत । मूरख याको तजत हैं झूठे फल कौ हेत ।—ब्रज॰ ग्रं॰, पृ॰ ९६ ।

हेत पु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ हित]

१. प्रेमसंबंध । अनुराग । प्रीति । प्रेम । उ॰—(क) देखौ करनी कमल की (रे) कीन्हौँ रबि सौँ हेत । प्रान तज्यौ प्रेम न तज्यौ (रे) सूख्यौ सलिल समेत ।—सूर॰, १ ।३२५ । (ख) इहिँ बिधि रहसत बिलसत दंपति हेत हियैँ नहिँ थोरे । सूर उमगि आनंद सुधानिधि मनु बेला फल फोरै । सूर॰, १० ।७३२ ।

२. श्रद्धाभाव । अनुराग । उ॰—जज्ञभाग नहिँ लियौ हेत सौँ रिषिपति पतित बिचारे । भिल्लिनि के फल खाए भाव सौँ खाटे मीठे खारे ।—सूर॰, १ ।२५ ।