हेतु
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]हेतु ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वह बात जिसे ध्यान में रखकर कोई दूसरी बात की जाय । प्रेरक भाव । अभिप्राय । लक्ष्य । उद्देश्य । जैसे,—(क) उसके आने का हेतु क्या है ? (ख) तुम किस हेतु वहाँ जाते हो ?
२. वह बात जिसके होने से ही कोई दूसरी बात हो । कारक या उत्पादक विषय । कारण । वजह । सबब । जैसे,—दूध बिगड़ने का हेतु यही है । उ॰—(क) कौन हेतु वन बिचरहु स्वामी ? —तुलसी (शब्द॰) । (ख) केहि हेतु रानि रिसाति परसत पानि पतिहि निवारई ।—तुलसी (शब्द॰) ।
३. वह व्यक्ति या वस्तु जिसके होने से कोई बात हो । कारक व्यक्ति या वस्तु । उत्पन्न करनेवाला व्यक्ति या वस्तु । उ॰—महों सकल अनरथ कर हेतू ।—तुलसी (शब्द॰) ।
४. वह बात जिसके होने से कोई दूसरी बात सिद्ध हो । प्रमाणित करनेवाली बात । ज्ञापक विषय । जैसे,—जो हेतु तुमने दिया, उससे यह सिद्ध नहीं होता । विशेष—न्याय में तर्क के पाँच अवयवों में से 'हेतु' दूसरा अवयव है, जिसका लक्षण है—उदाहरण के साधर्म्य या वैधर्म्य से साध्य के धर्म का साधन । जैसे,—प्रतिज्ञा—यह पर्वत वह्निमान् है । हेतु—क्योंकि वह धूमवान् है । उ॰—जो धूमवान् होता है, वह वह्निमान् होता है; जैसे,—रसोईंघर ।
५. तर्क । दलील । यौ॰—हेतुविद्या, हेतुशास्त्र, हेतुवाद ।
६. मूल कारण । (बौद्ध) । विशेष—बौद्ध दर्शन में मूल कारण के 'हेतु' तथा अन्य कारणों को प्रत्यय कहते हैं ।
७. बाह्म संसार और उसका विषय । बाह्य जगत् और चेतना (को॰) ।
८. मूल्य । दाम । अर्घ (को॰) ।
९. एक अर्थालंकार जिसमें हेतु और हेतुमान् का अभेद से कथन होता है, अर्थात् कारण ही कार्य कह दिया जाता है । जैसे,—घृत ही बल है । उ॰—मो संपति जदुपति सदा बिपति बिदारनहार । (शब्द॰) । विशेष—ऊपर दिया हुआ लक्षण रुद्रट का है, जिसे साहित्य- दर्पणकार ने भी माना है । कुछ आचार्यों ने किसी चमत्कार- पूर्ण हेतु के कथन को ही 'हेतु' अलंकार माना है और किसी किसी ने उसको काव्यलिंग भी कहा है ।
हेतु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ हित]
१. लगाव । प्रेम संबंध ।
२. प्रेम । प्रीति । अनुराग । उ॰—पति हिय हेतु अधिक अनुमानी । बिहँसि उमा बोली प्रिय बानी ।—तुलसी (शब्द॰) ।