हैहय

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

हैहय संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक क्षत्रिय वंश जो यदु से उत्पन्न कहा गया है । विशेष—पुराणों में इस वंश की पाँच शाखाएँ कही गई हैं —ताल- जंघ, वीतिहोत्र, आवंत्य, तुंडिकेर और जात । लिखा है कि हैहयों ने शकों के साथ साथ भारत के अनेक देशों के जीता था । प्राचीन काल का इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन हुआ था जिसे सहस्त्र भुजाएँ थीं । इसने परशुराम के पिता जमदग्नि को मारकर उनकी गायों का हरण कर लिया जिससे क्रुद्ध हो परशुराम ने इसे मारा था । इतिहास में हैहय वंश कलचुरि के नाम से प्रसिद्ध है । विक्रम संवत् ५५० और ७९० के बीच हैहयों का राज्य चेदि देश और गुजरात में था । है हयों ने एक संवत् भी चलाया था जो कलचुरि संवत् कहलाता था और विक्रम संवत् ३०६ से आरंभ होकर १४ वीं शताब्दी तक इधर उधर चलता रहा । हैहयों का श्रृंखलाबद्ध इतिहास विक्रम संवत् ९२० के आसपास मिलता है, इसके पूर्व चालुक्यों आदि के प्रसंग में इधर उध र हैहयों का उल्लेख मिलता है । कोकल्लदेव (वि॰ सं॰ ९२०- ९६०) मु्ग्धतुंग, बालहर्ष, केयूरवर्ष (वि॰ सं॰ ९९० के लगभग); शंकरगण युवराजदेव (वि॰ सं॰ १०५० के लगभग), गागेयदेव, कर्णदेव आदि बहुत से हैहय राजाओं के नाम शिला- लेखों में मिलते हैं ।

२. हैहयवंशी कार्तवीर्य सहस्रार्जुन ।

३. एक देश का नाम जहाँ हैहय जाति का निवास था ।

४. बृहत्संहिता के अनुसार पश्चिम दिशा का एक पर्वत ।