ह्वाँ † अव्य॰ [हिं॰ वहाँ]दे॰ 'वहाँ' । उ॰—ना इततें कोउ जाय न ह्वातें आवई । सुंदर विरहिनि दुःखन रैनि बिहावई ।—सुंदर॰ ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ३६४ ।