हृदय
संज्ञा
- शरीर में रक्त शुद्ध करने का कार्य करने वाला हिस्सा, दिल
उच्चारण
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
हृदय संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. छाती के भीतर बाईं ओर स्थित मांसकोश या थैली के आकार का एक भीतरी अवयव जिसमें स्पंदन होता है और जिसमें से होकर शुद्ध लाल रक्त नाड़ियों के द्बारा सारे शरीर में संचार करता है । दिल । कलेजा । विशेष दे॰ 'कलेजा' । मुहा॰—हृदय धड़कना = (१) हृदय का स्पंदन करना या कूदना (२) भय या आशंका होना ।
२. छाती । वक्षस्थल । मुहा॰—हृदय से लगाना = आलिंगन करना । भेंटना । हृदय विदीर्ण होना = अत्यंत शोक होना । विशेष दे॰ 'छाती' ।
३. अंतःकरण का रागात्मक अंग । प्रेम, हर्ष, शोक, करुणा, क्रोध आदि मनोविकारों का स्थान । जैसे,—उसे हृदय नहीं हैं, तभी ऐसा निष्ठुर कर्म करता है । मुहा॰—हृदय उमड़ना = मन में प्रेम, शोक या करुणा का वेग उत्पन्न होना । हृदय भर आना = दे॰ 'हृदय उमड़ना' । विशेष दे॰ 'जी' और 'कलेजा' ।
४. अंतःकरण । मन । जैसे,—वह अपने हृदय की बात किसी से नहीं कहता । मुहा॰—हृदय की गाँठ = (१) मन का दु्र्भाव । (२) कपट । कुटिलता । विशेष दे॰ 'जी' और 'मन' ।
५. अंतरात्मा । आत्मा ।
६. विवेकबुद्धि । जैसे,—हमारा हृदय गवाही नहीं देता । (७) किसी वस्तु का सार भाग ।
८. तत्व । सारांश ।
९. गुह्य बात । गूढ़ रहस्य ।
१०. वेद (को॰) ।
११. अहंकार (को॰) ।
१२. अत्यंत प्रिय व्यक्ति । प्राणाधार ।