कनक
संज्ञा
कनक साँचा:स्त्री
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
कनक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. सोना । सुवर्ण । स्वर्ण । उ॰—अन्न कनक भाजन भरि जाना । दाइज दीन्ह न जाइ बखाना ।—मानस, १ ।१०१ । यौ॰—कनककदली । कनककार । कनकक्षार । कनकाचल । कनकवल्ली=स्वर्ण लता या सोने की बेल । उ॰—मानहु सुर कनकबल्ली जुरि, अमृत बुँद पवन मिस झारति ।—सूर॰, १० । १७५३ । कनरेखा=सूर्य की आभा से प्रभात या सायंकाल आकाश में पड़नेवाली सुनहली रेखा । उ॰—प्रथम कनकरेखा प्राची के भाल पर ।—अनामिका, पृ॰ ७७ ।
२. धतूरा । उ॰—कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय ।— बिहारी (शब्द॰) ।
३. पलास । टेसू । ढाक ।
४. सनागकेसर ।
५. खजूर ।
६. छप्पय । छंद का एक भेद ।
७. चंपा (को॰) ।
८. कालीय नाम का वृक्ष (को॰) ।
कनक ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कणिक=गेँहूँ का आटा]
१. गेहूँ का आटा कनिक ।
२. गेहूँ ।
कनक ^३ संज्ञा स्त्री॰ [फा॰ खुनुकी] नमी । आर्द्रता । शीतलता । उ॰—रात भीज जाने से हवा में कनक आ गई थी ।—अभिशप्त, पृ॰ १२६ ।