डोर
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संज्ञा
- दोनों ओर से जुड़ा धागा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
डोर संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. डोरा । तागा । रस्सी । सूत । उ॰—डीठि डोर नैना दही, छिरकि रूप रस तोय । मथि मो घट प्रीतम लियो मन नवनीत बिलोय ।—रसनिधि (शब्द॰) ।
२. पतंग या गुड्डी उड़ाने का माँझेदार तागा ।
३. सिलसिला । कतार ।
४. अवलंब । सहारा । लगाव । मुहा॰—डोर पर लगाना = रास्ते पर खाना । प्रयोजनसिद्धि के अनुकूल करना । ढ़ब पर लाना । प्रवृत्त करना । परचाना । डोर भरना = कपड़े को किनारे को कुछ मोड़कर उसके भीतर तागा भरकर सीना । फलीता लगाना । डोर मजबूत होना= जीवन का सूत्र दृढ़ होना । जिंदगी बाकी रहना । डोर होना = मुग्ध होना । मोहत होना । लट्टु होना । वि॰ दे॰ 'डोरी' ।