डोरी
संज्ञा
डोरी साँचा:स्त्री
- दोनों ओर से जुड़ा धागा
उदाहरण
- इस पतंग की डोरी मेरे पास है।
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
डोरी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ डोरा]
१. कई डोरों या तागों का बटकर बनाया हुआ खंड जो लंबाई में दूर तक लकीर के रूप में चला गया हो । रस्सी । रज्जु । जैसे, पानी भरने की डोरी, पंखा खींचने की डोरी । मुहा॰—डोरी खींचना = सुध करके दूर से अपने पास बुलाना । पास बुलाने के लिये स्मरण करना । जैसे,—जब भगवती डोरी खींचेगी तब जायँगी (स्त्री॰) । डोरी लगना = (१) किसी के पास पहुँचने या उसे उपस्थित करने के लिये लगातार ध्यान बना रहना । जैसे,—अब तो घर की डोरी लगी हुई है । उ॰—आरति अरज लेहु सुनि मोरी । चरनन लागि रहे दृढ़ डोरी ।—जग॰ श॰, पृ॰ ५८ ।
२. वह तागा जिसे कपड़े के किनारे को कुछ मोड़कर उसके भीतर डालकर सीते हैं । क्रि॰ प्र॰—भरना ।
३. वह रस्सी जिसे राजा महाराजाओं या बादशाहों की सवारी के आगे आगे हद बाँधने के लिये सिपाही लेकर चलते हैं । विशेष—यह रास्ता साफ रखने के लिये होता है जिसमें डोरी की हद के भीतर कोई जा न सके । क्रि॰ प्र॰—आना ।—चलना ।
४. बाँधने की डोरी । पाश । बंधन । उ॰—मैं मेरी करि जनम गँवावत जब लगि परत न जम की डोरी ।—सूर (शब्द॰) । मुहा॰—डोरी टूटना = संबंध टूटना । उ॰—का तकसीर भई प्रभु मोरी । काहे टूटि जाति है डोरी ।—जग॰ श॰, पृ॰ ६४ । डोरी ढीली छोड़ना = देखरेख कम करना । चौकसी कम करना । जैसे,—जहाँ डोरी ढीली छोड़ी कि बच्चा बिगड़ा ।
५. डाँड़ीदार कटोरा जिससे कड़ाह में दूध, चाशनी आदि चलाते हैं ।