शाखा
संज्ञा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
शाखा ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. पेड़ के धड़ से चारों ओर निकली हुई लकड़ी या छड़ । टहनी । डाल ।
२. शरीर का अवयव । हाथ और पैर ।
३. उँगली ।
४. चौखट । बृहत्॰, पृ॰ २८१ ।
५. घर का पाख ।
६. किसी मूल वस्तु से निकली हुए उसके भेद । प्रकार ।
७. विभाग । हिस्सा ।
८. अंग । अवयव ।
९. किसी शास्त्र या विद् या के अंतर्गत उसका कोई भेद ।
१०. वेद की संहिताओं के पाठ और क्रमभेद जो कई ऋषियों ने अपने गोत्र या शिष्यपरंपरा में चलाए । विशेष—शौनक ने अपने 'चरणव्यूह' में वेदों की जो शाखाएँ गिनाई हैं, उसके अनुसार ऋग्वेद की पाँच शाखाएँ हैं— शाकल्य, वाष्कल, आश्र्वलायन, शांखायन और मांडूक्य । वायु- पुराण में यजुर्वेद की ८६ शाखाएँ कही गई हैं जिनमें ४३ के नाम चरणव्यूह में आए हैं । इन ४३ में माध्यंदिन और कणव को लेकर ३७ शाखाएँ वाजसनेयी के अंतर्गत हैं । सामवेद की सहस्त्र शाखाएँ कही जाती हैं जिनमें १५ गिनाई गई हैं । इसी प्रकार अथर्ववेद की भी बहुत सी शाखाओं में से पिप्पलादा- शौनकीया आदि केवल नौ गिनाई गई हैं ।
११. संप्रदाय । पंथ (को॰) ।
१२. ग्रंथ का परिच्छेद । अध्याय (को॰) ।
१३. पक्षांतर । प्रतिपक्ष (को॰) ।
१४. भुजा । बाहु । हस्त (को॰) ।
शाखा ^२ संज्ञा पुं॰ [फ़ा॰ शाखहू] अपराधी को दंड देने का काष्ठ का एक यंत्र [को॰] ।