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विक्षनरी:हिन्दी-हिन्दी/महान

विक्षनरी से

महानंद
संज्ञा पुं० [सं० महानन्द] १. मगध देश का एक प्रतापी राजा जिसके डर से सिकंदर आगे न बढ़कर पंजाब ही सेअपने देश को लौट गया था। २. दस अंगुल की मुरली। इस वाद्य के देवता ब्रह्मा माने गए हैं। ३. मुक्ति। मोक्ष। ४. आध्यात्मिक आनंद की स्थिति। उ०—बिना रसना जहँ राग बतीसों हीन महानंद पूरा।—कबीर श०, भा० १, पृ० ८५।

महानंदा
संज्ञा स्त्री० [सं० महानन्दा] १. सुरा। शराब। २. माघ शुक्ला नवमी। इस तिथि को दान, होम और व्रत आदि करने का विधान है। ३. बंगाल की एक छोटी नदी का नाम जो हिमालय के अंतर्गत दार्जिलिंग से निकली है।

महान्
वि० [सं० नहृत्] बहुत बड़ा। विशाल। जैसे,—देशसेवा का कार्य महान् है जो सब लोग नहीं कर सकते।

महान
वि० [सं० महान्] दे० 'महान्'।

महानक
संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा जिसपर चमड़ा मढ़ा होता था।

महानगर
संज्ञा पुं० [सं० महा + नगर] बड़ा शहर। विशाल शहर।

महानग्न
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्रेमी। प्रेम करनेवाला। २. स्त्री का यार। उपपात। जार। ३. प्राचीन काल का एक राज- कर्मचारी जो बहुत ऊँचे पद पर होता था।

महानट
संज्ञा पुं० [सं०] शिव।

महानता
संज्ञा स्त्री० [हिं० महान + ता (प्रत्य०)] दे० 'महत्ता'।

महानद
संज्ञा पुं० [सं०] १. पुराणानुसार एक नद का नाम। उ०—सानुज राम समर जनु पावन। मिलेउ महानद सोन सुहावन।—मानस, १।४०। २. एक तीर्थ का नाम।

महानदी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. विशाल नदी। जैसे, गंगा। २. एक नदी जो बंगाल की खाड़ी में गिरती है [को०]।

महानरक
संज्ञा पुं० [सं०] २१ नरकों में से एक नरक का नाम [को०]।

महानल
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का नरसल [को०]।

महानवमी
संज्ञा स्त्री० [सं०] आश्विन शुक्ल नवमी। आश्विन के नवरात्र की नवमी।

महानस
संज्ञा पुं० [सं०] पाकशाला। रसोईघर।

महानसावलेही
संज्ञा पुं० [सं०] चौका खराब करनेवाला। विशेष—चंद्रगुप्त मौर्य के समय में जो लोग ब्राह्मण के चौके को छूकर अथवा और किसी प्रकार खराब कर देते थे, उनकी जीभ उखाड़ ली जाती थी।

महानाटक
संज्ञा पुं० [सं०] नाटक के लक्षणों से युक्त दस अंकोंवाला नाटक। विशेष—दे० 'नाटक'।

महानाद
संज्ञा पुं० [सं०] १. हाथी। २. ऊँट। ३. सिंह। ४. मेघ। बादल। ५. शंख। ६. बड़ा ढोल। ७. महादेव। शिव। ८. बहुत जोर की आवाज (को०)। ९. कान। श्रोत्र (को०)।

महानाभ
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का मंत्र जिससे शत्रु के फेके हुए शस्त्र व्यर्थ जाते हैं। उ०—पद्मनाभ अरु महानाभ दोउ द्वंदहु नाभ सुनाभा।—रघुनाथ (शब्द०)। २. एक दानव का नाम। ३. पुराणानुसार हिरण्यकशिपु के एक पुत्र का नाम।

महानायक
संज्ञा पुं० [सं०] मोतियों की माला के बीच में का बड़ा रत्न। २. सर्वोच्च या प्रधान नेता [को०]।

महानारायण
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु।

महानास
संज्ञा पुं० [सं०] महादेव।

महानिंब
संज्ञा स्त्री० [सं० महानिम्ब] बकायन।

महानिद्रा
संज्ञा पुं० [सं०] मृत्यु। मरण। मौत।

महानिधान
संज्ञा पुं० [सं०] बुभुक्षित धातुभेदी पारा जिसे 'बावन तोला पाव रत्ती' भी कहते हैं। उ०—महाराज का कल्याण हो, आपकी कृपा से महानिधान सिद्ध हुआ। आपको बधाई है।—हरिश्चंद्र (शब्द०)।

महानियम
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु।

महानियुत
संज्ञा पुं० [सं०] बोद्धों के अनुसार एक बहुत बड़ी संख्या का नाम।

महानिरय
संज्ञा पुं० [सं०] एक नरक का नाम।

महानिर्वाण
संज्ञा पुं० [सं०] परिनिर्वाण जिसके अधिकारी केवल अर्हत या बुद्धगण माने जाते हैं। उ०—महानिर्वाण वह, नहीं रहते जब कर्म, करण या कारण कुछ।—अनामिका, पृ० १०१।

महानिशा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. रात्रि का मध्यभाग। रात्रि का दूसरा और तीसरा प्रहर। आधी रात। २. कल्पात या प्रलय की रात्रि। ३. दुर्गा (को०)।

महानिशीय
संज्ञा पुं० [सं०] जैनियों के एक संप्रदाय का नाम।

महानीच
संज्ञा पुं० [सं०] धोबी।

महानीबू
संज्ञा पुं० [सं० महा + नीबू] बिजौरा नीबू।

महानीम
संज्ञा स्त्री० [सं० महानिम्ब] १. बकायन। २. तुन का पेड़।

महानील (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. भृंगराज पक्षी। २. एक प्रकार का नीलम जो सिंहल द्वीप में होता है। ३. एक प्रकार का गुग्गुल। ४. एक पर्वत का नाम जो मेरु पर्वत के पास माना जाता है। ५. एक प्रकार का साँप। एक नाग का नाम।

महानील (२)
वि० जो अत्यधिक नीला हो [को०]।

महानीली
संज्ञा स्त्री० [सं०] नीली अपराजिता।

महानुभाव
संज्ञा पुं० [सं०] कोई बड़ा और आदरणीय व्यक्ति। महापुरुष। महाशय।

महानुभावता
संज्ञा स्त्री० [सं० महानुभाव + ता (प्रत्य०)] महानुभाव होने का भाव। बड़प्पन। जैसे,—यह आपकी महानुभावता है कि आपने अपनी गलती मान ली।

महानृत्य
संज्ञा पुं० [सं०] शिव।

महानेत्र
संज्ञा पुं० [सं०] शिव। त्रिनेत्र।

महानेमि
संज्ञा पुं० [सं०] कौआ।

महापंक
संज्ञा पुं० [सं० महापङ्क] महापाप। (बौद्ध)।

महापंक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं० महापङ्क्ति] एक प्रकार का छंद [को०]।

महापंचमूल
संज्ञा पुं० [सं० महापञ्चमूल] बेल, अरनी, सोनापाढ़ा, काश्मरी और पाटला इन पाँचों वृक्षों की जड़ों का समूह जिसका व्यवहार वैद्यक में होता है।

महापंचविप
संज्ञा पुं० [सं० महापञ्चविप] शृंगी, कालकूट मुस्तक, बछनाग और शंखकर्णी इन पाँचों विपों का समूह।

महापंचांगुल
संज्ञा पुं० [सं० महापञ्चाड्गुल] लाल अंडी का वृक्ष।

महापक्ष (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. गरुड। २. उल्लू। ३. एक प्रकार का राजहंस।

महापक्ष (२)
वि० १. बड़े पंखोंवाला। २. बड़े दल, समूह या परिवारवाला [को०]।

महापक्षी
संज्ञा पुं० [सं० महापक्षिन्] उलूक। उल्लू [को०]।

महापगा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक प्राचीन नदी का नाम। २. बड़ी नदी। महानदी।

महापट
संज्ञा पुं० [सं०] त्वक्। त्वचा [को०]।

महापथ
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहुत लंबा और चौड़ा रास्ता। राजपथ। २. याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार २१ नरकों में से १६ वाँ नरक। ३. परलोक का मार्ग। मृत्यु। मृत्यु। मौत। ४. सुपुम्ना नाड़ी। ५. हिमालय के एक तीर्थ का नाम। ६. वह मार्ग जिससे पांडव स्वर्ग गए थे (को०)। ७. शिव।

महापथमन
संज्ञा पुं० [सं०] मरण। देहांत।

महापथिक
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो मरने के उद्देश्य से हिमालय पर्वत पर जाय।

महाप
संज्ञा पुं० [सं०] १. नौ निधियों में से एक निधि। २. आठ दिग्गजों में से एक दिग्गज जो दक्षिण दिशा में स्थित है। ३. हाथी की एक जाति। ४. फनवाली जाति के अंतर्गत एक प्रकार का साँप। ५. एक प्रकार का दैत्य। ६. सफेद कमल। ७. महाभारत काल का एक नगर का नाम जो गंगा के किनारे पर था। ८. सौ पद्म की संख्या। ९. कुवेर के अनुचर एक किन्नर का नाम। १०. नारद का एक नाम (को०)। ११. जैनों के अनुसार महाहिमवान् पर्वत पर के जलाशय का नाम। १२. नंद नरेश का नाम (को०)।

महापद्य
संज्ञा पुं० [सं०] महाकाव्य।

महापनस
संज्ञा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का साँप।

महापर्ण
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का शाल वृक्ष।

महापविदमत्र
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु।

महापातक
संज्ञा पुं० [सं०] मनु के अनुसार पाँच बहुत बड़े पाप जो ये हैं—ब्रह्महत्या, मद्यपान, चोरी, गुरु की पत्नी के साथ व्यभिचार और ये सब पाप करनेवालों का साथ करना। विशेष—कहते हैं, जो लोग ये महापातक करते हैं, वे नरक भोगने के उपरांत भी सात जन्म तक घोर कष्ट भोगते हैं।

महापातकी
संज्ञा पुं० [सं० महापातकिन्] वह जिसने महापातक किया हो।

महापातर पु †
संज्ञा पुं० [सं० महापात्र] दे० 'महापात्र'। उ०— नाँव महापातर मोहि तोहेक भिखारी ढीठ।—जायसी ग्रं०, पृ०, ३०२।

महापात्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. महाब्राह्मण या कट्टहा ब्राह्मण जो मृतक कर्म का दान लेता है। २. महामंत्री। प्रधान मंत्री।

महापाद
संज्ञा पुं० [सं०] शिव।

महापाप
संज्ञा पुं० [सं०] बहुत बड़ा या महापातक [को०]।

महापाप्मा
वि० [सं० महापाप्मन्] घोर पापी अथवा दुष्ट [को०]।

महापाय
संज्ञा पुं० [सं०] महापातक।

महापार्श्व
संज्ञा पुं० [सं०] एक दानव का नाम। २. एक राक्षस का नाम।

महापाश
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक प्रकार का यमदूत।

महापाशुपत
संज्ञा पुं० [सं०] १. बकुल। मौलसिरी। २. शैवों का एक प्राचीन संप्रदाय जिसमें पशुपति की उपसना होती थी।

महापासक
संज्ञा पुं० [सं०] बोद्ध भिक्षु। श्रमण।

महापितृयज्ञ
संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का श्राद्ध या पितृयज्ञ जो शाकमेल में दूसरे दिन होता था।

महापीठ
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'पीठ'।

महापीलु
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का पीलु वृक्ष।

महापीलुपति
संज्ञा पुं० [सं० महापीलु + पति] हाथी का निरीक्षक। हाथी की देखभाल करनेवाला।—उ०—सेन लेख में महापीलु- पति तथा महाव्यूहपति शब्दों का प्रयोग मिलता है। पहले शब्द से हाथी के निरीक्षक का तात्पर्य माना गया है। पू० म० भा०, पृ० १०४।

महापुंडरीक
संज्ञा पुं० [सं० महापुण्डरीक] जैनों के अनुसार रुक्मि पर्वत पर के बड़े जलाशय या झील का नाम।

महापुट
संज्ञा पुं० [सं०] भावप्रकाश के अनुसार रस आदि तैयार करने का एक प्रकार। विशेष—इसमें दो हाथ लंबा, दो हाथ चौड़ा और दो हाथ गहरा एक गड्ढा खोदकर उसमें एक हजार उपले रखते हैं; और उन उपलों पर मिट्टी के बर्तन में ओषधि आदि डालकर उसका मुँह बंद करके रख देते है; और तब ऊपर से पाँच सौ उपले रखकर आग लगा देते हैं।

महापुण्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक बोधिसत्व का नाम। २. बहुत वड़ा पुण्य। महान् पुण्य (को०)।

महापुण्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] पुराणानुसार एक नदी का नाम।

महापुत्र
संज्ञा पुं० [सं०] लड़के का पुत्र। पोता। पौत्र।

महापुमान्
संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक पर्वत का नाम।

महापुर
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह नगर जो दुर्ग आदि से भली भाँति रक्षित हो। २. महाभारत के अनुसार एक तीर्थ का नाम।

महापुराण
संज्ञा पुं० [सं०] १. दे० 'पुराण'। २. अपभ्रंश के कवि स्वयंभु कृत एक ग्रंथ का नाम।

महापुरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] राजधानी।

महापुरुष
संज्ञा पुं० [सं०] १. नारायण। २. श्रेष्ठ पुरुष। महात्मा। ३. दुष्ट। पाजी। (व्यंग्य)।

महापुष्प
संज्ञा पुं० [सं०] १. कुंद का वृक्ष। २. काला मूँग। ३. लाल कनेर। ४. सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का कीड़ा।

महापुष्पा
संज्ञा पुं० [सं०] अपराजिता।

महापूजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा की वह पूजा जो आश्विन के नवरात्र में होती है।

महापृष्ठ
संज्ञा पुं० [सं०] १. ऋग्वेद के एक अनुवाक् का नाम जो अश्वमेध यज्ञ के संबंध में है। २. ऊँट।

महाप्रकृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] पुराणानुसार दुर्गा का एक नाम जो सृष्टि का मूल कारण मानी जाती है।

महाप्रजापति
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु।

महाप्रतिहार
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्राचीन काल का एक उच्च कर्मचारी जो प्रतिहारों अथवा नगर या प्रासाद की रक्षा करनेवाले चौकीदारों का प्रधान होता था। २. नगर में शांति रखनेवाला अधिकारी। कोतवाल।

महाप्रधान
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'महामात्य'। उ०—परमार राजा यशोवर्मा के लेख में 'महाप्रधान' शब्द का प्रयोग मिलता है। गहड़वाल ताम्रपत्रों में महामात्य शब्द आता है।—पू० म०, भा०, पृ० १०२।

महाप्रबीन पु
वि० [सं० महा + प्रवीण] अत्यंत चतुर। उ०— जसुमति महा प्रबीन, एकु द्विज नारि बुलाई।—नंद०, ग्रं०, पृ० १९४।

महाप्रभ
वि० [सं०] अत्यंत कांतियुक्त। अति दोप्तिमय [को०]।

महाप्रभा
संज्ञा स्त्री० [सं०] पुराणनुसार एक नदी का नाम।

महाप्रभु
संज्ञा पुं० [सं०] १. वल्लभाचार्य जी की एक आदरसूचक पदवी। २. बंगाल के प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य चेतन्य को एक आदरसूचक पदवी। ३. ईश्वर। ४. शिव। ५. इंद्र। ६. विष्णु। ७. राजा। ८. संन्यासी या साधु।

महाप्रयाण
संज्ञा पुं० [सं० महा + प्रयाण] दे० 'महाप्रस्थान'।

महाप्रलय
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार वह काल जब संपूर्ण सृष्टि का विनाश हो जाता है और अनंत जल के अतिरिक्त कुछ भी बाकी नहीं रहता। ऐसा समय प्रत्येक कल्प अथवा बह्मा के दिन के अंत में आता है। विशेष—दे० 'प्रलय'।

महाप्रलै पु
संज्ञा पुं० [सं० महाप्रलय] दे० 'महाप्रलय'। उ०— महाप्रलै कौ जल बल लै गिरि पर बरस्यो हरि।—नंद० ग्रं०, पृ० ३८।

महाप्रसाद
संज्ञा पुं० [सं०] १. ईश्वर या देवताओं का प्रसाद। उ०—सो अब ताई महाप्रसाद लियो नाहीं है।—दो सौ बावन०, भा० २, पृ० ६५। २. जगन्नाथ जी का चढ़ा हुआ भात। ३. मांस (देवी का प्रसाद) (व्यंग्य)। ४. अखाद्य पदार्थ (व्यंग्य)।

महाप्रसूत
संज्ञा पुं० [सं०] एक बहुत बड़ी संख्या का नाम।

महाप्रस्थान
संज्ञा पुं० [सं०] १. शरीर त्यागने को कामना से हिमालय की ओर जाना। मरण-दीक्षा-पूर्वक उत्तर की ओर अभिगमन। २. मरण। देहांत।

महाप्राज्ञ
वि० [सं०] अत्यंत विद्वान्। महाज्ञानी।

महाप्राण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] व्याकरण के अनुसार वह वर्ण जिसके उच्चारण में प्राणवायु का विशेष व्यवहार करना पड़ता है। विशेष—वर्णमाला में प्रत्येक वर्ग का दूसरा तथा चौथा अक्षर तथा हिंदी की कुछ अन्य ध्वनियाँ महाप्राण हैं। जैसे,— कवर्ग का—ख, घ। बवर्ग का—छ, झ। चवर्ग का—ठ, ढ़, ढ़। तवर्ग का—थ, ध। पवर्ग का—फ, भ। तथा श, ष, स और ह तथा न्ह, म्ह ल्ह आदि। २. वह तीव्र या महाप्राण श्वास जो महाप्राण वर्णों के उच्चारण में लेनी पड़ती है (को०)। ३. काला कौआ (को०)।

महाप्राण (१)
वि० अत्याधिक सत्वयुक्त।

महाफल (२)
वि० [सं०] १. बहुत अधिक फल देनेवाला। २. बहुत अधिक पुरस्कार देनेवाला [को०]।

महाफल
संज्ञा पुं० बेल का पेड़ [को०]।

महाफला
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. तितलौकी। २. महाकोशातकी। ३. राज जंबू। ४. इंद्रवारुणी। ५. एक प्रकार का भाल [को०]।

महाफा,महाफी
संज्ञा स्त्री० [अ० महफ्फह्, फा़० मुहाफ़ह्] बड़ी पर्देदार डोली। सवारी। पालकी। उ०—मेरी औरत महाफी में बिठाकर, ले जाया कर जबरर्दस्ती सरासर।—दक्खिनी०, पृ० ३१५।

महाबन
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहुत घना और विशाल बन। उ०— फिरेउ महाबन परेउ भुलाई।—मानस, १।१५७। २. वृंदावन के एक बन का नाम।

महाबल (१)
वि० [सं०] अत्यंत बलवान्। बहुत बड़ा ताकतवर। उ०—(क) भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो।—तुलसी (शब्द०)। (ख) सत मति जय जयं धारि विपृथु भट चल्यौ महाबल।—गोपाल (शब्द०)। (ग) मेघनाथ से पुत्र महाबल कुंभकरण से भाई।—सूर (शब्द०)।

महाबल (२)
संज्ञा पुं० १. पितरों के एक गण का नाम। २. बुद्ध। ३. तामस और रौच्य मन्वंतर के इंद्र का नाम। ४. वायु। ५.शिव के एक अनुचर का नाम। ६. एक नाग का नाम। ७. ठोस वाँस (को०)। ८. मकर। नक्र (को०)। ९. ताल वृक्ष (को०)। १०. सीसा।

महाबला
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सहदेवी नाम की जड़ी। पीली सहदेइया। २. पिप्पली। पीपल। ३. धौ। ४. नील का पौधा। ५. कार्तिकेय की एक मातृका का नाम। ६. एक बहुत बड़ी संख्या का नाम।

महाबलाधिकृत
संज्ञा पुं० [सं० महाबला + अधिकृत] १. सबसे बड़ा सेनाधिकारी। प्रधान सेनापति। उ०—क्या ! महाबलाधिकृत अब नहीं हैं ! शोक !—स्कंद०, पृ० ४।

महाबलि
संज्ञा पुं० [सं०] १. आकाश। २. गुफा। ३. मन।

महाबलेश्वर
संज्ञा पुं० [सं०] एक शिवलिंग जो उड़ीसा में आधुनिक महाबलेश्वर के 'निकट हैं' [को०]।

महाबाहु (१)
वि० [सं०] १. लंबी भुजावाला। २. बली। बलवान्।

महाबाहु (२)
संज्ञा पुं० १. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। २. एक राक्षस का नाम। ३. विष्णु का एक नाम।

महाबुद्ध
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार के बुद्ध जो साधारण बुद्धों से श्रेष्ठ माने जाते हैं।

महाबुद्धि
वि० [सं०] १. बहुत बुद्धिमान्। २. धूत।

महाबृहती
संज्ञा पुं० [सं०] एक वैदिक छंद जो तीन पाद का होता है और जिसके प्रत्येक पाद में १२ वर्ण होते हैं।

महाबेधक †
संज्ञा पुं० [सं० महा + बेधक] महायुद्ध। उ०— बाजिया बेढक महाबैधक, सार साबल सोहड़ी।—रा०, रू०, पृ० २८०।

महाबोधि
संज्ञा पुं० [सं०] १. वुद्धदेव। २. बोद्ध भिक्षु (को०)।

महाव्राह्मण
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह ब्राह्मण जो मृतक कृत्य का दान लेता हो। कट्टहा। (साधारणतः लोक में ऐसा ब्राह्मण निंदित माना जाता है)। २. निकृष्ट ब्राह्मण। ३.ज्ञानी, पठित और विद्वान् विप्र (को०)।

महाब्धि
संज्ञा पुं० [सं०] महासागर। उ०—धन के मान के बाँध को जर्जर कर, महाब्धि ज्ञान का बहा जो भर गर्जन साहित्यिक स्वर।—अनामिका, पृ० १८।

महाभद्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. पुराणानुसार एक पर्वत का नाम। २. पुराणानुसार मेरु पर्वत के उत्तर के एक सरोवर का नाम।

महाभद्रा
संज्ञा पुं० [सं०] १. गंगा। २. काश्मरी।

महाभय
संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार अधर्म के एक पुत्र का नाम जो निऋति के गर्भ से उत्पन्न हुआ था।

महाभया
संज्ञा स्त्री० [सं०] पुराणानुसार एक नदी का नाम।

महाभर पु
वि० [सं० महाभट] बीर योद्धा। उ०—स्वामि धर्म उर धरहु रहहु, मम सत्थ महाभर।—प० रासो, पृ० १६१।

महाभरा
संज्ञा स्त्री० [सं०] कुलंजन। पान की जड़।

महाभाग
वि० [सं०] १. भगवान्। किस्मतवर। २. महान् विशिष्ट। ३. पवित्रात्मा।

महाभागत
संज्ञा पुं० [सं०] १ बारह महाभक्त अर्थात् मनु, सनकादि, भरत, जनक, कपिल ब्रह्मा, बलि, भीष्म, प्रह्लाद, शुकदेव, धर्मराज और शंभु। २. एक प्रकार के छंद का नाम। २३ मात्राओं के छंदों की संज्ञा। ३. परम वैष्णव। ४. दे० 'भागवत' (पुराण)।

महाभागा
संज्ञा स्त्री० [सं०] दाक्षायिणी का एक नाम।

महाभागी
वि० [सं० महाभागिन्] अत्यंत भाग्यवान् [को०]।

महाभारत
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक परम प्रसिद्ध प्राचीन ऐतिहासिक महाकाव्य जिसमें कौरवों और पांडवों के युद्ध का वर्णन है। विशेष—यह ग्रंथ आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग भीष्म द्रोण,कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शांति, अनुशासन, अश्वमेघ, आश्रमवासी, मौसल, महाप्रस्थान और स्वर्गारोहण इन अट्ठारह पर्वों में विभक्त है। कुछ लोग हरिवंश पुराण को भी इसी के अंतर्गत और इसका अंतिम अंज मानते हैं। इस ग्रंथ में लगभग ८०-९० हजार श्लोक हैं। ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों द्दष्टियों से इस ग्रंथ का महत्व बहुत अधिक है। यों तो महाभारत ग्रंथ कौरव-पांडव-बृध्द का इतिहास ही है पर इसमें वैदिक काल की यज्ञों में कही जानेवाली अनेक गाथाओं और आख्यानों आदि के संग्रह के अतिरिक्त धर्म, तत्वज्ञान, व्यवहार,राजनीति आदि अनेक बिषयों का भी बहुत अच्छा समावेश है। कहते है, कौरब-पांडव-बुध्द के उपरांत व्यास भी ने 'जय' नामक ऐतिहासिक काब्य की रचना की थी। वैशंपायन ने उसे और बड़ाकर उनका नाम 'भारत' रजा। सबके पीछे सोति ने उसमें और भी बहुत सी कथाओं आदि का समावेश करके उसे वर्तमान रुप देकर 'महाभारत' बना दिया। महाभारत में जिन बातों का वर्णन है, उसके आधार पर एक ओर तो यह ग्रंथ वैदिक साहित्य तक जा पहुँचता है और दूसरी ओर जैनों तथा बौद्धों के आरंभिक काल के साहित्य से आ मिलता है। हिंदू इसे बहुत ही प्रामाणिक धर्मग्रंथ मानते हैं। २. कोई बहुत बड़ा ग्रंथ। २. कौरवों और पांडवों का प्रसिद्ध युद्ध जिसका वर्णन उक्त महाकाव्य में है। ४. कोई बड़ा युद्ध या लड़ाई झगड़ा। जैसे, यूरोपीय महाभारत। उ०—अबकी बार प्रत्यक्ष महाभारत होइ गया।—प्रेमघन०, भा० २, पृ० ३०७।

महाभाष्य
संज्ञा पुं० [सं०] पाणिनि के व्याकरण पर पतंजलि का लिखा हुआ प्रसिद्ध भाष्य।

महाभासुर
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु का एक नाम [को०]।

महाभिक्षु
संज्ञा पुं० [सं०] भगवान् बुद्ध।

महाभिषव
संज्ञा पुं० [सं०] सोम का रस [को०]।

महाभिनिष्क्रमण
संज्ञा पुं० [सं० महा + अभिनिष्क्रमण] १ बाहर जाना। २. प्रव्रज्या के लिये बाहर जाना।

महाभीत
संज्ञा पुं० [सं०] १. राजा शांतनु का एक। २. शिव के शृंगी नामक द्वारपाल का एक नाम।

महाभीता
संज्ञा पुं० [सं०] लजालू।

महाभीम (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. राजा शांतनु का एक नाम। २. शिव के शृंगी नामक द्वारपाल का एक नाम।

महाभीम (२)
वि० अत्यंत भयानक। बहुत भयंकर[को०]।

महाभीरु
संज्ञा पुं० [सं०] ग्वालिन नाम का बरसाती कीड़ा।

महाभीष्म
संज्ञा पुं० [सं०] राजा शांतनु का एक नाम।

महाभुज
संज्ञा पुं० [सं०] वह जिसकी बाँहें बहुत लंबी हों। आजानुबाहु।

महाभूत
संज्ञा पुं० [सं०] पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पंचतत्व। उ०—कालहु के काल महाभूतनि के महाभूत करम के करम निदान के निदान हौ।—तुलसी (शब्द०)। विशेष—दे०'भूत'।

महाभृंग
संज्ञा पुं० [सं० महाभृङ्ग] नीले फूलवाला भँगरा।

महाभैरव
संज्ञा पुं० [सं०] शिव।

महाभैरवी
संज्ञा स्त्री० [सं०] तांत्रिकों के अनुसार एक विद्या का नाम।

महाभोग
संज्ञा पुं० [सं०] १. साँप। २. दे० 'महाप्रसाद'।

महाभोगा
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा।

महाभोगी
संज्ञा पुं० [सं० महाभोगिन्] बड़े फनवाला साँप।

महामंडल
संज्ञा पुं० [सं० महा + मण्डल] १. बहुत बड़ा संघटन। बड़ा संघ। २. बहुत विशाल परिधि या घेरा।

महामंडलिक
संज्ञा पुं० [सं० महा + माण्डलिक] प्राचीन राजाओं की एक उपाधि। उ०—प्रतिहार तथा पाल नरेशों के लेखों में उनके लिये राजन, राजन्यक, राजनक, सामंत अथवा महासामंत शब्दों का प्रयोग मिलता है। कहीं कहीं वह महामंडलिक के नाम से भी पुकारा जाता था।—पू० म० भा०, पृ० ९८।

महामंत्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. वेद का कोई मंत्र। वेदमंत्र। २. सबसे बड़ा मंत्र। उत्कृष्ट मंत्र। उ०—महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासी मुकुति हेतु उपदेसू।—मानस, १।१९। ३. वह मंत्र या सलाह जिसकी सहायता से किसी काम का होना निश्चित हो। अच्छी और बढ़िया सलाह। उ०—राजा राज- पुरोहितादि सुहृदो मंत्री महामंत्र दा।—केशव (शब्द०)।

महामंत्री
संज्ञा पुं० [सं० महामन्ञिन्] राजा का प्रधान या सबसे बड़ा मंत्री।

महामट्ट
संज्ञा पुं० [सं० महा + मट्टक] बड़ा मटका। नाँद, जिसमें रँगरेज कपड़े रँगते हैं। उ०—फटै कुंभ प्राहार श्रोनं अजेजं। महामट्ट फुट्या मनो रंगरेजं।—पृ० रा०, १२।३७८।

महामणि
संज्ञा पुं० [सं०] १. मूल्यवान् रत्न। २. शिव [को०]।

महामति (१)
वि० [सं०] १. जो बहुत बड़ा बुद्धिमान् हो। २. जो बहुत अधिक उदार विचार का हो [को०]।

महामति (२)
संज्ञा पुं० १. गणेश। २. एक यक्ष का नाम। ३. एक बोधिसत्व का नाम। ४. बृहस्पति (को०)।

महामत्स्य
संज्ञा पुं० [सं०] जैनों के एक अनुसार वह बहुत बड़ी मछली जो स्वयंभूरमण सागर में थी।

महामद
संज्ञा पुं० [सं०] मस्त हाथी।

महामना (१)
वि० [सं० महामनस्] १. उदारचित। दयालु। २. उच्च विचारवाला। उच्चमना। जैसे, हिंदू विश्वाविद्यालय के संस्थापक, हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान के अनन्य उपासक महानता मदनमोहन मालवीय। ३. समर्थ। साहंकार [को०]।

महामना (२)
संज्ञा पुं० आख्यान वर्णित एक जंतु। शरभ [को०]।

महामयूरो
संज्ञा स्त्री० [सं०] बौद्धों की एक देवी का नाम।

महामह
संज्ञा पुं० [सं०] बहुत बड़ा उत्सव। महोत्सव।

महामहिम
वि० [सं० महा + महिमा] १. महान् महिमायुक्त। महिमान्वित। उ०—सत्ता का महामहिम रथ जब वैभव के पथ पर चलता है। करते हैं उसका विजयघोष अगणित अनुचर अगणित चारण। २. राजा, महाराजा, स्वतंत्र भारत के राष्ट्र- पति और राज्यपाल आदि के लिये आदरार्थ प्रयुक्त संबोधन। आदरयुक्त संबोधन।

महामहोपाध्याय
संज्ञा पुं० [सं०] १. गुरुओं का गुरु। बहुत बड़ा गुरु। २. संस्कृत के मूर्धन्य को शासन से मिलनेवाली एक प्रकार की उपाधि। विशेष—स्वतंत्रताप्राप्ति के पूर्व भारत में संस्कृत के विद्धानों को यह उपाधि ब्रिटिश सरकार की ओर से मिलती रही है। अब यह उपाधि उसी प्रकार विद्वानों को स्वतंत्र भारत की सरकार द्वारा प्राप्त होती है।

महामांडलिक
संज्ञा पुं० [सं० महा + मण्डलिक] मंडल या राष्ट्र का अधिपति।

महामांस
संज्ञा पुं० [सं०] १. गोमांस। गौ का गोश्त। उ०— जिधर देखिए महामांस से भरे टोकरे अधिकता से।—प्रेमघन०, भा० २, पृ० १६। २. मनुष्य का मांस। विशेष—कुछ लोग मनुष्य, गौ, हाथी, घोड़े, भैंस, सूअर, ऊँट और साँप इन आठ जीवों के मांस को माहामास मानते हैं। महामांस खाना परम निषिद्ध कहा गया है।

महामाई †
संज्ञा स्त्री० [सं० महा + हिं० माई] १. दुर्गा। उ०— अये गवरि, ईस्वरि सब लायक। महामाइ बरदाइ सुभायक।— नंद० ग्रं०, पृ० २९८। २. काली।

महामात्य
संज्ञा पुं० [सं०] राजा का प्रधान या सबसे बड़ा अमात्य। महामंत्री।

महामात्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. महामात्य। २. महावत। ३. हाथियों का निरीक्षक।

महामात्र (२)
वि० १. प्रधान। बड़ा। २. बहुत बढ़िया। ३. समृद्ध। संपन्न। ४. धनवान्। अमीर।

महामात्री
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. महामात्य की पत्नी। २. आध्यात्मिक गुरु का स्त्री [को०]।

महामानव
संज्ञा पुं० [सं० महा + मानव] अत्यंत महान् पुरुष। दैवी पुरुष। ईश्वरीय अवतार।

महामानसिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] जैनियों की एक देवी का नाम।

महामानसी
संज्ञा स्त्री० [सं०] जैनियों की एक देवी। महामानसिका।

महामान्य
वि० [सं० महा + मान्य] अत्यंत संमानार्ह। परम प्रतिष्ठित।

महामाय (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. विष्णु। ३. एक असुर का नाम। ४. एक विद्याधर का नाम।

महामाय (२)
वि० मायावी।

महामाय पु (३)
संज्ञा स्त्री० [सं० महामायी] दे० 'महामाई'। उ०— महामाय, बरदाय, सृसंकर तुमरे नायक—नंद० ग्रं०, पृ० २०९।

महामाया (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. प्रकृति। २. दुर्गा। ३. गंगा। ४. शुद्धोदन की पत्नी और बुद्ध की माता का नाम। ५. आर्या छंद का तेरहवाँ भेद जिसमें १५ गुरु और २७ लघु वर्ण होते हैं।

महामायी
संज्ञा पुं० [सं० महामायिन्] विष्णु [को०]।

महामारी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वह संक्रामक और भीषण रोग जिसमें एक साथ ही बहुत से लोग मरें। ववा। मरी। जैसे, हैजा, चेचक, प्लेग इत्यादि। २. महाकाली का एक नाम।

महामाल
संज्ञा पुं० [सं०] शिव।

महामालिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] नाराच छंद का एक नाम।

महामाष
संज्ञा पुं० [सं०] राजमाष। बड़ा उड़द।

महामाषतैल
संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक में एक प्रकार का तेल जो साधारण तिल के तेल में चने की दाल, दश्मूल और बकरी का मांस आदि मिलाकर पकाने से बनता है।

महामुंड
संज्ञा पुं० [सं० महामुण्ड] बोल नामक गंधद्रव्य।

महामुंडानिका
संज्ञा स्त्री० [सं० महामुण्डानिका] गोरखमुंडी।

महामुंडी
संज्ञा स्त्री० [सं० महामुण्डी] गोरखमुंडी [को०]।

महामुख
संज्ञा पुं० [सं०] १. कुंभीर नामक जलजंतु। घड़ियाल। २. नदी का मुहाना। वह स्थान जहाँ नदी गिरती है। ३. महादेव।

महामुद्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. योग के अनुसार एक प्रकार की मुद्रा या अंगों की स्थिति। २. एक बहुत बड़ी संख्या का नाम। ३. राजमुद्रा। राजमुहर।

महामुद्राधिकृत
संज्ञा पुं० [सं० महा + मुद्रा + अधिकृत] प्राचीन काल का एक राजकीय पद जिसका अधिकारी विदेशियों को देश में आने को अनुमातपत्र दता था। उ०—महामुद्राव्यक्ष का भी एक उपविभाग था जो राज्य में प्रवेश के लिये विदशियों को अनुमातपत्र देता था। लक्ष्मणसन के लेख में इस महामुद्राधिकृत कहा गया है।—पू० म० भा०, पृ० १०६।

महामुद्राध्यक्ष
संज्ञा पुं० [सं० महा + मुद्रा + अध्यक्ष] दे० 'महामुद्राधिकृत'। उ०—इस विभाग के अंतर्गत महामुद्राध्यक्ष का भी एक उपविभाग था जो राज्य में प्रवेश के लिये विदेशियों को अनुमति पत्र देता था।—पू० म० भा०, पृ० १०६।

महामुनि
संज्ञा पुं० [सं०] १. मुनियों में श्रेष्ठ। बहुत बड़ा मुनि। २. कपटी व्यक्ति। ठग। धोखेबाज (व्यंग्य)। ३. अगस्त्य ऋषि। ४. बुद्ध। ५. कृपाचार्य। ६. काल। ७. व्यास। ८. एक जिन का नाम। ९. तुंबुरु का वृक्ष।

महामूर्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] विष्णु।

महामूल
संज्ञा पुं० [सं०] प्याज।

महामूल्य (१)
संज्ञा पुं० [सं०] माणिक।

महामूल्य (२)
वि० १. जिसका मूल्य बहुत अधिक हो। बहुमूल्य। २. महंगा। महाघ।

महामृग
संज्ञा पुं० [सं०] हाथी।

महामृत्युंजय
संज्ञा पुं० [सं० महामृत्युञ्जय] १. शिव। २. शीव जी का एक मंत्र। कहते हैं, इसके जप से अकालमृत्यु टल जाती और आयु बढ़ती है।

महामेघ
संज्ञा पुं० [सं०] शिव।

महामेद
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'महामेदा'।

महामेदा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का कंद जो मौरंग देश में पाया जाता है। विशेष—यह देखने में अदरक के समान होता है। इसकी लता चलती है। वैद्यक में इसे शीतल, रुचिकर, कफ और शुक्र को बढ़ानेवाली। दाह, रक्तपित्त, क्षय और वात को नाश करनेवाली माना है। यह जड़ी आजकल नहीं मिलती। इसके स्थान पर च्यवनप्राश आदि में दूसरी ओषधि डालते हैं। पर्या०—देवमणि। वसुच्छिद्रा। देवेष्ट। सुरमेदा। दिव्या। त्रिदंती। सोमा।

महामोध
संज्ञा पुं० [सं०] शिव [को०]।

महामेधा
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा [को०]।

महामैत्र
संज्ञा पुं० [सं०] एक बुद्ध का नाम।

महामोदकारी
संज्ञा पुं० [सं०] एक वर्णिक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में छह मगण होते हैं। इसका दूसरा नाम क्रीड़ाचक्र भी है।

महामोह
संज्ञा पुं० [सं०] १. सांसारिक सुखों के भोग की इच्छा जो अविद्या का रूपातंर मानी गई है। उ०—जै जै कलयुग राज की, जै महामोह महराज की।—भारतेंदु ग्रं०, भा० १, पृ० ४८३। २. भारी मोह। तीव्र आसक्ति (को०)।

महामोहा
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा।

महाय पु
वि० [सं० महा] महान्। बहुत। अधिक। ज्यादा। उ०—(क) तीसर अपनो रूप रचि व्यंकट शैल धराय। कह्यौ सकल शिष्यन करहु यामें प्रीति महाय।—रघुराज (शब्द०)। (ख) योके सनमुख हम दोऊ बैठी रूप बनाय। हमपै तनक तकै नहीं अचरज लगत महाय।—रघुराज (शब्द०)।

महायक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] १. यक्षों का राजा। २. एक प्रकार के बोद्ध देवता।

महायज्ञ
संज्ञा पुं० [सं०] १. हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार नित्य किए जानेवाले कर्म जो मुख्यतः पाँच हैं—(क) ब्रह्मयज्ञ = संध्योपासन, (२) देवयज्ञ = हवन्, (३) पितृयज्ञ = तर्पण, (४) भूतयज्ञ = बलि और (५) नृयज्ञ = अतिथिसत्कार। विशेष—इन पाँचों कर्मों के नित्य करने का विधान है। कहते हैं, मनुष्य नित्य जो पाप करता है, उनका नाश इन यज्ञों के अनुष्ठान से हो जाता है। २. महान् कार्य। ऐसा कार्य जिसका लक्ष्य अत्यंत ऊँचा हो।

महायम
संज्ञा पुं० [सं०] यमराज।

महायशा
संज्ञा पुं० [सं० महायशस्] महायशस्वी। अत्यंत प्रसिद्ध। ख्यात। संमानित [को०]।

महायाग
संज्ञा पुं० [सं०] १. दे० 'महायज्ञ'। २. बहुत बड़ा यज्ञ। जैसे, अश्वमेध, राजसूय आदि। उ०—इसीलिये अब ये महायाग सिर्फ पुराने महोत्सवों को निर्जीव नकल तथा पुरोहितों की आमदनी का एक जरिया मात्र रह गया।—भा० इ० रू०, पृ० १५२।

महायात्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] मृत्यु। मौत।

महायान
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक विद्याधर का नाम। २. बौद्धों के तीन मुख्य संप्रदायों में से एक संप्रदाय। विशेष—महात्मा बुद्धदेव के परिनिर्वाण के थोड़े ही दिनों बाद उनके शिष्यों और अनुयायियों में मतभेद होने के कारण यह संप्रदाय चला था। इसका प्रचार नैपाल, तिव्वत, चीन, जापान आदि उत्तरीय देशों में है जहाँ इसमें तंत्र भी बहुत कुछ मिला हुआ है। जिस प्रकार शिव की शक्तियाँ हैं, उसी प्रकार बुद्ध की कई शक्तियाँ या देवियाँ हैं जिनकी उपासना की जाती है। ३. चौड़ा मार्ग। प्रशस्त पथ। उ०—यह वह महायान या चौड़ा मार्ग था जिसपर संकीर्णता को दूर करके सबको चलने का निमंत्रण दिया गया।—पोद्दार अभि० ग्रं० पृ० ६५४।

महायाम
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का साम।

महायाम्य
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु।

महायुग
संज्ञा पुं० [सं०] सत्य, ञेता, द्वापर और कलि इन चारों युगों का समूह जो देवताओं का एक युग माना जाता है।

महायुत
संज्ञा पुं० [सं०] एक बड़ी संख्या जो सौ अयुत की होती है।

महायुद्ध
संज्ञा पुं० [सं० महा + युद्ध] बहुत बड़ा युद्ध। ऐसा युद्ध जिसमें संसार के अनेक शक्तिशाली देश भाग लें। विशेष—ईस्वी सन् की बीसवीं शताब्दी के विगत काल में दो महायुद्ध हुए हैं एक सन् १९१४-१८ तक और दूसरा सन् १९३९-४५ तक।

महायुध
संज्ञा पुं० [सं०] शिव।

महायोगी
संज्ञा पुं० [सं० महयोगिन्] १. शिव। २. विष्णु। ३. मुर्गा [को०]।

महायोगेश्वर
संज्ञा पुं० [सं०] पितामह, पुलत्स्य, वसिष्ट पुलह, अंगिरा, क्रतु और कश्यप जो बहुत बड़े ऋपि और योगी माने जाते हैं।

महायोगेश्वरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दुर्गा। २. नागदमनी।

महायोनि
संज्ञा स्त्री० [सं०] वैद्यक के अनुसार स्त्रियों का एक प्रकार का रोग जिसमें उनकी योनि बहुत बढ़ जाती है।

महायौगिक
संज्ञा पुं० [सं०] १. मात्राओ के छंदों की संज्ञा।

महारंग
संज्ञा पुं० [सं० महाग्ङ्ग] अभिनय करने का विशाल रंगमंच [को०]।

महारंभ (१)
वि० [सं० महारम्म] जिसका आरंभ करने में बहुत अधिक यत्न करना पड़े। बहुत बड़ा। उ०—सच है छोटे जी के लोग थोड़े ही कामों में ऐसा घबरा जाते हैं मानो सारे संसार का बोझ इन्ही पर है। पर जो बड़े लोग है, उनके सब काम महारंभ होते है, तब भी उनके मुख पर कहीं से व्याकुलता नहीं झलकती।—हरिश्चंद्र (शब्द०)।

महारंभ (२)
संज्ञा पुं० बडा काम [को०]।

महारत्क
संज्ञा पुं० [सं०] र्मूगा।

महारक्षा
संज्ञा स्त्री० [सं०] बौद्धों के अनुसार महाप्रतिसरा, महामयूरी, महासहस्त्रप्रमर्दिनी, महाशीतवती और महामंत्रा- नुसारणी ये पांच देवियाँ।

महारजत
संज्ञा पुं० [सं०] १. सोना। सुवर्ण। उ०—जातरूप कलघौत पुनि चामीकर तपनीय। रुक्म रुद्र रोदन कनक महारजत रमनीय।—अनेकार्थ०, पृ० १६। २. धतूरा।

महारजन
संज्ञा पुं० [सं०] १. कुसुम का फूल। २. सोना।

महारण्य
संज्ञा पुं० [सं०] घोर जंगल। घना जंगल [को०]।

महारत
संज्ञा स्त्री० [फा़०] १. अभ्यास। नश्क। २. योग्यता। कौशल (को०)। ३. ज्ञान। जानकारी (को०)।

महारत्न
संज्ञा पुं० [सं०] मोती, हीरा, वैटूर्य, पद्यराग, गोमेद, पुष्पराग (पुखराज), पन्ना, मूंगा और नीलम इन नौ रत्नों में से कोई रत्न।

महारत्नवर्षा
संज्ञा स्त्री० [सं०] तांत्रिकों की एक देवी का नाम।

महारथ
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहुत भारी योद्धा जो अकेला दस हजार योद्धाऔं से लड़ सके। २. बहुत बड़ा रथ। विशाल रथ (को०)। ३. आकांक्षा। मनोरथ (को०)।

महारथी
संज्ञा पुं० [सं० महारथिन्] १. दे० 'महारथ'। उ०— पूरण प्रकृति सात धीर वीर है विख्यात रथी महारथी अतिरथी रण साज कै।—रघुराज (शव्द०)। २. किसी विषय का प्रकांड विद्वान् या जानकार व्यक्ति। जैसे, शास्त्रार्थमहारथी।

महारथ्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] चौडा़ रास्ता। सड़क।

महारम
संज्ञा पुं० [अ० महारिम] १. परिचित या जान पहचान का व्याक्ति। २. दोस्त। ३. भेद का जानकार। उ०—क्यों मिलेगा घर तुझे चुप शाह का। होयगा क्यों महारम उस दरगाह का ?—दक्खिनी०, पृ० १७७।

महारस (१)
संज्ञा सं० [सं०] १. काँजी। २. खजूर। ३. कसेरू। ४. ऊख। ५. पारा। ६. कांतीसार लोहा। ७. ईंगुर। ८. मोनामक्खी। ९. रूपामक्खी। १०. अभ्रक। ११. जामुन का वृक्ष।

महारस (२)
वि० जिसमें बहुत रम हो। अधिक रसवाला [को०]।

महारा पु †
सर्व० [हिं० हमारा] दे० 'हमारा'। उ०—अंग अंग मदन उमंग वल धारे रे। जारे उर कठिन महारे यों महारे हारे, प्यारे अब न्यारे ह्वै कै चित्त सों बिसारे रे।—नट०, पृ० ५२।

महाराज
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० महारानी] १. राजाओं में श्रेष्ठ। बहुत बड़ा राजा। २. ब्राह्मण, गुरु, धर्माचार्य या और किसी पूज्य के लिये एक सवोधन। ३. एक उपाधि जो भारत में व्रिटिश सरकार की ओर से राजा ओं की दी जाती थी। ४. उंगलियों का नाखून (को०)।

महाराजचूत
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का आम [को०]।

महाराजाधिराज
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहुत बड़ा राजा। अनेक राजाओं महाराजाओं में श्रेष्ठ। सम्राट्। २. एक प्रकार की पदवी जो ब्रिटिश भारत में सरकार की ओर से बड़े बड़े राजाओं को मिलती थी।

महाराजिक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार के देवता जिनकी संख्या कुछ लोगों के मत से २२६ और कुछ लोगों के मत से ४००० है।

महाराज्ञी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दुर्गा। २. महारानी।

महाराज्य
संज्ञा पुं० [सं०] बहुत बड़ा राज्य। साम्राज्य।

महाराणा
संज्ञा पुं० [सं० महा+हिं० राणा] मेवाड़, चित्तौर और उदयपुर के राजाओं की उपाधि।

महारात्र
संज्ञा पुं० [सं०] आधी रात [को०]।

महारात्रि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. महाप्रलयवाली रात, जब ब्रह्मा का लय हो जाता है और दूसरा महाकल्प होता है। २. तांत्रिकों के अनुसार ठीक आधी रात बीतने पर दो मुहूर्त का समय। विशेष—यह काल बहुत ही पवित्र समझा जाता है। कहते हैं कि इस समय जो पुण्य कृत्य किया जाता है, उसका फल अक्षय होता है। ३. दुर्गा। ४. आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी की रात्रि जिस दिन निशीथ में भगवती का पूजन किया जाता है। ५. दे० 'शिवरात्रि'।

महारावण
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार वह रावण जिसके हजार मुख और दो हजार भुजाएँ थीं। अदभुत रामायण के अनुसार इसे जानकी जी ने मांरा था।

महारावल
संज्ञा पुं० [सं० महा+हिं० रावल] जैसेलमेर, डूँगरपुर आदि राज्यों के राजाओं की उपाधि।

महाराष्ट्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध राज्य विशेष—यह राज्य अरब सागर के तट पर, गुजरात के दक्षिण कर्णाट के उत्तर और तैलंग प्रदेश के पश्चिम में है। कोंकण प्रदेश इसी का दक्षिणी भाग है। बहुत प्राचीन काल में इस प्रदेश का उत्तरी भाग दंडक वन कहलाता था। यहाँ सात- वाहन, चालुक्य, कलचुरी और यादव आदि वंशों का राज्य बहुत दिनों तक था। मुसलमानों के राजत्व काल में यहाँ बहमनी, निजामशाही और कुतुबशही आदि वंशों का राज्य था। पोछे सुप्रसिद्ध वीर महाराज शिवाजी ने इस देस में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। यह प्रदेश पहले आधुनिक बंबई प्रांत के लगभग रहा है और यहाँ के निवासी भी महाराष्ट्र कहलाते हैं। २. इस राज्य के निवासी, विशेषतः ब्राह्मण निवासी। ३. बहुत बड़ा राष्ट्र। जैसे, अमेरिकन महाराष्ट्र।

महाराष्ट्री
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक प्रकार की प्राकृत भाषा जो प्राचीन काल में महाराष्ट्र देश में बोली जाती थी। उ०—वही अंत को महाराष्ट्री प्राकृत भी कहलाई।—प्रेमघन०, भा० २, पृ० ३७५। २. महाराष्ट्र की आधुनिक देशभाषा। ३. जलपीपल।

महारास
संज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण की वह लीला जो शरत्पूर्णिमा के दिन गोपियों के साथ रास नृत्य के रूप में हुई थी।

महारुद्र
संज्ञा पुं० [सं०] शिव।

महारूप
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. सर्ज रस। राल (को०)।

महारूपक
संज्ञा पुं० [सं०] नाटक।

महारुरु
संज्ञा पुं० [सं०] मृगों की एक जाति।

महारूख
संज्ञा पुं० [सं० महावृक्ष] १. थूहर। सेंहुड़। स्नुही। २. एक जंगली वृक्ष जो बहुत सुंदर होता है। विशेष—इस वृक्ष की लकड़ी से आरावशी सामान बनता है। इसकी छाल में सुगंधि होती है। मदरास और मध्यप्रदेश में यह अधिकता से पाया जाता है।

महारेता
संज्ञा पुं० [सं० महारेतस्] शिव [को०]।

महारोग
संज्ञा पुं० [सं०] बहुत बड़ा रोग। जैसे, पागलपन, कोढ़, तपेदिक, दमा, भगंदर आदि। विशेष—उन्माद, राजयक्ष्मा, श्वासरोग, त्वक्दोष अर्थात् कुष्ठ मधुमेह, अश्मरी, उदररोग (संभवतः संग्रहणी) और भगंदर, आयुर्वेद में उक्त आठ रोग महारोग कहे गए हैं। कहते हैं, इस प्रकार के रोग पूर्वजन्म के पापों के परिणमस्वरूप होते हैं। वैद्य लोग ऐसे रोगों की चिकित्सा करने से पहले रोगी से प्रायश्चित्त आदि कराते हैं।

महारोगी
संज्ञा पुं० [सं० महारोगिनु] जिसे कोई महारोग हो।

महारौद्र
संज्ञा पुं० [सं०] शिव। २. एक प्रकार का छंद। २२ मात्राओं के छंदों की संज्ञा।

महारौद्री
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा।

महारौरव
संज्ञा पुं० [सं०] १. पुराणानुसार एक नरक का नाम। विशेष—कहते हैं, जो लोग देवताओं का धन चुराते या गुरु की पत्नी के साथ गमन करते हैं, वे इस नरक में भेजे जाते हैं। २. एक प्रकार का साम।

महार्घ (१)
वि० [सं०] १. बहु्मूल्य। बड़े मोल का। २. जिसका मूल्य ठीक से अधिक हो। महँगा।

महार्घ (२)
संज्ञा पुं० महासोमलता।

महार्धता
संज्ञा स्त्री० [सं०] महार्घ होने का भाव। महँगी।

महार्घ्य
वि० [सं०] दे० 'महार्घ'।

महार्णव
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. बहुत बड़ा समुद्र। महासागर। २. शिव। ३. पुराणनुसार एक दैत्य जिसे भगवान् ने कूर्म अवतार में अपने दाहिने पैर से उत्पन्न किया था।

महार्थ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] एक दानव का नाम।

महार्थ (२)
वि० [सं०] १. बड़े या गंभीर अर्थवाला। महत्वपूर्ण। २. अत्यधिक संपत्तिवाला। प्रचुर धनयुक्त [को०]।

महार्द्रक
संज्ञा पुं० [सं०] १. जंगली अदरक। २. सोंठ।

महार्बुद
संज्ञा पुं० [सं०] सौ करोड़ या दस अर्बुद की संख्या।

महार्ह (१)
संज्ञा पुं० [सं०] सफेद चंदन।

महार्ह (२)
वि० दे० 'महार्घ'। उ०—उसे राज्य से भी महार्ह धन देता आकर कौन अहो।—साकेत, पृ० ३७१।

महाल
संज्ञा पुं० [अ० महला का बहु ब०] १. वह स्थान जहाँ बहुत से बड़े मकान हों। मुहल्ला। टोला। पुरा। पाड़ा। उ०— ऐहैं जितेक महाल ते सब भानुजा मधि गंग के।—सुजान०, पृ० ८९। २. बंदोबस्त के काम के लिये किया हुआ जमीन का एक विभाग, जिसमें कई गाँव होते हैं। ३. भाग। पट्टी। हिस्सा। उ०—कैधौं रसाल के ताल फले कुच दोऊ महाल जगीर अनंग के।—(शब्द०)।

महालक्ष्मी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. लक्ष्मी देवी की एक मूर्ति का नाम। २. पुराणनुसार नारायण की एक शक्ति का नाम। ३. एक वर्णिक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे तीन रगण होते हैं। जैसे—(क) रात्रि द्यौसौ रहै कामिनी। पीव की जो मनोगामिनी। भाषती बोल वोलै अमी। जानेए सो महालक्ष्मी (ख) राधिका बल्लभै गाइ ले चित्रनी इंद्र से पाइ ले।

महालय
संज्ञा पुं० [सं०] १. कुआर का कृष्णपक्ष जिसमें पितरों के लिये तर्पण और श्राद्ध आदि किया जाता है। पितृपक्ष। २. तीर्थ। ३. पुराणनुसार एक तीर्थ का नाम। ४. नारायण, जिनमें महदादि तत्व का लय होता है। ५. संपुर्ण विश्व का लय। प्रलय।

महालया
संज्ञा स्त्री० [सं०] अश्विन कृष्ण अमावस्या जिस दिन पितृविसर्जन होता है। पितृपक्ष की अतिम तिथि।

महालिंग
संज्ञा पुं० [सं० महालिङ्ग] महादेव।

महालील पु
संज्ञा पुं० [सं० महा+लीला] महान् लीला करनेवाले, श्रीकृष्ण। उ०—महालील मायी महा, महापुरुव मतिमान।— घनानंद, पृ० २६७।

महालोक
संज्ञा पुं० [सं० महा+लोक] दे० 'महर्लोक'।

महालोध्र
संज्ञा पुं० [सं०] पठानी लोध।

महालोभ
संज्ञा पुं० [सं०] कौआ।

महालोल
संज्ञा पुं० [सं०] कौप्रा।

महालोह
संज्ञा पुं० [सं०] चुंत्रक [को०]।

महावंश
संज्ञा पुं० [सं०] एक सुप्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथ का नाम जो पाली में ५ वीं शताब्दि में लिखा गया और जिसमें बौद्धधर्म और सिहल का इतिहास है [को०]।

महावक्षा (१)
संज्ञा पुं० [सं० महावक्षस्] महादेव।

महावक्षा (२)
वि० विशाल वक्षवाला [को०]।

महावट
संज्ञा स्त्री० [हिं० माह (=माघ) वट (प्रत्य०)] पूस माघ की वर्षा। वह वर्षा जो जाड़े में हो। जाड़े की झड़ी। उ०—पैठी हो सरदी रग रग में और वर्फ पिघलता हो पत्थर। झड़ वाँध महावट पड़ती हो और तिस पर लहरें ले लेकर। सन्नाटा बाब का चलता हो तव देख बहारें जाड़े की।— नजीर (शब्द०)।

महावत
संज्ञा पुं० [सं० महामात्र] हाथी हाँकनेवाला। फीलवान। हाथीवान। उ०—(क) हूलै इते पर मैन महावत लाज के आँदु परे जउ पाइन।— पद्माकर (शब्द०)। (ख) द्वार कुबलया गज ठढ़ियावा। अयुत नाग बल तास पावा। कहेसि महावत ते गोहराई। प्रविस्त तै डरि चंपवाई।—विश्राम (शब्द०)।

महावतारी
संज्ञा पुं० [सं० महावतारिन्] २५ मात्राओं के छेदों की संज्ञा।

महावथ पु
संज्ञा पुं० [हिं० महावत] दे० 'महावत'। उ०—मत्त महावथ हथ्थ महैं भल्लारी अति डील।—प० रासी, पृ० ३१।

महावध
संज्ञा पुं० [सं०] वज्र।

महावन
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'महाबन' [को०]।

महावर (१)
संज्ञा पुं० [सं० महावर्ण ?] लाख से बना हुआ एक प्रकार का लाल रंग जिससे सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने पाँवों को चित्रित कराती हैं। यावक। जावक। उ०—(क) पलन पीक अंजन अधर धरे महावर भाल। आज मिले सु भली करी भले वने हौ लाल।—बिहारी (शब्द०)। (ख) आई हौ पायँ दिवाय महावर कुंजन ते करि कै सुख सेनी।—मतिराम (शब्द०)। (ग) काहू दियो लाख रस सोई। जासो तुरत महावर होई।—लक्ष्मणसिंह (शब्द०)।

महावर पु (२)
वि० [सं० महाबल] दे० 'महाबल'। उ०—कुँअरप्पन प्रथिराज तपै तेजह सु महावर। सुकल बीजु दिन हुतें कला दिन चढ़त कलाकर।—पृ० रा०, ५। २।

महावरा (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] दूब।

महावरा (२)
संज्ञा पुं० [अ० मुहावरा] दे० 'मुहावरा'।

महावराह
संज्ञा पुं० [सं०] भगवान् का वराह अवतार।

महावरी
संज्ञा पुं० [हिं० महावर] महावर की बनी हुई गोली या टिकिया जिससे स्त्रियों के पैर चित्रित किए जाते हैं। उ०—(क) पार्यं महावर देन को नाइन बैठी आय। फिरि फिरि जानिमहावरी एँड़ी मीड़ति जाय।—बिहारी (शब्द०)। (ख) छैल छवीली का छवा लहि महावरी संग। जानि परै नाइन लगै जवहिं निचोरन रंग।—रामसहाय (शब्द०)।

महावरेदार
वि० [हिं० महावरा] दे० 'मुहावरेदार'। उ०—कमिटी ने सिफारिश की कि नंवर १ का तरजमा बहुत महावरेदार देशी भापा में किया जाय।—सरस्वती (शब्द०)।

महावरोह
संज्ञा पुं० [सं०] १. पलाश। २. बरगद (को०)।

महावल्ली
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. माधवी लता।२. बहुत बड़ी लता।

महावस
संज्ञा पुं० [सं०] मगर वा शिंशुमार नामक जलजंतु।

महावसु
संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्रावरुण का एक नाम। २. रजत। चाँदी (को०)।

महावाक्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. सोहं शव्द। २. शंकराचार्य जी के मतानुयायियों के मत से 'अहं ब्रह्मास्मि', 'तत्वमसि', 'प्रज्ञान ब्रह्म' और 'अयमात्मा ब्रह्म' इत्यादि उपनिषद् के वाक्य। ३. दान आदि के समय पढ़ा जानेवाला संकल्प।

महावात
संज्ञा पुं० [सं०] जोर की हवा। आंधी तूफान।

महावादी
वि० [सं० महावादिन्] शास्त्रार्थ करने नें शक्तिशाली [को०]।

महावामदेव्य
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का साम जो शांति कार्यों के समय पढ़ा जाता है।

महावायु
संज्ञा पुं० स्त्री० [सं०] तूफान।

महावारुणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] गंगास्नान का एक योग। विशेष—यदि चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को शतभिषा नक्षत्र हो तो उस दिन वारुणी योग होता है। यदि यह योग शनिवार को पड़े तो महावारुणी कहलाता है। पुराणों के अनुसार इस योग में गंगास्नान का बहुत अधिक फल होता है।

महावार्ताकिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] बनभंटा। जंगली बैगन।

महावार्तिक
संज्ञा पुं० [सं०] कात्यायन के वार्तिक का नाम जो पाणिनि के सूत्रों पर है।

महावाहन
संज्ञा पुं० [सं०] एक बहुत बड़ी संख्या का नाम [को०]।

महाविक्रम
संज्ञा पुं० [सं०] १. सिंह। २. एक नाग का नाम।

महाविड
संज्ञा पुं० [सं०] बनाया हुआ नमक। कृत्रिम नमक [को०]।

महाविदेहा
संज्ञा स्त्री० [सं०] योगशास्त्र के अनुसार मन की एक बहिर्वृत्ति।

महाविद्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. तंत्र में मानी हुई दस देवियाँ जिनके नाम इस प्रकार हैं—(१) काली, (२) तारा, (३) षोडशी, (४) भुवनेश्वरी, (५) भैरवी, (६) छिन्नमस्ता, (७) धूमावती, (८) बगलामुखी, (९) मातंगी और (१०) कमलात्मिका। इन्हें सिद्ध विद्या भी कहते हैं। कुछ तांत्रिकों का यह मत है कि इन्हीं दस महविद्याओं ने दस अवतार धारण किए थे। २. दुर्गा देवी। ३. गंगा।

महविद्यालय
संज्ञा पुं० [सं० महा+विद्यालय] बड़ा विद्यालय। उच्च शिक्षा की संस्था। कालेज।

महाविद्येश्वरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा की एक मूर्ति का नाम।

महाविभूत
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक बहुत बहुत बड़ी संख्या का नाम।

महाविभूति
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु।

महाविरति
संज्ञा पुं० [सं०] शिव [को०]।

महाविल
संज्ञा पुं० [सं०] १. आकाश। २. अंतःकरण।

महाविष
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह साँप जिसके काटते ही तुरंत मृत्यु हो जाय। २. दो मुँहवाला साँप (कौ०)।

महाविषुव
संज्ञा पुं० [सं०] वह समय जब सूर्य मीन से मेप राशि में जाता है और दिन रात दोनों समान होते हैं। इस दिन की गणना पुण्यतिथियों में होती है। मेष संक्रांति। चैत की संक्रांति।

महाबीचि
संज्ञा पुं० [सं०] मनु के अनुसार एक नरक का नाम।

महावीत
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार पुष्कर द्वीप के एक पर्वत का नाम।

महावीर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. हनुमान जी। २. गौतम बुद्ध का एक नाम। ३. गरुड़। ४. देवता। ५. सिंह। ६. मनु के पुत्र मरवानल का एक नाम। ७. वज्र। ८. सफेद घोड़ा। ९. बाज पक्षी। १०. कोयल (को०)। ११. विष्णु का एक नाम (को०)। १२. यज्ञ की अग्नि (को०)। १३. यज्ञ में प्रयुक्त पात्र (को०)। १४. जैनियों के चौबीसवें और अंतिम जिन या तीर्थंकर जो महापराक्रमी राजा सिद्धार्थ के वीर्य से उनकी रानी त्रिशला के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। विशेष—कहते हैं, त्रिशला ने एक दिन सोलह शुभ स्वप्न देखे थे जिनके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई थी। जब इनका जन्म हुआ तब इंद्र इन्हें ऐरावत पर बैठाकर मंदराचल पर ले गए थे और बहाँ इनका पूजन करके फिर इन्हें माता की गोद में पहुँचा गए थे। इनका नाम वर्धमान पड़ा था। ये बहुत ही शुद्ध और शांत प्रकृति के थे और भोगविलास को ओर इनकी प्रवृत्ति नहीं होती थी। कहते हैं, तीस वर्ष की अवस्था में कोई बुद्ध या अर्हंत् आकर इनमें ज्ञान का संचार कर गए थे। मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी को ये अपना राज्य और सारा वैभव छोड़कर वन में चले गए और बारह वर्ष तक इन्होंने वहाँ घोर तपस्या की। इसके उपरांत ये इधर से उधर घूमकर उपदेश देने लगे। एक बार इन्होंने भोजन त्याग दिया, जिससे वैशाख कृष्ण दशमी को इन्हों केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। इन्होंने मौन धारण करके राजगृह में रहना आरंभ किया। वहाँ देवताओं ने इनके लिये एक रत्नजटित प्रासाद बनाया था। वहाँ इंद्र के भेजे हुए बहुत से देवता आदि इनके पास आए, जिन्हें इन्होंने अनेक उपदेश दिए और जैन धर्मं का प्रचार आरंभ किया। कहते है कि इनके जीवनकाल में ही सारे मगध देश में जैन धर्म का प्रचार हो गया था। जैनियों कै अनुसार ईसा से ५२७ वर्ष पूर्व महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था, और तभी से 'वीर संवत्' चला है।

महावीर (२)
वि० बहुच बड़ा वीर। बहुत बड़ा बहादुर।

महावीरा
संज्ञा स्त्री० [सं०] क्षीरकाकोली।

महावीर्य (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. ब्रह्मा। २. एक बुद्ध का नाम। ३. जैनों के एक अर्हत् का नाम। ४. तामस शौच्य मन्वंतर के एक इंद्र का नाम। ५. वराहीकंद।

महावीर्य (२)
वि० अत्यंत वीर्यवान् [को०]।

महावीर्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सुर्य को पत्नी संज्ञा का एक नाम। २. वनकपास। ३. महाशतावरी।

महावृक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] १. सेहुँड़। थूहर। २. बहुत बड़ा पेड़। ३. करंज। ४. ताड़। ५. महापीलु।

महावृष
संज्ञा पुं० [सं०] १. पुराणानुसार एक तीर्थ जो सुरम्य पर्वंत के पास है। २. बड़ा साँड़ (को०)।

महावेग (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. गरुड़। ३. तीव्र गति। तेज चाल (को०)। ४. कपि। मर्कट (को०)।

महावेग (२)
वि० अत्यंत वेगवान् [को०]।

महावेगा
संज्ञा स्त्री० [सं०] स्कंद की अनुचरी एक मातृका का नाम।

महावेल
वि० [सं०] तरंगयुक्त। लहरीला [को०]।

महाव्याधि
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'महारोग'।

महाव्याहृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पुराणानुसार ऊपरवाले सात लाकों में से पहले तीन लोकों का समूह। भूः भुवः और स्वः ये तीन लोक। २. सप्त महाव्याहृतियों में प्रारंभ की तीन व्याहृतियाँ जिनका रूप प्रणव से युक्त कहा गया है।—ऊँ० भूः ऊँ० भूवः, ऊँ० स्वः।

महाव्यूह
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की समाधि।

महाव्रण
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'दुष्टव्रण'।

महाव्रत (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. वेद की एक ऋचा का नाम। २. वह व्रत जो बारह वर्षों तक चलता रहे। ३. आश्विन की दुर्गापूजा। ४. माघ मास में अरुणोदय के समय स्नान करना (को०)। ५. बहुत कठिन व्रत।

महाव्रत (२)
वि० महाव्रत करने या लेनेवाला [को०]।

महाव्रती
संज्ञा पुं० [सं० महाव्रतिन्] १. वह जिसने कोई महाव्रत धारण किया ही। २. शिव।

महाशंख
संज्ञा पुं० [सं० महाशङ्ख] १. ललाट। २. कनपटी की हड्डी। मनुष्य की ठठरी। ४. नौ निधियों में से एक। ५. बड़ा शंख। ६. एक प्रकार का सर्प। ७. एक बहुत बड़ी संख्या का नाम। ८. एक प्रकार का वृक्ष।

महाशक्ति (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. कार्तिकेय। २. शिव। ३. पुराण- नुसार कृष्ण के एक पुत्र का नाम।

महाशक्ति (२)
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा। उ०—उतरी पा महाशक्ति रावण से आमंत्रण। —अपरा, पृ० ४६।

महाशठ
संज्ञा पुं० [सं०] १. पीला धतूरा। राजवतूरा। २. अत्यंत शठ, मूर्ख वा छली व्यक्ति।

महाशता
संज्ञा स्त्री० [सं०] महाशतावरी। बड़ी शतावरी।

महाशतावरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] बड़ी शतावरी। विशेष दे० 'सतावर'।

महाशन
वि० [सं०] अतिभोजी। पेटू। बहुत खानेवाला [को०]।

महाशय (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. उच्च आशयवाला व्यक्ति। महानुभाव। महात्मा। सज्जन। २. समुद्र।

महाशय (२)
वि० उच्चात्मा। २. उदारमना।

महाशव्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] राजाओं की शय्या या सिंहासन।

महाशर
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'रामशर'।

महाशल्क
संज्ञा पुं० [सं०] झिंगा मछली।

महाशाखा
संज्ञा स्त्री० [सं०] नागवला। गंगेरन।

महाशाल
संज्ञा पुं० [सं०] वह व्यक्ति जिसका निवास या गृह विशाल हो। महान् गृहस्थ [को०]।

महाशालि
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का लंबा और खुशवूदार चावल [को०]।

महाशासन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. राजा की आज्ञा। २. राजा का वह मंत्री जो उसकी आज्ञाओं या दानपत्रों आदि का प्रचार करता हो। ३. उपनिषदों द्रारा व्याख्यात ब्रह्मज्ञान या परमार्थ वोध (को०)।

महाशासनं
वि० महान् या श्रेष्ट शासनवाला [को०]।

महाशिरा
संज्ञा पुं० [सं० महाशिरस्] एक प्रकार का साँप [को०]।

महाशिव
संज्ञा पुं० [सं०] महादेव।

महाशिवरात्रि
संज्ञा स्त्री० [सं०] शिवचतुर्दशी। शिवरात्रि [को०]।

महाशीतवती
संज्ञा स्त्री० [सं०] बौद्धों की पाँच महादेवियों में से एक देवी का नाम।

महाशीता
संज्ञा स्त्री० [सं०] शतमूली।

महाशीष
संज्ञा पुं० [सं०] शिव के एक अनुचर का नाम।

महाशील
संज्ञा पुं० [सं०] जनमेजय के एक पुत्र का नाम।

महाशुंडी
संज्ञा स्त्री० [सं० महाशुम्डो] हाथीसूड़ नामक क्षुप।

महाशुक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] सीप। मोती की सीप।

महाशुक्र
संज्ञा पुं० [सं०] जैनों के अनुसार दसवें स्वर्ग का नाम।

महाशुक्ला
संज्ञा स्त्री० [सं०] सरस्वती।

महाशुभ्र
संज्ञा पुं० [सं०] चाँदी।

महाशूद्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. ऊँचे पदवाला शूद्र। उच्च पदस्थ शूद्र। २. ग्वाला। गोप [को०]।

महाशूद्री
संज्ञा स्त्री० [सं०] गोप की स्त्री। ग्वालिन [को०]।

महाशून्य
संज्ञा पुं० [सं०] आकाश।

महाशोण
संज्ञा पुं० [सं०] सोन नद।

महाश्मशान
संज्ञा पुं० [सं०] काशी नगरी का एक नाम।

महाश्मा
संज्ञा पुं० [सं० महाश्मन्] कीमती पत्थर [को०]।

महाश्रमण
संज्ञा पुं० [सं०] भगवान् बुद्ध का एक नाम।

महाश्रावणिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] गोरखमुंडी।

महाश्री
संज्ञा स्त्री० [सं०] वुद्ध की एक शक्ति का नाम।

महाश्रेप्ठी
संज्ञा पुं० [सं० महाश्रेप्टिन्] बहुत बड़ा सठ। उ०— विशाखा का विवाह पुण्यवर्धन से हुआ था जो। साकेत के महाश्रेष्टी भिगार का पुत्र था।—हिंदु० सम्यता, पृ० २४४।

महाश्लक्ष्ण
संज्ञा स्त्री० [सं०] सिकता। बालुका। रेत [को०]।

महाश्वास
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार श्वाम रोग। २. वह अंतिम साँस जो मरने के समय चलती है। उ०— महाश्वास जिस पुरुप को होय वह तत्काल मरण को प्राप्त होय।— मावव०, पृ० ९५।

महाशवेता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सरस्वती। २. दुर्गा। ३. सफेद अपराजिता। ४. चीनी। शर्करा।

महापष्ठी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दुर्गा। २. सरस्वती [को०]।

महापृमी
संज्ञा स्त्री० [सं०] आश्विन मास के शुकल पक्ष की अष्टमी।

महासंक्राति
संज्ञा स्त्री० [सं० महासङ्कर्न्ति] दे० 'संक्रांति'।

महासंख पु
संज्ञा पुं० [सं० महाशङ्ख] दे० 'महाशंख'। उ०—संखरूप शिवदेव महासंख वानारली। दोऊ मले अबेब साहिब सेवक एक से।—अध०,पृ० २२।

महासंधिविग्रह
संज्ञा पुं० [सं० महासनिधविग्रह] परराष्ट्रमंत्री का कार्यालय जहाँ से संधि और संधर्ष भी समस्या हल की जाती है।

महासत्कार
संज्ञा पुं० [सं०] अंत्येष्टि। दाह संस्कार। उ०— आज नरपति का महासंस्कार। उमड़ने दो लोक पारावार।— साकेत, पृ० १९५।

महासंस्कारी
संज्ञा पुं० [सं० महासंस्कारिन्] एक प्रकार का छंद। १७ मात्राओं के छंदो की संज्ञा।

महासती
संज्ञा स्त्री० [सं०] अत्यंत पतिब्रता एवं मच्चरित्र महिला। परम साघ्वी स्त्री [को०]।

महासत्ता
संज्ञा स्त्री० [सं०] जैनों के अनुसार वह विश्वव्यापिनी सत्ता जिसमें विश्व के समस्त जीवों और पदार्थों की सत्ता अंतर्भुक्त है। सवसे वड़ी और प्रधान सता जो सब प्रकार की सत्ताओं का मूल आधार है।

महासत्ति पु †
संज्ञा स्त्री० [सं० महाशक्रि] एक जंतु जो श्रृगाल से भिन्न होता है, उ०—डाँवी महासत्ति फैकरइ।—बी० रासो, पृ० ६१।

महासत्व
संज्ञा पुं० [सं०] यमराज।

महासत्त्य (१)
संज्ञा पुं० [सं० महासत्त्य] १. कुवेर। २. शाक्य मुनि। ३. एक वोधिसत्व का नान। ४. विशालकाय पशु। वड़े शरीर का पशु (को०)।

महासत्य (२)
वि० १. योग्य। महान्। २. अत्यधिक शक्तिशाली। ३. न्यायपूर्ण। न्यायोचित [को०]।

महासन
संज्ञा पुं० [सं०] सिंहासन।

महासभा
संज्ञा पुं० [सं० महा+सभा] १. बहुत वड़ी सभा। बिशाल समारोह। २. बहुत वड़ा संघटन। विशल संध। ३. लोक निर्वाच्छित प्रतिनिधियों की सभा। उ०—इंग्लैड आदि देशों की पालियामेंट आदि महासभाओं में भी कई दल रहते है।—प्रेमघन०, भा० २, पृ० २९१।

महासमंगा
संज्ञा स्त्री० [सं० महासमङ्गा] कँगही या कंघी नामक पौवा।

महासमर
संज्ञा पुं० [सं०] महान् युद्ध। विश्वयुद्ध।

महासमुद्र
संज्ञा पुं० [सं०] बहुत बड़ा समुद्र। महासागर।

महासर्ग
संज्ञा पुं० [सं०] जगत् की रचना जो महाप्रलय के उपरांत फिर से होती है।

महासर्ज
संज्ञा पुं० [सं०] कटहल का वृक्ष।

महासह
संज्ञा पुं० [सं०] कुब्जल वृक्ष। कुरंकट। वाणपुष्प [को०]।

महासहा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. माषपर्णी। २. अम्लान वा कुब्जक वृक्ष [को०]।

महासांतपन
संज्ञा पुं० [सं० महासान्तपन] एक व्रत जिनमें पाँच दिन तक क्रम से पंचगव्य, छठे दिन कुशजल पीकर सातवें दिन उपवास किया जाता है।

महासांधिविग्रहिक
संज्ञा पुं० [सं० महासान्धिविग्रहिक] प्राचीन काल का वह राजकीय अधिकारी या मंत्री जो अन्य देश से संधि और झगड़े की समस्या सुलझाता था। उ०—महासांधिविग्राहिक ! साधु ! यह वंशपरंपरागत तुम्हारी ही विद्य है।—स्कंद०, पृ० १३।

महासागर
संज्ञा पुं० [सं०] विशाल समुद्र। जैसे, भारतीय महासागर, प्रशांत महासागर, आदि।

महासार
संज्ञा पुं० [सं०] खदिर वृक्ष का एक भेद [को०]।

मंहासारथि
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'अरुण' [को०]।

महासाहस
संज्ञा पुं० [सं०] अत्याधिक उग्रता, बालात्कारिता, धृष्टता और निर्लज्रतापूर्ण काम [को०]।

महासाहसिक
संज्ञा पुं० [सं०] १. चोर। डाकू। २. वह व्यक्ति जो अत्यंत साहसी हो।

महासिंह
संज्ञा पुं० [सं०] १. दुर्गादेवी का वाहन सिंह। २. शरभ (को०)।

महासि
संज्ञा स्त्री० [सं०] बड़ी तलवार [को०]।

महासिद्धि
संज्ञा स्त्री०[सं०] महान् सिद्धि। एक तांत्रिक शक्ति। इनकी संख्या ८ कही गई है।

महासिधि पु
संज्ञा स्त्री० [सं० महासिद्धि] दे० 'महासिद्धि'। उ०—बगर बोहारति अष्ट महासिधि। द्वारे सथिया परति नौ निधि।—नंद० ग्रं०, पृ० ३३१।

महांसिल
संज्ञा पुं० [अ०] १. आय। आमदनी। २. राजस्व। मालगुजारी। भूमिकर। लगान।

महासिल पु (२)
वि० लगान या कर आदि वसूल करनेवाला। उ०— काल महासिल साहु का सिर पर पहुँचा आय।—पलटू०, भा० १, पृ० २४।

महासीर
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार की मछली जो पहाड़ी नदियों में पाई जाती है और जिसका मांस बहुत अच्छा माना जाता है।

महासुख
संज्ञा पुं० [सं०] १. शृंगार। सजावट। २. बुद्धदेव का एक नाम। ३. मैथुन। संभोग (को०)। ४. वज्रयानी बौद्धों के अनुसार निर्वाण के तीन अवयवों में से एक। उ०— निर्वाण के तीन अवयव ठहराए गए, शून्य, विज्ञान और महासुख।—इतिहास, पृ० ११। विशेष—प्रज्ञा और उपाय के योग से सुलभ सहवास का यह सुख निर्वाण के सुख के समान माना जाता है। इसमें साधक इस प्रकार विलीन हो जाता है जिस प्रकार नमक पानी में।

महासुन्न पु †
संज्ञा पुं० [सं० महाशुन्य] दे० 'महाशून्य'। उ०— पारब्रह्म महामुन्न मँझारा।—कवीर श०, भा० ३, पृ, ७१।

महासुर
संज्ञा पुं० [सं०] एक दानव का नाम।

महासुरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा।

महासूक्ष्मा
संज्ञा स्त्री० [सं०] रेत। बालू [को०]।

माहासूचि
संज्ञा स्त्री० [सं०] युद्ध के समय की एक प्रकार की व्यूहरचना।

महासूत
संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा जो युद्धक्षेत्र में बजाया जाता था।

महासेन
संज्ञा पुं० [सं०] १. कार्तिकेय। स्वामिकार्तिक। २. शिव। ३. बहुत बड़ा या सबसे प्रधान सेनापति।

महासौषिर
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का रांग जिसमें दाँर्तों के मसूढ़े सड़ जाते हैं और मुँह में से बहुत दुर्गंधि आती है। विशेष—कहते हैं, जब यह रोग होता है, तब आदमी सात दिनों के अंदर मर जाता है।

महास्कंध
संज्ञा पुं० [सं० महास्कन्ध] ऊंट।

महाकंस्धा
संज्ञा स्त्री० [सं० महास्कन्धा] जामुन का वृक्ष।

महास्थली
संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी [को०]।

महास्नायु
संज्ञा पुं० [सं०] वह प्रधान नाड़ी जिसमें से रक्त बहता है। इसे कंडरा या अस्थिबंधन नाड़ी कहते हैं।

महास्पद
वि० [सं०] १. ऊचे पद पर आसीन। उच्चपदस्थ। २. शक्तिशाली। बलवान [को०]।

महास्मृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा।

महास्वन
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का ढोल जिससे बहुत जोरों की आवाज निकलती हो [को०]।

महाहंस
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का हंस। २. विष्णु।

महाहनु
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. तक्षक की जाति का एक प्रकार का साँप। ३. एक दानव का नाम।

महाहविस्
संज्ञा पुं० [सं० महाहविप्] घृत। घी [को०]।

महाहस्त
संज्ञा पुं० [सं०] शिव।

महाहास
संज्ञा पुं० [सं०] जोर से ठठाकर हँसना। अट्टहास।

महाहि
संज्ञा संज्ञा [सं०] वासुकि नाग।

महाहिक्का
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का हिचकी का रोग जिसमें हिचकी आने के समय सारा शरीर काँप उठता है और मर्मस्थान में वेदना होती है। उ०—जो हिचकी मर्मस्थान में पीड़ा करती हुई और सर्वगात्र की र्कपाती हुई सर्वकाल प्रवृत्त होय उसकी महाहिक्का कहते है।—माधव०, पृ० ९३।

महाहिमवान्
संज्ञा पुं० [सं० महाहिमवत्] जैनों के अनुसार दूसरा पर्वत जो हैमवत और हरि नाम के दो खंडों में विभक्त है।

महाह्न
संज्ञा पुं० [सं०] अपराह्न। दिन का तीसरा पहर [को०]।

महाहु पु †
वि० [सं० महाह्वय] महत्वपूर्ण। महान्। मूल्यवान्। उ०—बंधौ रत्न महाहु।—प्राण०, पृ० २७।

महाह्रद
संज्ञा पुं० [सं०] शिव।

महाह्रस्व
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० महाह्रस्वा] केंवाच। कोछ।

महिँ पु (१)
अव्य० [हिं०] दे० 'महं'।

महि (२)
सर्व० [हिं०] दे० 'मोहिं'। उ०—ते काज राज सम्है सुमति लिपि कग्गद महिं अप्पपौ।—पृ० रा०, २६। ११।

महिंजक
संज्ञा पुं० [सं० महिञ्जक] चूहा।

महिंधक
संज्ञा स्त्री० [सं० महिन्धक] १. चूहा। २. नेवला। ३. भार उठाने का छोंका। सिकहर जिसे बहँगो के दोना छोरों में बोधकर कहार बोझ उठाते है।

महि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पृथ्वी। धरती। २. महिमा। ३. महत्ता। ४. महत्तत्व।

महिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पृथ्वी। धरती। २. महिमा। ३. महत्ता। ४. महत्तत्व।

महिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पृथ्वी। धरती। २. हिम। बर्फ। यौ०—महिकांशु=चंद्रमा। शीतांशु।

महिख पु
संज्ञा पुं० [सं० महिए] दे० 'महिष'। उ०—महाराज दल मेल, पौल जोधोण, पधारे। महिख पंच मैमत्त सगत पोखी खग धारे।—रा० रू०, पृ० ३५१।

महिखरी
संज्ञा स्त्री० [?] अट्ठाईस मात्राओं के एक छंद का नाम जिसमें चौदह मात्राओं पर यति होती है।

महित (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव का धनुष। पिनाक। २. त्रिशूल। ३. पूजित [को०]।

महित (२)
वि० पूजित। संमानित। आद्दत [को०]।

महितारी पु †
संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'महतारी'। उ०—कवनि महितारी कवन पिता।—प्राण०, पृ० १२४।

महित्व
संज्ञा पुं० [सं०] शक्ति। प्रभुत्व। गौरव [को०]।

महिदास
संज्ञा पुं० [सं० महि+दास] दे० 'महीदास'।

महिदेव
संज्ञा पुं० [सं०] ब्राह्मण। उ०—मुदित महिप महिदेवन्ह दीन्हीं।—मानस, १।३३१।

महिधर
संज्ञा पुं० [सं० महि+धर] १. दे० 'महिधर'। २. शेषनाम। उ०—जो सहससीसु अहासु महिवर लखन सचराचर धनी।—मानस, २।१२६।

महिन पु (१)
वि० [हिं०] दे० 'महीन'। उ०—बैठि चाँदनी जल लहिर जेठ महिन पट धारी।—ब्रज ग्रं०, पृ० १०४।

महिन (२)
संज्ञा पुं० [सं०] प्रभुत्व। ईशत्व [को०]

महिना †
संज्ञा पुं० [फा़० माह] मासिक भृति। दे० 'महीना-२'।उ०—सो वा म्लेच्छ ने गोपालदास जनार्दनदास कौ और वा दरोगा म्लेच्छ कौ इन तीनोन के महिना काटि लिए।—दो सौ बाबन०, भा० १, पृ० २४२।

महिप
संज्ञा पुं० [सं० महीप] राजा। नरेश। उ०—अहिप महिप जहै लगि प्रभुताई।—मानस, २। २५३।

महिपाल पु
संज्ञा पुं० [सं० महि+पाल] दे० 'महीपाल'। उ०— तहाँ राम रघुबंस मनि सुनिय महा महिपाल।—मानस, १। २९२।

महिफर ‡
संज्ञा पुं० [सं० मधुफल] मधु। शहद।

महिबाल पु
संज्ञा पुं० [सं० महि+बाल (=प्रुत्र) ] भौम। मंगल। उ०—कुज अंगारक भौम पुनि लोहितांग माहबाल।—अनेकार्थ०, पृ० ७२।

महिमंड पु
वि० [हिं० महि+मंड] महिमायुक्त। महिमान्वित। उ०—पार परि कोऊ न सक्यौ है विथक्यौ हे ओऊ, खोजैं सिद्ध चारन मुनीस महिमंड है।—घनानंद, पृ० १४२।

महिम पु
देश० पुं० [सं० महिमा] महत्व। गौरव। उ०—सन्नाह महिम बरनी न जाइ।—पृ० रा०, ७। ६१।

महिमा
संज्ञा स्त्री० [सं० महिमन्] महत्व। महात्म्य। बड़ाई। गौरव। उ०—सबही हंसा एक सरीखा अब गुरु महिमा को कौन। विशेषा।—कबीर सा०, पृ० ९५४। २. प्रभाव। प्रताप। उ०—सुनि आचरज करइ जनि कोई। सत संगति महिमा नहिं गोई।—तुलसी (शब्द०)। ३. आणिमा आदि आठ प्रकार की सिद्धियों या ऐश्वर्यें में से पाँचवीं जिससे सिद्ध योगी अपने आपको बहुत बड़ा बना लेता है। यौ०—महिमाधर=महिमावान्। उ०—जागी विश्वाश्रय महिमा- धर फिर देखा।—तुलसी०, पृ० १३। महिमान्वित=दे० 'महिमावान्'। महिमामांडत=गौरवयुक्त। महिमामय= दे० 'महिमावान्। महिमामयी=महिमायुक्त।

महिमान पु
संज्ञा पुं० [फा० मेहमान+ई] दे० 'मेहमान'। उ०— रष्पि पंच दिन राज चंद आदर बहु किन्नौ। भोजन भाव भगत्ति प्रीति महिमान सु किन्नौ।—पृ० रा०, ५८। १५३।

महिमानी पु
संज्ञा स्त्री० [हिं० महमान+ई] दे० 'मेहमानी'। उ०—महिमानी पठई नृपति सबै सथ्थ के हेत।—ह० रासो, पृ० ५३।

महिमावान् (१)
संज्ञा पुं० [सं० महिमावत्] मार्कंडेय पुराणनुसार एक प्रकार के पितृगण।

महिमावान् (२)
वि० महिमायुक्त। प्रतापी। गौरवपूर्ण। श्रेष्ठ।

महिम्न
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव का एक प्रधान स्तोत्र जिसे पुष्प- दंताचाय न रचा था। २. शिव, विष्णु आदि किसी देव की महिमापरंक स्तोत्र।

महिय पु
संज्ञा स्त्री० [सं० मही] दे० 'मही'। उ०—हय हथ्थि देत संक न मन खल खंडन गढ़ गिरन वर। चिहुँ आर जोर दसहुँ दिसा, कोरति विस्तरि महिय पर।—पृ० रा०, ५। २। यौ०—महियपाल=पृथ्वी का पालक, राजा। उ०—महियपाल भुवपाल बुल्लि भूपात सह बानिय।—प० रासो, पृ० ६९।

महियल पु
संज्ञा स्त्री० [सं० महीतल] दे० 'मही'। उ०—कहि महिवल वल कितौ, एक दट्ठं हरि धारिय। कहि बासिग वल कित्तौ नु फुनि कार नेत्रा सारिय।—पृ० रा०, १। ७८०।

महियाँ पु
अव्य० [सं० मध्य, प्रा० मज्झ (=महँ)] में। उ०— (क) जेती लाज गोपालहिं मेरी। तेती नाहिं वधू हौ जाकी अंवर हरत सवन तन हेरी। पति अति रोप करै मनी महियाँ भीषम दई वेद विधि टेरी।—सूर (शव्द०)। (ख) सवँ मिलि पूजौ हरि की बहियाँ। जो नहि लेत उठाइ गोबर्धन को वाँचत ब्रज महियाँ। कोमल कर गिरि घरयो घोष पर शरद कमल की छहियाँ। सूरदास प्रभु तुमरे दरश आनंद होत ब्रज महियाँ।— सूर (शव्द०)।

महिया †
संज्ञा पुं० [हिं० महना] ईख के रस का फेन जो उबाल खाने पर निकलता है।

महियाउर †
संज्ञा पुं० [हिं० मही (=महा)+चाउर (=चावल)] मठे में पका हुआ चावल। उ०—माठा महिं महियाउर नावा। भीज बरा नैनु जनु खावा।—जायसी (शव्द०)।

महिर
संज्ञा पुं० [सं० मिद्दिर] १. सूर्य। २. मदार का पौधा (का०)।

महिरावण
संज्ञा पुं० [सं० महि+रावण] एक राक्षस का नाम। विशेष—कहते हैं, यह रावण का लड़का था और पाताल में रहता था। यह रामचंद्र और लक्ष्मण को लंका के शिविर से उठाकर पाताल ले गया था। रामचंद्र और लक्ष्मण को ढूँढ़ते हुए हनुमान जो पाताल गए थे और महिरावण को मारकर राम लक्ष्मण को ले आए थे। यह कथा वाल्मीकि रामायण और पुराणों में नहीं पाई जाती।

महिल पु
संज्ञा स्त्री० [सं० महिला] दे० 'महिला'। उ०—(क) जमुन उतरि निकट, मिलिय महिल इन रूप।—पृ० रा०, ६१। १४४। (ख) मिलि महिल सगुन सरूप। द्रग अप्प निरखत भूप।—पृ० रा०, ६१। १४६। (ग) को महिल को वर गेह।—पृ० रा०, ६१। १५४।

महिला (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. स्त्री। २. फूलप्रियंगु की लता। ३. रेणुका नामक गंधद्रव्य। ४. कामुक या मदीन्मत्त स्त्री (को०)।

महिला पु (२)
संज्ञा पुं० [अ० महल] महल। उच्च स्थान। परम पद। उ०—तौ योगी महिला देषे सहिला नाँही लहिला वो महिला।—सुंदर० ग्रं०, भा० १, पृ० २३५।

महिष
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० महिषी] १. भैंसा। २. वह राजा जिसका अभिपेक शास्त्रानुसार किया गया हो। ३. एक राक्षस का नाम जिसे पुराणनुसार दुर्गा देवी ने मारा था। ४. एक वर्णासंकर जाति का नाम जो स्मृतियों में क्षत्रिय पिता और तीवरी माता से उत्पन्न कही गई है। ५. एक साम का नाम। ६. पुराणनुसार कुश द्वीप के एक पर्वंत का नाम। ७. कुश द्वीप के एक वर्ष का नाम। ८. भागवत के अनुसार अनुहाद के पुत्र का नाम। ९. निरुक्त के अनुसार देवगण का एक भेद (को०)। १०. मत्स्यपुराणनुसार एक प्रकार की अग्नि (को०)।

महिषकंद
संज्ञा पुं० [सं० महिपकन्द] शुभ्रालु। भैंसाकंद।

महिषक
संज्ञा पुं० [सं०] एक वर्णसंकर जाति का नाम।

महिषघ्नी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा।

महिषध्वज
संज्ञा पुं० [सं०] १. यमराज। २. जैन शास्त्रानुसार एक अर्हत का नाम।

महिपपाल, महिषपालक
संज्ञा पुं० [सं०] भैंसा पालनेवाला [को०]।

महिषमत्स्य
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की मछली जो काले रंग की होती है। इसके सेहरे बड़े बड़े होते हैं। यह बल वीर्यकारी और दीपन गुणयुक्त मानी जाती है।

महिषमर्दिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा का एक नाम।

महिषमस्तक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार जड़हन धान।

महिषवल्ली
संज्ञा स्त्री० [सं०] छिरेटा।

महिषवहन, महिषवाहन
संज्ञा पुं० [सं०] यमराज।

महिषाक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] भैसा गुग्गुल।

महिषाक्षक
संज्ञा पुं० [सं०] गुग्गुल [को०]।

महिषार्द्दन
संज्ञा पुं० [सं०] स्कंद का एक नाम।

महिषासुर
संज्ञा पुं० [सं०] एक असुर का नाम जो रंभ नामक दैत्य का पुत्र था। विशेष—कहते हैं, इसकी आकृति भैसे की थी और इसे दुर्गाजी ने मारा था। मार्कंडेय पुराण में इसकी सविस्तर कथा लिखी है।

महिषी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. भैस। २. रानी, विशेषतः पटरानी। ३. सैरिंध्री। ४. व्यभिचारिणी स्त्री। ५. पत्नी के व्यभिचार से प्राप्त संपत्ति। महिषिक (को०)। ६. एक प्रकार की चिड़िया। ७. एक औषधि का नाम। यौ०—महिषीकंद। महिपीपाल=भैंस पालावाला। महिषी- प्रिया। महिषीस्तभ।

महिषीकंद
संज्ञा पुं० [सं० महिषीकन्द] एक प्रकार का कंद जिसे भैंसा कंद भी कहते हैं। शुभ्रालु।

महिषीप्रिया
संज्ञा पुं० [सं०] शुली नामक घास।

महिषेश
संज्ञा पुं० [सं०] १. महिपासुर। उ०—महामोह महिषेश विशाला। राम कथा कालिका कराला।—तुसली (शब्द०)। २. यमराज। उ०—कह महिषेश वहाँ ले जाओ। चित्रगुपित्रै वाहि देखा ओ।—विश्राम (शब्द०)।

महिपोत्सर्ग
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का यज्ञ।

महिष्ठ
वि० [सं०] बहुत बड़ा।

महिसुता
संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्त्री की पुत्री, सीता [को०]।

महिष्ष पु
संज्ञा पुं० [सं० महिष] दे० 'महिष'।

महिसुर
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'महीसुर'। उ०—सुर माहसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इनपर न सुराई।—मानस, १। १७३।

मही (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पृथ्वी। २. मिट्टी। ३. अवकाश- देश। स्थान। ४. नदी। ५. क्षेत्र का आधार। ६. सेना। ७. झुंठ। समुह। ८. एक की संख्या। ९. गाय। १०. हुरहुर। हुलहुल। ११. एक छंद का नाम जिसमे एक लघु और एक गुरु मात्रा होती है। जैसे, मही, सगी, नदी इत्यादि। १२. भू संपत्ति। जमीन जायदाद (को०)। १३. बहुत बड़ी सेना। विशाल सेना (को०)।

सहि (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० मथिन, हिं० महना] मठ्ठा। छाछ। उ०—(क) तुलसी मुदित दूत भयो मानहुँ अमिय लाहु मांगत मही।—तुलसी (शब्द०) (ख) छाँड़ि कनक मणि रत्न अमोलक काँच को किरच गही। ऐसी तू है चतुर विवेकी पय तजि। पयत मही।— सूर (शब्द०)। (ग) दूध दही माखन मही बचै नही ब्रज माँझ। ऐसी चोरी करतु है फिरतु भोर अरु साझ।— लल्लू (शब्द०)।

महाअल पु
संज्ञा पुं० [सं० महीतल] भूमि। पृथ्वी। उ०—कालु अहेरी। जीअ न छीड़े जाल थाल महीअल सारे।—प्राण०, पृ० १३८।

महीक्षित्
संज्ञा पुं० [सं०] राजा।

महीखड़ी
संज्ञा स्त्री० [देश०] सिकलीगरों का एक ओजार जिसकी धार कुद होती है और जिसमें लकड़ी का दस्ता लगा रहता है। इससे बर्तन आद खुरचकर साफ किए जाते है और उनपर जिला की जाती है।

महीज
संज्ञा पुं० [सं०] १. अदरक। आदी। २. मंगल ग्रह। ३. नरकासुर (को०)।

महीजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. अदरक। आदी। २. मंगल ग्रह। ३. नरकासुर (को०)।

महीजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] महीसुता। सीता [को०]।

महीतल
संज्ञा पुं० [सं०] पृथ्वी। संसार।

महीदास
संज्ञा पुं० [सं०] ऐतरेय ब्राह्मण के रचयिता एक ऋषि का नाम। यह इतरा नामक दासी के पुत्र थे।

महोदुर्ग
संज्ञा पुं० [सं०] मिट्टी का किला [को०]।

महीदेव
संज्ञा पुं० [सं०] ब्राह्मण।

महीधर
संज्ञा पुं० [सं०] १. पर्वत। २. बौद्धों के अनुसार एक देवपुत्र का नाम। ३. शेषनाग। उ०—धर्मं करत अति अर्थ बढ़ावत। संतति हित रवि कोविद गावत। संतति उपजत ही निशि वासर। साधत तन मन मुक्ति महीधर।—केशव (शब्द०)। ४. एक वर्णिक वृत्त का नाम जिसमें चौदह बार क्रम से लघु और गुरु आते है। यथा, सदा कुसंग धारिये, नहीं कुसंग सारिये, लगाय चित्त सीख मानिये खरी। ५. विष्णु (को०)। ६. वेदभाष्य के एक रचयिता जिनका भाष्य महीधर भाष्य नाम का है।

महिध्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. महीधर। पर्वत। उ०—खस खस पड़ते समुन्नत महीध्र शृंग, अचला के अंक में लिपटते, करके प्रवाह भंग।—बापू, पृ० १५। २. विष्णु का नाम (को०)। ३. सात की संख्या का वाचक शब्द (को०)।

महिध्रक
संज्ञा पुं० [सं०] १. महीध्र। २. एक राजा का नाम।

महीन (१)
वि० [सं० महा+झीन (सं० क्षीण)] १. जिसकी मोटाई मा घेरा बहुत ही कम हो। 'मोटा' का उल्टा। पतला।सूक्ष्म। जैसे, महीन नागा, महीन तार, महीन सुई, आदि। २. जिसके दोनों ओर के तलों के वीच बहुत कम अतर हो। जो बहुत कम मोटा हो। बारीक। झीना। पतला। जैसै, महीन कपड़ा, महीन कागज, महीन छाल। उ०—दास मनीहर आनन वाल को दीपित जाकी दिरैं सब दीपै। श्रौन सुहाये। वराजि रहे मुकुताहल संयुत ताहि समीपै। सारी महोन सी लीन बिलोकि विचारत है कवि के अवनीपै। सादर जानस साही मिलो सुन संग। लिए मनो सिधु की सीपैं।— मनोहरदास (शब्द०)। मुहा०—महीन काम=वह काम जिसके करने में बहुत सावधानी और आँख गड़नि का आबश्यकता पड़ती हो। जैसे, सीना, चित्रकारी, सूची कर्म आदि। ३. जो बहुत कम या ऊचा या तेज न हो। कोमल। धीमा। मंद। विशेष—इस अर्थ में यह शब्द प्रायः शब्द या स्वर के लिये ही आता है।

महीन (२)
संज्ञा पुं० [सं०] राजा।

महीना
संज्ञा पुं० [सं० मास या माः>मि० फा० माह] १. काल का एक परिमाण जो वर्ष के बारहबे अँश के वरावर होता है। विशेष—यह साधारणतया तीस दिन का होता है। पर कोई कोई महीने इससे अधिक ओर न्यून भी होते है। आजकल भारत- वर्प में कई प्रकार के महीने प्रचलित है—देशी, अरबी और अंग्रेजी। देशी या हिंदी महीने चार प्रकार के होते है—सौर मास चांद्र मास, नक्षत्र मास और सावन मास (विवरण के लिये देखो 'मास')। अरबी महीना एक प्रकार का चांद्र मास है जो शुक्ल द्वितीया से प्रारंभ होता है। अंगरेजी महीना सौर मास का एक भेद है जिसमें संक्रांति से महीना नहीं बदलता किंतु प्रत्येक महीने के दिन नियत होते हैं। जो काल प्रचांलत या चांद्र वर्ष में, उसे सौर वर्ष के बराबर करने के लिये जोड़ा जाता है, उसे लौंद कहते हैं; और यदि यह काल एक महीने का होता है, जो उसे लौंद का महीना या मलमास कहते हैं (दे० 'मलमास')। देशी वर्षों में प्रति तीसरे वर्ष मलमास होता है और उस समय वर्ष में बारह महीने न होकर तेरह महीने होते हैं। अँगरेजी वर्षें में प्रति चौये वर्ष लौंद का एक दिन अधिक बढ़ाया जाता है; पर अरबी महीनों के वर्षो में सौर वर्ष से मेल मिलाने के लिये लौंद का काल नहीं जोड़ा जाता; इसलिये प्रति तीसरे वर्ष सौर वर्ष से लगभग एक महीने का अंतर पड़ जाता है। देशी सहीनों के नाम इस प्रकार हैं— संस्कृत हिंदी चैत्र चैत वैशाख बैसाख ज्येष्ठ जेठ आषाढ़ असाढ़ श्रावण सावन भाद्र या भाद्रपद भादों

आश्विन कुआर, आसोज या आसों कार्तिक कातिक मार्गंशीर्ष अगहन या मँगसर पौष पूस माघ माघ या माह फाल्गुन फागुन अरबी महीनों के नाम इस प्रकार हैं—मुहर्रम, सफर, रवी उल् अव्वल, जमादि उल् अव्वल, रवी उस् सानी, रज्जब, शावान, रमजान, शौबाल, जीफाद, जिलहिज्ज। अँगरेजी महीनों के नाम इस प्रकार है—जनवरी, फरवरी, मार्च,अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितंवर, अक्टुबर, नवंबर, दिसंबर। २. वह वेतन जो महीना भर काम करने के वदले में काम करनेवाले को मिले। मासिक वेतन। दरमाहा। ३. स्त्रियों का रजोधर्म या मासिक धर्म। मुहा०—महीने से होना=स्त्रियों का रजस्वला होना। रजोधर्म से होना।

महीनाथ
संज्ञा पुं० [सं०] नरेश। राजा [को०]।

महीप
संज्ञा पुं० [सं०] राजा। उ०—महा महीप भए षमु आई।—मानस, १। २८३।

महीपति
संज्ञा पुं० [सं०] राजा। उ०—सुनहु महीपति मुकुट मनि तुम्ह सम धन्य न कोउ।—मानस, १।२९१।

महीपाल
संज्ञा पुं० [सं०] राजा।

महीपुत्र
संज्ञा पुं० [सं०] मंगलग्रह।

महीपुत्री
संज्ञा स्त्री० [सं०] सीता [को०]।

महीप्रकंप
संज्ञा पुं० [सं० महीप्रकम्प] भूडोल। भूकंप [को०]।

महीप्ररोह
संज्ञा पुं० [सं०] वृक्ष।

महीप्राचीर
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र।

महीप्रावर
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र।

महीभर्ता
संज्ञा पुं० [सं० महीभर्तृ] [स्त्री० महभर्त्री] महीप। राजा। महीपति।

महीभुक्
संज्ञा पुं० [सं०] राजा।

महीभुज्
संज्ञा पुं० [सं०] राजा।

महीभृत्
संज्ञा पुं० [सं०] १. राजा। २. पर्वत।

महीमंडल
संज्ञा पुं० [सं० महीमण्डल] पृथ्वी। भूमंडल।

महीम
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का गन्ना। विशेष—यह पीलापन लिए हरे रंग का होता है। इसे पूने का पौढ़ा भी कहते है।

महीमय
वि० [सं०] मृत्तिकानिर्मित। मृत्तिकामय [को०]।

महीमान पु
संज्ञा पुं० [सं० महीयान्] विशाल। दे० 'महीयान्'। उ०—प्रगटि पुरातन खंडना, महीमान सुख मंडना।—दादू०, पृ० ५४५।

महीमृग
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का जंतु।

महीयस्
वि० [सं०] [वि० स्त्री० महीयसी] वहुत बड़ा। महान्। २. बलवान् (को०)।

महीयान
वि० [सं० महीयस् (=महीयान्)] १. अपेक्षाकृत बड़ा। बड़ा। विशाल। २. शक्तिशाली। बलवान। उ०—लोहित लोचन रावण मद मोचन महीयान।—अपरा, पृ० ३०।

महीर (१)
संज्ञा स्त्री० [हिं० मही] १. वह तलछट जो मक्खन तपाने से नीचे बैठ जाती है। उ०—ब्रह्म मैं जगत यह ऐसी विधि देखियत जैसी विधि देखियत फूलरी महीर मैं।—सुंदर० ग्रं०, भा० २, पृ० ६५०। २. मट्ठे में पकाया हुआ चावल। मट्ठे की वनी खीर।

महीरण
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणनुसार धर्म के एक पुत्र का नाम। यह विश्वेदेवा के अंतर्भूत हैं।

महीरावण
संज्ञा पुं० [सं०] अदभुत रामायण के अनुसार रावण के एक पुत्र का नाम। विशेष दे० 'महिरावण'।

महीरिपर्य पु
संज्ञा पुं० [सं० महर्षि] महर्षि। महान् ऋषि। उ०—तिन पुच्छिय बत्त महीरिषयं।—पृ० रा०, ५९। ५८।

महीरूह
संज्ञा पुं० [सं०] वृक्ष। पेड़। उ०—विशीर्ण डालियाँ महीरुहों की टुटने लगीं। शमा की झालरें व टक्करों से फूटने लगीं।—सामधेनी, पृ० ७६।

महीलता
संज्ञा स्त्री० [सं०] केचुआ।

महीला
संज्ञा स्त्री० [सं०] औरत। नारी। महिला [को०]।

महीश
संज्ञा पुं० [सं०] राजा।

महीस पु
संज्ञा पुं० [सं० महीश] दे० 'महीश'। उ०—जौ जगदीस तो अति भलो, जौ महीस तौ भाग। तुलसी चाहत जनम भरि रामचरन अनुराग।—तुलसी ग्रं०, पृ० ९३।

महीसुत
संज्ञा पुं० [सं०] १. मंगल ग्रह। २. नरकासुर (को०)।

महीसुता
संज्ञा स्त्री० [सं०] सीता [को०]।

महीसुर
संज्ञा पुं० [सं०] ब्राह्मण। उ०—तदपि महीसुर साप बस भार सकल अघ रूप।—मानस, १।१७६।

महीसूनु
संज्ञा पुं० [सं०] १. मंगलग्रह। २. दे० 'महीसुत'।

महुँ पु
अव्य० [हिं०] दे० 'महँ'। उ०—भट महुँ प्रथम लीक जग जासू।—मानस, १।१८०।

महु पु
संज्ञा पुं० [सं० मधु, प्रा० महु] १. दे० 'मधु'। २. मधु का छत्ता (लाक्ष०)। उ०—महु ताज चलत मुहाल अन्य तरु साष लगन कहुँ।—पृ० रा०, ७। २३।

महुअर (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० मधूक, प्रा० महूअ, हिं० महुआ] १. वह भेड़ जिमका ऊन कालापन लिए लाल रंग का होता है। २. वह रोटी जो महुआ मिलाकर पकाई गई हो।

महुअर (२)
संज्ञा पुं० [सं० मधुकर, प्र० महुअर] १. एक प्रकार का वाजा जिसे तुमड़ी या तुंबी भी कहते है। विशेष—यह कड़वी पतली तुंबी का होता है जिसमें दोनों ओर दो नालयाँ लगी होती है। एक ओर की नलो को मुँह में लगाकर और दूसरी और की नली की छेद पर उँगलियाँ रखकर इसे बजाते है। प्रायः मदारी लोग साँपों को मस्त करने के लिये इसे बजाते हैं। २. एक प्रकार का इंद्रजाल का खेल जो महुअर बाजकर किया जाता है। विशेष—इसमें दो प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी होते हैं जिनमें से प्रत्येक महुअर बजाकर दूसरे को मुर्छित अथवा चलने फिरने में असमर्थ करने का प्रयत्न करता है।

महुअर पु ‡ (१)
संज्ञा पुं० [सं० मधुकर] [स्त्री० महुअरि, महुअरी] भ्रमर। दे० 'मधुकर'। उ०—मअरंदपाण विमुद्ध महुअर सद्द मानस मोहिया।—कीर्ति०, पृ० २६।

महुअरि
संज्ञा स्त्री० [हिं० महुअर] दे० 'महुअर (२)'। उ०—और खेल खेलत छबि पावत। महुअरि वेनु बजावत गावत।—नंद० ग्रं०, पृ० २५९।

महुअरी †
संज्ञा स्त्री० [हिं० महुआ] वह रोटी जो आटे में महुआ मिलाकर बनाई जाती है।

महुआ (१)
संज्ञा पुं० [सं० मधूक, प्रा० महुअ] एक प्रकार का वृत्त जो भारतवर्ष के सभी भागों में होता है और पहाड़ों पर तीन हजार फुट की ऊँचाई तक पाया जाता है। विशेष—इसकी पत्तियाँ पाँच सात अंगुल चौड़ी, दस बारह अंगुल लंबी और दोनों ओर नुकीली होती हैं। पत्तियों का ऊपरी भाग हलके रंग का और पीठ भूरे रंग की होती है। हिमालय की तराई तथा पंजाब के अतिरिक्त सारे उत्तरीय भारत तथा दक्षिण में इसके जंगल पाए जाते हैं जिनमें वह स्वच्छंद रूप से उगता है। पर पंजाब में यह सिवाय बागों के, जहाँ लोग इसे लगाते हैं, और कहीं नहीं पाया जाता। इसका पेड़ ऊँचा और छतनार होता है और डालियाँ चारों और फैलती है। यह पेड़ तीस चालीस हाथ ऊँचा होता है और सब प्रकार की भूमि पर होता है। इसके फूल, फल, बीज लकड़ी सभी चीजें काम में आती है। इसका पेड़ वीस पचीस वर्ष में फूलने और फलने लगता और सैकडों वर्ष तक फूलता फलता है। इसकी पत्तियाँ फूलने के पहले फागुन चैत में झड़ जाती हैं। पत्तियों के झड़ने पर इसकी डालियों के सिरों पर कलियों के गुच्छे निकलने लगते हैं जो कूर्ची के आकार के होते है। इसे महुए का कुचियाना कहते हैं। कलियाँ बढ़ती जाती है और उनके खिलने पर कोश के आकार का सफेद फूल निकलता है जो गुदारा और दोनों ओर खुला हुआ होता है और जिसके भीतर जीरे होते हैं। यही फूल खाने के काम में आता है और महुआ कहलाता है। महुए का फूल बीस वाइस दिन तक लगातार टपकता है। महुए के फूल में चीनी का प्रायः आधा अंश होता है, इसी से पशु, पक्षी और मनुष्य सब इसे चाव से खाते हैं। इसके रस में विशेषता यह होती है कि उसमें रोटियाँ पूरी की भाँति पकाई जा सकती हैं। इसका प्रयोग हरे और सूखे दोनों रूपों में होता है। हरे महुए के फूल को कुचलकर रस निकालकर पूरियाँ पकाई जाती हैं और पीसकर उसे आटे में मिलाकर रोटियाँ बनाते हैं। जिन्हें 'महुअरी' कहते हैं। सूखे महुए कोभूनकर उसमें पियार, पोस्ते के दाने आदि मिलाकर कूटते हैं। इस रूप में इसे लाटा कहते हैं। इसे भिगोकर और पीसकर आटे में मिलाकर 'महुअरी' बनाई जाती है। हरे और सूखे महुए लोग भूनकर भी खाते हैं। गरीबों के लिये यह बड़ा ही उपयोगी होता है। यह गौंओ, भैसों को भी खिलाया जाता है जिससे वे मोटी होती हैं और उनका दूध बढ़ता है। इरासे शराब भी खींची जाती है। महुए की शराब को संस्कृत में 'माध्वी' और आजकल के गँवरा 'ठर्रा' कहते हैं। महुए का फूल बहुत दिनों तक रहता है और बिगड़ना नहीं। इसका फल परवल के आकार का होता है और कलेंदी कहलाता है। इसे छील उबालकर और बीज निकालकर तरकारी भी बनाई जाता है। इसके बीच में एक बीज होता है जिससे तेल निकलता है। वैद्यक में महुए के फूल को मधुर, शीतल, धातु- वर्धक तथा दाह, पित्त और बात का नाशक, हृदय को हितकर औऱ भारी लिखा है। इसके फल को शीतल, शुक्रजनक, धातु और बलबंधक, वात, पित्त, तृपा, दाह, श्वास, क्षयी आदि को दूर करनेवाला माना है। छाल रक्तपितनाशक और व्रणशोधक मानी जाती है। इसके तेल को कफ, पित्त और दाहनाशक और सार को भूत-बाधा-निवारक लिखा है। पर्या०—मधूक। मधुष्ठील। मधुखवा। मधुपुष्य। रोध्रपुष्प। माधव। वानप्रस्थ। मध्वग। तीक्ष्णसार। महाद्रुम।

महुआ (२)
संज्ञा स्त्री० महुए की वनी शराब। उ०—शोर, हँसी, हुल्लड़, हुड़दँग, धमक रहा थाग्डांग मृदंग। मार पीट बकवास, झड़प में, रंग दिखाती महुआ भंग। यह चमार चौदस का ढंग। ग्राम्या, पृ० ४९।

महुआ दही
संज्ञा पुं० [हिं० महना + दही] वह दही जिसमें से मथकर मक्खन निकाल लिया गया हो। मखनिया दही।

महुआरी
संज्ञा स्त्री० [हिं० महुआ + बारी] महुए का जंगल।

महुकम पु
वि० [अ० मुहकम] दे० 'मुहकम'। उ०—जग मरजादा में रहे ते महुकम लूटे।—सुंदर० ग्रं०, भा० २, पृ० ८९६।

महुमास पु
संज्ञा पुं० [सं० मधुमास] दे० 'मधुमास'। उ०— तम् महुमासहि पढम पष्ख पंचमी कहिअजे।—कीर्ति०, पृ० १६।

महुर पु
संज्ञा पुं० [अ० मु्ह्र] दे० 'मोहर-३'। उ०—हरिसिद्ध जाइ कीनौं प्रनाम। दुअ सहस महुर दुज दिन्न दाम।- पृ० रा०, ६१।९८५।

महुरत पु
संज्ञा पुं० [सं० मुहुर्त] दे० 'मुहुर्त'। उ०—ले मुहरत चाल्योऊ तिणि ठाई। चिहुँ पंड जोवज्यो भूपति राय।— बी० रासो, पृ० ७।

महुरि पु
संज्ञा स्त्री० [हिं० महुअरि] दे० 'महुअर'। उ०—तिन मै परम सुहावनी हो महुरि, वाँसुरी चंग।—नंद० ग्रं०, पृ० ३८३।

महुर्छा
संज्ञा पुं० [सं० महोत्सव प्रा० महुस्सव, महुसव, महीच्छव; मि० पं० महीछा] महोत्सव। उ०—कथा कीरतन मगन महुर्छा करि संतन वीर। कबहु न काज बिगरै नर तेरी सत सत कहै कबीर।—कबीर (शब्द०)।

महुल पु
संज्ञा पुं० [अ० महल] दे० 'महल'। उ०—रचि महुल मधु- रिति मधुरयं भ्रम छंडि मंडि सु पिथ्थयं पृ० रा०, ५९। २२।

महुला ‡ (१)
वि० [हिं० महुआ] [स्त्री० महु] महुए के रंग का। विशेष—इस शब्द का प्रयोग प्रायः बैलों, गौओं आदि के संबंध में होता है।

महुला (२)
संज्ञा पुं० वह बैल जिसके शरीर पर लाल और कालें रंग के बाल हों। विशेष—ऐसा बैल निकम्मा समझा जाता है।

महुव पु
संज्ञा पुं० [सं० मधूक] दे० 'महुआ'। उ०—कोइ आँबिलि कोइ मुहव खजूरी—जायसी ग्रं० (गुप्त), पृ० २४७।

महुवरि पु
संज्ञा स्त्री० [हिं० महुअर] महुअर नाम का बाजा। तूँबड़ी। उ०—तैं कत तोरयो हार नौसर को। मोती बगरि रहे सब वन में गयो कान की तरको। ए अवगुन जो करत गोकुल में तिलक दिए केसरि को। ढीट गुवाल दही में माते ओढ़न हारि कमरि को। जाइ पुकारै जसुमति आगे कहत जु मोहन लरिको। सूर श्याम जानी चतुराई जेहि अभ्यास महुवरि को।— सूर (शब्द०)।

महुवा
संज्ञा पुं० [सं० मधूक] दे० 'महुआ'।

महूख
संज्ञा पुं० [सं० मधूक] १. महुआ। उ०—(क) छिनक छबीले लाल वह जौ लगि नहिं वतराय। ऊख महुख पियूख की तौ लगि भूख न जाय।—बिहारी (शब्द०)। (ख) ऊख रस केतकु महुख रस मीठो है पियूखहु की पैली घाहे जाको नियराइए।— (शब्द०) (ग) कहाँ ऊख महूख में एतो मिठास पियूख हूँ ना हरिऔव हहै। जितो चारुता कोमलता सुकुमारता माधुरता अधरा में अहै।—हरिऔध (शब्द०)। २. मधु। शहद। उ०— महुवा मिशी दूध घृत अति सिंगार रस मिष्ट। ऊख, महुख, पियूख, शाने केसव सोचो इष्ट।—केशव ग्रं० भा० १, पृ० १२५। ३. जेठोमधु। मुलेठी।

महूम †
संज्ञा पुं० [अ० मुहिम्म] युद्ध। चढ़ाई। उ०—दिगविजय काज महुअ की, आरे देस देसन धूम को।—पद्माकर ग्रं,० पृ० ६।

महूमहू पु †
अव्य० [सं० मुहुः मुहुः] बार बार। पुनः पुनः। मुहुर्मुहुः। उ०—प्यारे नटनागर के अंतर समै को पाय मोहि को सतावत है विरहा महू महू।—नट०, पृ० ९२।

महूरत पु
संज्ञा पुं० [सं० मुहुर्त] १२ क्षण या २ दंड का समय। दे० 'मुहुर्त'। उ०—लागो मिलताँ खान सूँ, एख महूरत बेर।— रा० रू०, पृ० ३२७।

महुरति पु
संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'मुहुर्त'। उ०—धरती अंबर ना हता कौन था पंडित पास। कौन महुरति थापिया चाँद सुर आकास।— कबीर (शब्द०)।

महेंद्र
संज्ञा पुं० [सं० महेन्द्र] १. विष्णु। २. इंद्र। ३. भारतवर्ष के एक पर्वत का नाम जो सात कुलपर्वतों में गिना जाता है। महेंद्राचल। यौ०—महेंद्रकदली = एक प्रकार का केला। महेंद्रनगरी,महेंद्रपुरी = अमरावती। इंद्र की नगरी। महेंद्रमंत्री = बृहस्पति का नाम। महेंद्रवारुणी। महेंद्रवाह = ऐरावत हाथी।

महेंद्रनगरी
संज्ञा स्त्री० [महेन्द्रनगरी] अमरावती।

महेंद्रव पु
संज्ञा पुं० [सं० महेन्द्र] दे० 'महेंद्र'। उ०—तिन की उपमा कबि चंद करी। मनौ मेघ महेंद्रव बीज झरी।—पृ० रा०, २५।५३३।

महेंद्रवारुणी
संज्ञा स्त्री० [सं० महेन्दरवारुणी] बड़ी इंद्रायण।

महेंद्राल
संज्ञा स्त्री० [हिं० महेन्द्र + अलि] गुजरात की महेंद्री नामक नदी का नाम।

महेंद्री
संज्ञा स्त्री० [सं० महेन्द्री] एक नदी का नाम जो गुजरात में बहती है। इसे महेंद्राल भी कहते हैं।

महेर ‡ ‡
संज्ञा पुं० [हिं० मही + एर (प्रत्य०)] दे० 'महेरा'।

महेर (२)
संज्ञा पुं० [देश०] झगड़ा। बखेड़ा। मुहा०—किसी बात या काम में महेर डालना = (१) अड़चन डालना। बखेड़ा खड़ा करना। (२) देर लगाना।

महेर (३)
संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'महेरी'।

महेरणा
संज्ञा स्त्री० [सं०] शल्लकी का वृक्ष [को०]।

महेरा (१)
संज्ञा पुं० [हिं० मही + एरा (प्रत्य०)] [स्त्री० महेर, महेरि, महेरी] एक प्रकार का व्यंजन जो दही में चावल पकाकर बनाया जाता है। महेला। महेरी। महेर। विशेष—यह दो प्रकार का होता है—सलोना और मीठा। सलोने में हल्दी, राई आदि मसाले डाले जाते हैं और मीठे में गुड़ पड़ता है। २. एक भोज्य पदार्थ जो खेसारी के आटे को दही में उवालने से वनता है। ३. मही। मठा। उ०—जैसे धिउ होइ जराइ कै तस जिउ निरमल होइ। महै महेरा दूरि कर भोग करै सुख सोइ।—जायसी (शब्द०)।

महरा (२)
संज्ञा पुं० [सं० माष + हिं० एरा] दे० 'महेला'।

महेरि
संज्ञा स्त्री० [हिं० महेर या मही] महेरा नामक खाद्य पदार्थ। उ०—भोजन भयो भावती मोहन। तातोइ जेहँ जाहु गो गोहन। खीर खाड़ खाँचरी सँवारी। मधुर महेरि सो गोपन प्यारी।—सूर (शब्द०)।

महेरी (१)
संज्ञा स्त्री० [हिं० महेरा] १. उबाली हुई ज्वारा जिसे लोग नमक मिर्च खाते हैं। †२. मठे में उबाली हुई ज्वार जो मीठी या नमकीन होती है।

महेरी (२)
वि० [हिं० महेर] अड़चन डालनेवाला। बखेड़ा खड़ा करनेवाला।

महेरुह पु
संज्ञा पुं० [सं० महीरुह] दे० 'महीरुह'। उ०—गोहुं खाइ दूर मैं परा। सुख आनंद महेरुह हरा।—इंद्रा०, पृ० ८५।

महेला (१)
संज्ञा पुं० [सं० माष] पशुओं को खिलाने का एक पदार्थ। विशेष—यह चने, उर्द मोठ आदि को उबालकर और उसमें गुड़, घी आदि डालकर बनाया जाता है। इसके खिलाने से घोड़े, बैल आदि पुष्ठ होते हैं ओर गौएँ भैसे आदि अधिक दूध देती हैं।

महेला (२)
संज्ञा स्त्री० [सं०] स्त्री० [को०]।

महेलिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'महेला' (२)' [को०]।

महेश
संज्ञा पुं० [सं०] १. महादेव। शिव। २. ईश्वर।

महेशबंधु
संज्ञा पुं० [सं० महेशबन्धु] बेल। बिल्व।

महेशसखा
संज्ञा पुं० [सं०] कुबेर का एक नाम [को०]।

महेशान
संज्ञा पुं० [सं० महा + इशान] [स्त्री० महेशानी] शिव।

महेशानी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा।

महेशी पु
संज्ञा स्त्री० [सं० महेश्वरी] महेश्वरी। पार्वती।

महेशुर पु
संज्ञा पुं० [सं० महेश्वर] दे० 'महेश्वर'। उ०—मै तोहि कैसे बिसरुँ देवा ब्रह्मा विश्नु महेशुर ईशा ते भी बंछै सेवा।— दरिया० बानी, पृ० ५०।

महेश्वर
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० महेश्वरी] १. महादेव। शंकर। शिव। २. ईश्वर। परमेश्वर। ३. सफेद मंदार। ४. सोना। स्वर्ण।

महेश्वरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] पार्वती।

महेपुधि
वि० [सं०] बड़ा धनुर्धारी।

महेष्वास
वि० [सं०] बड़ा धनुर्धारि। श्रेष्ठ योद्धा।

महेस पु
संज्ञा पुं० [सं० महेश] दे० 'महेश'। उ०—गई समीप महेस तब हँसि पूछी कुसलात।—मानस, १।५५।

महेसिया
संज्ञा पुं० [हिं० महेश] एक प्रकार का उत्तम अगहनी धान।

महेसी पु
संज्ञा स्त्री० [सं० महेश + हिं० ई (प्रत्य०)] महेश्वरी। पार्वती। उ०—हिय महेस जौ कहै महेसी। कित सिर नावहिं ए परदेसी।—जायसी (शब्द०)।

महेसुर पु
संज्ञा पुं० [सं० महेश्वर] महेश्वर। शिव। २. माहेश्वर नामक शैव संप्रदाय। उ०—कोई सु महेसुर जंगम जती। कोइ एक परखै देवी सती।—जायसी (शब्द०)।

महै पु
अव्य० [हिं०] दे० 'मँह'। उ०—नजर महै सबकी पड़ै कोऊ देखै नाहि।—पलटू०, पृ० ४४।

महैकोदिष्ट
संज्ञा पुं० [सं०] वह श्राद्ध जो मरने के बाद पहले पहल अशौच के अंत में मृत प्राणी के उद्देश्य से किया जाता है।

महैतरेय
संज्ञा पुं० [सं०] ऐतरेय उपनिषद्।

महैरंड
संज्ञा पुं० [सं० महा + एरण्ड] एक प्रकार का बड़ा रेंड़ जिसके बीज भी बड़े होते हैं।

महैंला
संज्ञा स्त्री० [सं०] बड़ी इलायची।

महोंड़ा ‡
संज्ञा पुं० [हिं०] १. दे० 'मोहड़ा'। उ०—और महोंड़े आगें अस्तो विस्त अभक्षाभक्ष धरयो है।—दो सौ वावन०, भा० १, पृ० ३३०। २. मुख। मुहँ। उ०—पाछें वा चुगली करनेवारे को महोंड़ी स्याम होइ गयो।—दो सौ बावन०, भा० १, पृ० १३१।

महोक
संज्ञा पुं० [सं० मधूक, हिं० महोख, महोखा] दे० 'महोखा'

महोक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] बड़ा बैल।

महोख
संज्ञा पुं० [सं० मधूक] दे० 'महोखा'। उ०—(क) हारिल शब्द महोख सुहावा। काग कुराहर करहिं सोआवा।—जायसी (शब्द०)। (ख) कूजत पिक मानो गड माते। ढेंक महोख ऊँट विसराते।—तुलसी (शब्द०)।

महोखा
संज्ञा पुं० [सं० मधूक, प्रा० महूक] एक प्रकार पक्षी जो कौए के बराबर होता है और भारतवर्ष में, विशेषकर उत्तरी भारत में झाड़ियों और बँसवाढ़ियों में मिलता है। विशेष—इसकी चोंच, पैर और पूँछ काली, आँखें लाल और सिर गला और डैने खैरे रंग के या लाल होते हैं। यह झाड़ियों के आस पास रहता है और कीड़ें मकोड़े खाता है। यह बहुत तेज दौड़ सकता है, पर बहुत दूर तक नहीं उड़ सकता। इसकी बोली बहुत तेज होती है और यह बहुत देर तक लगातर बोलता है।

महोगनी
संज्ञा पुं० [अ०] भारत, मध्य अमेरिका और मैक्सिको आदि में होनेवाला एक प्रकार का बहुत बड़ा पेड़ जो सदा हरा रहता है। विशेष—इसकी लकड़ी कुछ ललाई लिए भूर रंग को, बहुत ही द्दढ़ और टिकाऊ होती हौ और उसपर वार्निश बहुत खिलती है। यह लकड़ी बहुत महेंगी बिकती है और प्रायः मेजें कुर्सियाँ और सजावट के दूसरे सामान वनाने के काम में आती है।

महोच्छव पु
संज्ञा पुं० [सं० महोत्सव, प्रा० महोच्छब] बड़ा उत्सव। महोत्सव। उ०—मरना भला विदेस का जहँ अपना नहिं कोय। जीव जंतु भोजन सहज महोच्छव होय।— कबीर (शब्द०)।

महोच्छी पु
संज्ञा पुं० [सं० महात्सव, प्रा० महोच्छव] दे० 'महो- त्सव'। उ०—कियो सो महोच्छी, ज्ञाति विप्रन को न्योतो दियो।—भक्तमाल (श्री०), पृ० ३९८।

महोछव पु
संज्ञा पुं० [सं० महोत्सव, प्रा० महोच्छव] दे० 'महो- त्सव'। उ०—कथा करितन मँगल महोछव, कर साधन की भीर।—कबीर श०, भा० २, पृ० १०६।

महोछा
संज्ञा पुं० [सं० महोत्सव] १. दे० 'महोच्छव'। २. ‡खत्रियों में होनेवाला उनके एक प्रसिद्ध महात्मा (बाबा लालू जसराय) का पूजन जो श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में होता है।

महोटिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] वृहती। कटैया।

महोटी
संज्ञा स्त्री० [सं०] वृहती। कटैया।

महोती
संज्ञा स्त्री० [हिं० महुआ] महुए का फल। कलेंदी। गुलेंदा। कोयँदा।

महोत्का
संज्ञा पुं० [सं०] महोल्का। बड़ी उल्का।

महोत्पल
संज्ञा पुं० [सं०] १. बड़े आकार का नील कमल। २. सारस पक्षी [को०]।

महोत्संग
संज्ञा पुं० [सं० महोत्सङ्ग] सबसे बड़ी संख्या।

महोत्सव
संज्ञा पुं० [सं०] १. बड़ा उत्सव। २. कामदेव (को०)।

महोत्साह
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो अत्यंत शक्तिशाली वा शक्ति- मंत हो। २. असंवाह्य गर्व। अत्यंत गर्व [को०]।

महोदधि
संज्ञा पुं० [सं०] १. समुद्र। सागर। २. इंद्र का एक नाम (को०)।

महोदय (१)
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० महोदया] १. अधिपत्य। २. स्वर्ग। ३. महाफूल। ४. स्वामी। ५. कान्यकुब्ज देश और उसकी राजधानी। ६. महापुरुष। महात्मा (को०)। ७. मधु- मिश्रित खट्टा दूध या दधि (को०)। ८. बड़ों के लिये एक आदर- सूचक शब्द। महाशय। महानुभाव।

महोदय (२)
वि० १. भाग्यवान्। गौरवशाली। २. अति समृद्ध। संपत्ति- शाली। ३. महानुभाव [को०]।

महोदया
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. नागबला। गँगेरन। गुलशकरी। २. बड़ी या संमान्य महिलाओं के लिये एक आदरसूचक शब्द।

महोदर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक नाग का नाम। २. एक राक्षस का नाम। ३. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। ४. शिव। ५. एक रोग। जलोदर।

महोदर (२)
वि० [वि० स्त्री० महोदर] जिसका पेट बड़ा हो।

महोदरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] भगवती दुर्गा का एक रूप [को०]।

महोदरा
वि० [सं०] १. अत्यंत उदार। २. शक्तिशाली। बल- वान [को०]।

महोद्यम
वि० [सं०] अत्यंत उद्यमशील। महोत्साह [को०]।

महोद्रेक
संज्ञा पुं० [सं०] चार प्रस्थ का एक मान [को०]।

महोन्नत
वि० [सं०] अत्यंत ऊँचा। अत्यंत उन्नत।

महोन्नति
संज्ञा स्त्री० [सं०] अत्यंत उच्चता वा श्रेष्ठता।

महोना
संज्ञा पुं० [हिं० मुँह] पशुओं के एक रोग का नाम जिसमें उनके मुँह और पैर पक जाते हैं।

महोपाध्याय
संज्ञा पुं० [सं०] बहुत बड़ा पंडित। विद्वान् अध्या- पक [को०]।

महोवा
संज्ञा पुं० [देश०] बुंदेलखंड का एक प्राचीन नगर। उ०— चहुआन महोबै जुद्ध हुअ ग्रेहाँ उठाइयाँ।—पृ० रा०, ६१।१००७। विशेष—यह हमीरपुर जिले में है और इस नाम की तहसील और परगने का प्रधान नगर है। यहाँ बहुत काल तक चंदेल राजाओं की प्रधान राजधानी थी और इस वंश के मूल पुरुष चंद्रवर्मा की छतरी का चिह्न अब तक रामकुंड के किनारे मिलता है। यहाँ प्राचीन दुर्ग अब तक वर्तमान है। पृथ्वीराज के समय में यहाँ परमाल नामक चंदेल राजा था जिनके यहाँ आल्हा और उदयन या ऊदल नामक दो प्रसिद्ध वीर योद्धा थे। कवि जगनिक के परमाल रासो में चंदेल राजाओं के वंश का और पृथ्वीराज से परमाल के युद्ध का विस्तृत वर्णन है। लोकप्रचलित आल्ह- खंड में भी परमाल के सामंत आल्हा ऊदल की युद्धगाथा का वर्णन है। यहाँ का पान बहुत अच्छा होता है।

महोबिया
वि० [हिं० महोबा + इया (प्रत्य०)] दे० 'महोबी'।

महोबिहा
वि० [हिं० महोवा + इया (प्रत्य०)] दे० 'महोवी'।

महोबी
वि० [हिं० महोबा + ई (प्रत्य०)] महोवे का।

महोरग
संज्ञा पुं० [सं०] १. बड़ा साँप। २.तगर का पेड़। ३. जैनियों के एक प्रकार के देवताओं का नाम। विशेष—यह व्यंतर नामक देवगण के अंतर्गत हैं।

महोरस्क (१)
वि० [सं०] जिसका वक्षस्थल विशाल हो।

महोरस्क (२)
संज्ञा पुं० शिव का एक नाम [को०]।

महोर्मि
संज्ञा पुं० [सं० महोर्मिन्] समुद्र [को०]।

महोला पु † (१)
संज्ञा पुं० [अ० मुहेल] १. हीला। बहाना। उ०— बाहर क्या देखराइए अंतर जपिए राम। कहा महोला खलक सो परेउ धनी से काम।—कबीर (शब्द०)। २. धोखा। चकमा। उ०—सती शूर तन ताइया तन मन कीया घान। दिया महोला पीव को तव मरघट करै बखान।—कबीर (शब्द०)।

महोला † (२)
संज्ञा पुं० [अ० महल्ला, हिं० मुहल्ला] समुदाय। संघ। समूह। उ०—(क) सेन के प्रमाण कोन कहा साह बोले। सेना- पतिकोन कोन मीर देखन महोले।—रा० रू०, पृ० ११०। (ख) सब कूँ बुलाय वैण अकबर साह बोले। मेरी निसाँखातरी है तुमारे महोले।—रा० रू० पृ० ११२।

महोविशीय
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का साम।

महोघ
संज्ञा पुं० [सं०] १. समुद्र की बाढ़। तूफान। २. वह जिसका प्रवाह प्रखर एवं विशाल हो (को०)। ३. एक बहुत बड़ी संख्या (को०)।

महौजस्क
वि० [सं०] अति तेजस्वी। बहुत तेजवान्।

महौजा (१)
वि० [सं० महौजस्] अति तेजस्वी।

महौजा (२)
संज्ञा पुं० काल के पुत्र एक असुर का नाम।

महौदवाहि
संज्ञा पुं० [सं०] आश्वलायन गृह्यसूत्र के अनुसार एक आचार्य का नाम।

महौली
संज्ञा स्त्री० [देश०] पापड़ी नामक वृक्ष जिसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है और इमारत के काम में आती है। विशेष दे० 'पापड़ा'।

महौषध
संज्ञा पुं० [सं०] १. भूम्याहुल्य। भुंजित खर। २. सोंठ। ३. लहसुन। ४. बारहीकंद। गेठी। ५. वत्सनाभ। बछनाग। ६. पीपल। ७. अतीस।

महौषधि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दूव। २. लजालू। ३. संजीवनी। ४. कुछ विशिष्ट ओषधियों का समूह जिनका चूर्ण महास्नान या अभिषेकादि के जल में मिलाया जाता है।

महौषधी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सफेद भटकटैया। श्वेत कंटकारी। २. ब्राही। ३. कुटकी। ४. अतिवला। ५. हिलमोचिका।

मह्यत्तर
संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक जाति का नाम।

मह्यो पु
संज्ञा स्त्री० [हिं० महना] दे० 'मही'। उ०—कोऊ दह्यो कोऊ मह्यो, कोऊ माखन जोरि जोरि भली बिधि सों आछौ अछुतो लाई।—नंद० ग्रं०, पृ० ३६१।