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ख्याल

विक्षनरी से

संज्ञा

  1. कल्पना, विचार

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

ख्याल ^१ संज्ञा पुं॰ [अ॰ खयाल] [वि॰ ख्याली]

१. ध्यान । मुहा॰—ख्याल करना = सोचना । याद करना । ख्याल पड़ना = ध्याब में आना । याद आना । ख्याल पर चढ़ना = दे॰ 'खल पड़ना' । ख्याल में आना = समझ में आना । ख्याल में रखना = न 'ख्याल रखना । देखते भालतेर हना । याद रखना । स्मरण रखना । ख्याल रहना = याद रहना । ख्याल से उतरना या उतर जाना = भूल जाना । विस्मृत हो जाना । किसी के ख्याल पड़ना = किसी के पीछे पड़ना । किसी को दिक करने पर उतारू होना । उ॰—राधा मन मैं यहै विचारति । ये सब मेरे ख्याल परी हैं अबहीं बातन लै निरुआरति ।—सूर (शब्द॰) ।

२. अनुमान । अंदाज । अटकल । जैसे,—हमारा ख्याल है कि वह यहाँ नहीं आवेगा । मुहा॰—ख्याल बाँधना = अनुमान लगाना । कल्पना करना ।

३. विचार । भाव । संमति । जैसे,—उनके बारे में आपका क्या ख्याल है ।

४. आदर । लिहाज । अदब । मुहा॰—ख्याल करना = रिआयत करना । ख्याल में लाना = (१) रिआयत करना । (२) महत्वपूर्ण समझना । ख्याल रखना = (१) लिहाज रखना । (२) कृपादृष्टि रखना ।

५. एक विशेष प्रकार का गान जिसमें केवल एक स्थायी पद और एक अंतरा होता है तथा अधिकतर श्रृंगार रस का वर्णन रहता है । यह अनेक राग रागनियों का होता है और तिल- वाड़ा तालपर गाया बजाया जाता है । जैसे,—ख्याल केदारा, ख्याल देश, ख्याल जैतश्री, ख्याल सिंदूरिया आदि ।

६. लाघनी गाने का एक ढंग ।

ख्याल ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ खेल] खेल । क्रीड़ा । हँसी । दिल्लगी । उ॰—(क) यह सुनि रुकमिनि भई बेहाल । जान परयो नहि हरि को ख्याल ।—सूर (शब्द॰) । (ख) कंत बीस लोचन बिलोकिये कुमंत फल ख्याल लका लाई कपि राँड़ की सी झोपड़ी ।—तुलसी (शब्द॰) ।