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दूसरा

विक्षनरी से

विशेषण

व्युत्पत्ति

संस्कृत *द्विःसर पर आधारित।

संज्ञा

दूसरा

  1. जो क्रम में दो के स्थान पर हो।
  2. पहले के बाद का।
  3. द्वितीय।
उदाहरण –
  1. गली में बाएँ हाथ का दूसरा मकान उन्हीं का है।


विशेषण

दूसरा (dūsrā) [स्त्री॰ दूसरी]

  1. जिसका प्रस्तुत विषय या व्यक्ति से संबंध न हो।
  2. अन्य।
  3. अपर।
  4. ग़ैर।
जैसे –
  1. हम लोग आपस में लड़ें और चाहें झगड़ें, दूसरे से मतलब?
  2. दूसरों के सिर ठीकरा फोड़ना। (कहावत) – दूसरों पर दोष मढ़ना। उ॰–दूसरों को उबार लेते हैं एक दो बीर विपद में गिर। पर बहुत लोग पाक बनते हैं ठीकरा फोड़ दूसरों के सिर। — चुभते॰, पृ॰ १२।
यौगिक –
  1. दूसरी माँ –
    -जो अपनी माँ न हो।
    -सौतेली माँ ।

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विशेषण

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

दूसरा वि॰ [हिं॰ दो] [वि॰ स्त्री॰ दूसरी]

१. जो क्रम में दो के स्थान पर हो । पहले के बाद का । द्वितीय । जैसे,— गली में बाएँ हाथ का दूसरा मकान उन्हीं का है ।

२. जिसका प्रस्तुत विषय या व्यक्ति से संबंध न हो । अन्य । अपर । और गैर । जैसे,—हम लोग आपस में लड़ें और चाहें झगड़ें, दूसरे से मतलब ? मुहा॰—दूसरों के सिर ठीकरा फोड़ना = दूसरों पर दोष मढ़ना । उ॰—दूसरों को उबार लेते हैं एक दो बीर विपद में गिर । पर बहुत लोग पाक बनते हैं ठीकरा फोड़ दूसरों के सिर ।—चुभते॰, पृ॰ १२ । यौ॰—दूसरी माँ = जो अपनी माँ न हो । सौतेली माँ ।